Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the ad-inserter domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the json-content-importer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the add-search-to-menu domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the health-check domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
नमाज़ की फ़ज़ीलत, बरकते और फायदे – Net In Hindi.com

नमाज़ की फ़ज़ीलत, बरकते और फायदे

दोस्तों को शेयर कीजिये

नमाज़ कायम करने का अल्लाह का हुक्म

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

चूंकि नमाज़ अफ़्ज़ल तरीन इबादत है लिहाज़ा हम ने किताबुल्लाह की पैरवी करते हुवे इस की तरगीब देने के लिये दूसरी मरतबा इस का ज़िक्र किया है क्यूंकि जो कुछ हम तहरीर कर चुके हैं नमाज़ के फ़ज़ाइल में इस से कहीं ज़ियादा आयात व अहादीस वारिद हुई हैं चुनान्चे, इरशादे नबवी है कि बन्दे के लिये इस से बढ़ कर कोई इन्आम नहीं है कि उसे दो रक्अत नमाज़ पढ़ने की इजाजत दी जाए।

हज़रते मुहम्मद बिन सीरीन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि अगर मुझे जन्नत और दो रक्अत नमाज़ में से किसी एक को पसन्द करने का कहा जाए तो मैं जन्नत पर दो रक्अत नमाज़ को तरजीह दूंगा क्यूंकि दो रक्अतों में रज़ाए इलाही और जन्नत में मेरी रज़ा है।

फरिश्तों की इबादत और नमाज़

कहा जाता है कि अल्लाह तआला ने जब सात आस्मानों को पैदा फ़रमाया तो इन्हें फ़रिश्तों से ढांप दिया, वोह उस की इबादत से एक लम्हे को गाफ़िल नहीं होते और अल्लाह तआला ने हर आस्मान के फ़रिश्तों के लिये इबादत की एक किस्म मुकर्रर फ़रमा दी है चुनान्चे, एक आस्मान वाले क़ियामत तक के लिये कियाम में हैं, किसी आस्मान वाले रुकूअ में, किसी आस्मान वाले फ़रिश्ते सुजूद में और किसी आस्मान वाले अल्लाह तआला की हैबत और जलाल से अपने बाजू झुकाए हुवे हैं, इल्लिय्यीन और अर्श इलाही के फ़रिश्ते सफ़ बस्ता अर्श इलाही का तवाफ़ करते रहते हैं, अल्लाह तआला की हम्द करते हैं और ज़मीन वालों के लिये मगफिरत तलब करते हैं मगर अल्लाह तआला ने येह तमाम इबादतें एक नमाज़ में जम्अ कर दी हैं ताकि मोमिनों को आस्मानी फ़रिश्तों की हर इबादत का हिस्सा इनायत फ़रमा कर इन्हें इज्जत व तौकीर बख़्शे और इस में तिलावते कुरआने मजीद की इज्जत बख़्शी और मोमिनों से इबादत का शुक्र अदा करने की फ़रमाइश की, नमाज़ का शुक्र इस की मुकम्मल शराइत व हुदूद से अदाएगी है, फ़रमाने इलाही है : जो लोग गैब पर ईमान लाते हैं और नमाज़ काइम करते हैं और हमारे दिये हुवे रिज्क में से खर्च करते हैं।

सभी इस्लामी विषयों टॉपिक्स की लिस्ट इस पेज पर देखें – इस्लामी जानकारी-कुरआन, हदीस, किस्से हिंदी में

नमाज़ कायम करने का फरमान

मजीद इरशाद फ़रमाया :

और तुम नमाज़ काइम करो। इरशादे खुदावन्दी हुवा :

और नमाज़ कायम कीजिये। एक मक़ाम पर इरशाद है :

और जो नमाज़ों को काइम करने वाले हैं। कुरआने मजीद में जहां कहीं भी नमाज़ का ज़िक्र है वहां इसे कायम करने का भी हुक्म है और अल्लाह तआला ने जब मुनाफ़िकों का ज़िक्र किया तो फ़रमाया :

पस हलाकत है उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ से सुस्ती करने वाले हैं। अल्लाह तआला ने इस आयत में मुनाफ़िकों को ‘मुसल्लीन’ कहा है और मोमिनों का ज़िक्र करते वक्त फ़रमाया :

जो नमाज़ों को कायम करने वाले हैं। और यह इस लिये फ़रमाया ताकि मा’लूम हो जाए कि नमाज़ी तो बहुत हैं मगर सहीह मा’ना में नमाज़ कायम करने वाले कम हैं, गाफिल लोग तो बस रवाज के तौर पर अमल करते हैं

और इन्हें उस दिन की याद नहीं आती जिस दिन आ’माल पेश किये जाएंगे, क्या मालूम इन की नमाजें मक्बूल होंगी या मर्दूद ?

