मुसलमान पर पडोसी के हक हमसाया और मसाकीन पर एहसान

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हुकुके के हमसाया और मसाकीन पर एहसान – पडोसी के हक

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हमसाएगी उखुव्वते इस्लामी से ज़ियादा कुछ और हुकूक की भी मुक्तज़ी है लिहाज़ा हर मुसलमान हमसाए के उखुव्वते इस्लामी के सुलूक के इलावा भी कुछ हुकूक हैं चुनान्चे, नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि हमसाए तीन हैं, एक हमसाए का एक हक, दूसरे के दो हक़ और तीसरे के तीन हुकूक हैं, जिस हमसाए के तीन हुकूक़ हैं वोह रिश्तेदार मुसलमान हमसाया है, इस का हमसाएगी का हक़, इस्लाम का हक़ और रिश्तेदारी का हक़ है, जिस हमसाए के दो हक़ हैं वोह मुसलमान हमसाया है उस के लिये हमसाएगी का हक़ और इस्लाम का हक़ है और जिस हमसाए का एक हक़ है वोह मुशरिक हमसाया है, गौर कीजिये कि इस्लाम ने मुशरिक हमसाए का भी हक्के हमसाएगी रखा है।

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फ़रमाने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है कि अपने हमसाइयों के साथ अच्छा बरताव कर तब तू मुसलमान होगा ।

और फ़रमाया कि जिब्रील मुझे हमेशा हमसाए (पडोसी) के मुतअल्लिक वसिय्यत करते रहे यहां तक कि मैं समझा कि अन करीब हमसाए को भी वारिस बना दिया जाएगा।) – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स अल्लाह और क़ियामत पर ईमान रखता है वोह अपने हमसाए की इज्जत करे ।

मजीद फ़रमाया कि बन्दा उस वक्त तक मुसलमान नहीं होता जब तक कि उस का हमसाया उस की आफ़तों से महफूज़ न हो।

एक और फ़रमान है कि क़ियामत के दिन सब से पहले झगड़ा करने वाले दो हमसाए होंगे।

और इरशाद फ़रमाया कि जब तू ने हमसाए के कुत्ते को मारा तो गोया तू ने हमसाए को तक्लीफ़ दी ।

मरवी है कि एक आदमी ने हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से आ कर कहा : मेरा एक हमसाया है जो मुझे तक्लीफ़ देता है, गालियां देता है और तंग करता है, आप ने येह सुन कर फ़रमाया : जाओ ! अगर वोह तुम्हारे मुतअल्लिक अल्लाह की ना फ़रमानी करता है तो तुम उस के बारे में अल्लाह की इताअत करो । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की गई : या रसूलल्लाह ! फुलां औरत दिन को रोज़ा रखती है, रात को इबादत करती है मगर अपने हमसाइयों को दुख देती है, आप ने येह सुन कर फ़रमाया : वोह जहन्नम में जाएगी।

अल्लाह के रसूल स.अ.व. से पडोसी की शिकायत

एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में अपने हमसाए का शिक्वा किया, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस से फ़रमाया : सब्र कर, तीसरी या चौथी बार आप ने फ़रमाया : अपना सामान रास्ते में फेंक दे। रावी कहते हैं कि लोगों ने जब उस के सामान को बाहर रास्ते पर पड़ा देखा तो पूछा : क्या बात है? उस ने कहा : मुझे हमसाया सताता है, लोग वहां से गुज़रते रहे, पूछते रहे और कहते रहे अल्लाह तआला इस हमसाए पर ला’नत करे, जब उस हमसाए ने येह बात सुनी तो आया, उसे कहा : अपना सामान वापस ले आओ, ब खुदा ! मैं फिर तुम्हें कभी तक्लीफ़ नहीं दूंगा।

जोहरी ने रिवायत किया है कि एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हमसाए की शिकायत की। हजुर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हुक्म फरमाया कि मस्जिद के दरवाजे पर खड़े हो कर ए’लान कर दो कि साथ के चालीस घर हमसाएगी (पड़ोस) में दाखिल हैं।

जोहरी ने कहा : चालीस इधर, चालीस उधर, चालीस इधर और चालीस उधर और चारों सम्तों की तरफ़ इशारा किया।

फ़रमाने नबवी है कि औरत, घर और घोड़े में बरकत और नुहसत है। औरत की बरकत थोड़ा महर, आसान निकाह और उस का हुस्ने खुल्क वाला होना है, उस की नुहूसत भारी महर मुश्किल निकाह और बद खुल्की है। घर की बरकत उस का कुशादा होना और उस के हमसाइयों का अच्छा होना है, उस की नुहूसत, उस का तंग होना और उस के हमसाइयों का बुरा होना है, घोड़े की बरकत उस की फ़रमां बरदारी और अच्छी आदतें हैं और उस की नुहूसत उस की बुरी आदतें और सुवार न होने देना है।

इस्लाम में पडोसी के हुकूक

हमसाए का हक़ सिर्फ येह नहीं कि आप उस से उस की तकलीफें दूर करें बल्कि ऐसी चीजें भी उस से दूर करनी चाहिये कि जिन से उसे दुख पहुंचने का एहतिमाल हो, हमसाए से दुख दूर करना, उसे दुख देने वाली चीज़ों से दूर रखने के इलावा कुछ और भी हुकूक हैं, उस से नर्मी और हुस्ने सुलूक से पेश आए, उस से नेकी और भलाई करता रहे इसी लिये कहा गया है कि क़यामत के दिन फ़क़ीर हमसाया मालदार हमसाए को पकड़ कर अल्लाह से कहेगा : ऐ अल्लाह ! इस से पूछ, इस ने अपने अताया मुझ से क्यूं रोके थे और अपना दरवाज़ा मुझ पर क्यूं बन्द किया था ?

इब्नुल मुक़फ्फ़अ से किसी ने कहा कि तुम्हारा हमसाया सुवारी के कर्ज की वज्ह से अपना घर बेच रहा है, इब्नुल मुक़फ्फ़अ उस शख्स की दीवार के साए में बैठता था, उस ने येह सुन कर कहा कि अगर उस ने तंगदस्ती की वज्ह से अपना घर बेच दिया तो गोया मैं ने उस की दीवार के साए की इज्जत नहीं की चुनान्चे, उस के पास रकम भेजी और कहला भेजा घर को न बेचो।

किसी शख्स ने घर में चूहों की कसरत की शिकायत की तो सुनने वाले ने कहा कि तुम एक बिल्ली रख लो, तो उस शख्स ने जवाब में कहा : मुझे इस बात का अन्देशा है कि चूहे बिल्ली की आवाज़ सुन कर हमसाइयों के घरों में भाग जाएंगे तो गोया मैं ऐसा आदमी बन जाऊंगा जो खुद तो एक तक्लीफ़ पसन्द नहीं करता मगर दूसरों को वोही दुख पहुंचाना चाहता है।

हमसाए के हुकूक में से येह भी है कि उसे देखते ही सलाम करे, उस से तवील गुफ्तगू न करे, उस से अक्सर मांगता न रहे, मरज़ में उस की इयादत करे, मुसीबत में उसे तसल्ली दे, अगर उस के यहां मौत हो जाए तो उस के साथ रहे, खुशी में उसे मुबारक बाद कहे और उस की खुशी में बराबर का शरीक रहे, उस की गलतियों से दर गुज़र करे, छत से उस के घर में न झांके, अपने घर की दीवार पर शहतीर वगैरा रखने से न रोके, उस के परनाले में पानी न उंडेले, उस के घर के सेहून में मिट्टी न फेंके, उस के घर के रास्ते को तंग न करे, वोह घर की तरफ़ जो कुछ ले कर जा रहा हो उसे न घूरे, उस की अमे मौजूदगी में उस के घर की देख भाल से गाफ़िल न हो, उस की गीबत न सुने, उस की इज्जत से आंख बन्द करे, उस की नोकरानी को अक्सर न देखता रहे, उस की औलाद से नर्मी से गुफ्तगू करे, जिन दीनी और दुन्यावी उमूर से वोह ना वाकिफ़ हो इन में उस की रहनुमाई करे, येह वोह हुकूक हैं जो आम व खास हर मुसलमान के लिये ज़रूरी हैं।

हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : जानते हो हमसाए का क्या हक़ है ? जब वोह तुझ से मदद तलब करे उस की मदद कर, अगर वोह तेरी इमदाद का तालिब हो उस की इमदाद कर, अगर वोह तुझ से कर्ज मांगे तो उसे कर्ज दे, अगर वोह मुफ्लिस हो जाए तो उस की हाजत रवाई कर, अगर वोह बीमार हो जाए तो उस की इयादत कर, अगर मर जाए तो उस का जनाज़ा उठा, अगर उसे खुशी हासिल हो तो मुबारक बाद कह, अगर उसे मुसीबत पेश आए तो उसे सब्र की तल्कीन कर, उस के मकान से अपना मकान ऊंचा न बना ताकि उस की हवा न रुके अगर वोह इजाज़त दे दे तो कोई हरज नहीं, उसे तक्लीफ़ न दे, जब मेवे खरीद कर लाए तो उस के घर बतौरे तोहफ़ा भेज वरना खुझ्या ले कर आ, मेवे अपनी अवलाद के हाथ में दे कर बाहर न भेज ताकि उस के बच्चे नाराज़ न हों, हांडी की खुश्बू से अपने हमसाए को ईज़ा न दे मगर येह कि एक चुल्लू शोरबा उसे भी भेज दे। फिर आप ने फ़रमाया : जानते हो हमसाए का हक़ क्या है ? ब खुदा ! हमसाए के हुकूक को कोई पूरा नहीं कर सकता मगर जिस पर अल्लाह तआला ने रहमत की हो।

इसी तरह अम्र बिन शोऐब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अपने बाप और दादा से और इन्हों ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से रिवायत की है।

हज़रते मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है : मैं हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो के पास बैठा था और आप का गुलाम बकरी की खाल उतार रहा था। आप ने कहा : ऐ गुलाम ! जब बकरी की खाल उतार ले तो सब से पहले हमारे यहूदी हमसाए को गोश्त देना, आप ने येही बात मुतअद्दिद बार कही तो गुलाम ने कहा : अब और कितनी मरतबा कहेंगे ? तब आप ने फ़रमाया : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हमें बराबर हमसाइयों के मुतअल्लिक़ वसिय्यत फ़रमाया करते थे यहां तक कि हमें अन्देशा हुवा कि कहीं हमसाइयों को वारिस न बना दिया जाए ।

कुर्बानी का गोश्त पडोसी को देना

हज़रते हिशाम रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो इस बात में कोई हरज नहीं समझते थे कि तुम अपनी कुरबानी का गोश्त यहूदी या नस्रानी हमसाए को खिलाओ।

हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : मुझे मेरे हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने वसिय्यत फ़रमाई कि जब तुम हांडी पकाओ तो उस में ज़ियादा पानी डाल दो, फिर अपने हमसाइयों के घरों पर निगाह दौड़ाओ और उन्हें चुल्लू भर शोरबा भेज दिया करो ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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