नमाज़ का पूरा सवाब

हज़रते नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : बेशक तुम में से बा‘ज़ वो हैं जो नमाज़ पढ़ते हैं मगर उन की नमाज़ में से तिहाई या चौथाई या पांचवां या छटा  हिस्सा यहां तक कि आप ने दसवें हिस्से तक गिना और फ़रमाया : सवाब लिखा जाता है । या’नी नमाज़ में से उसी हिस्से का सवाब मिलता है जिस को वो मुकम्मल यक्सूई और तवज्जोह से पढ़ता है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : जिस शख्स ने अल्लाह तआला की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर मुकम्मल यक्सूई से दो रक्अत नमाज़ अदा की वो गुनाहों से उस दिन की तरह पाक हो गया जिस दिन कि उस की मां ने उसे जना था।

हक़ीक़त यह है कि बन्दे की नमाज बा अजमत तब होती है जब उस की तमाम तर तवज्जोह अल्लाह तआला की तरफ़ हो और वो नफ़्सानी ख़यालात में मश्गूल हो तो उस की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स अपनी गलतियों और लगज़िशों पर मा’ज़िरत करने के लिये बादशाह के दरबार में जा रहा हो और जब वो बादशाह के हुजूर पहुंच गया और बादशाह उसे सामने खड़ा देख कर उस की तरफ़ मुतवज्जेह हुवा तो वोह दाएं बाएं देखने लगे लिहाज़ा बादशाह उस की ज़रूरत पूरी नहीं करेगा और बादशाह उस की तवज्जोह के मुताबिक़ उस पर इनायत करेगा और उस की बात सुनेगा, इसी तरह जब बन्दा नमाज़ में दाखिल हो जाता है और दूसरी बातों के ख़यालात में खो जाता है तो उस की नमाज़ भी क़बूल नहीं होती।

जान लीजिये कि नमाज़ की मिसाल उस दा’वते वलीमा की सी है जिसे बादशाह ने मुअकिद किया हो और उस में किस्म किस्म के खाने तय्यार किये गए हों, खाने और पीने की हर चीज़ की जुदागाना लज्जत और जाइका हो फिर वोह लोगों को खाने की दावत दे, ऐसे ही नमाज़ है, अल्लाह तआला ने लोगों को इस की जानिब बुलाया है और इस में मुख्तलिफ़ अफ्आल और रंगारंग ज़िक्र वदीअत रखे हैं ताकि बन्दे उस की इबादत करें और उबूदिय्यत के रंगारंग मजे लें, इस में अपआल खाने की तरह और अज़कार पीने की अश्या जैसे हैं।

येह भी कहा गया है कि नमाज़ में बारह हज़ार अफ्आल थे, फिर येह बारह हज़ार अफ्आल बारह अफआल में मख्सूस कर दिये गए लिहाज़ा जो शख़्स भी नमाज़ पढ़ना चाहे उसे इन बारह चीज़ों का खयाल रखना चाहिये ताकि उस की नमाज़ कामिल हो जाए, जिन में से छे ख़ारिजे नमाज़ और छे दाखिले नमाज़ हैं

 

नमाज़ को कामिल करने और सही तरीके से पढने के लिए

पहला ‘इल्म’ है क्यूंकि फ़रमाने नबवी है कि वो थोड़ा अमल जिसे इन्सान मुकम्मल इल्म से अदा करे, उस ज़ियादा अमल से बेहतर है जिसे बे खबरी और जहालत में अदा किया जाए।दूसरा ‘वुजू’ है क्यूंकि फ़रमाने नबवी है कि तहारत के बिगैर नमाज़ होती ही नहीं ।तीसरा ‘लिबास’ है, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : तुम हर नमाज़ के वक्त जीनत हासिल करो। या’नी हर नमाज़ के वक्त कपड़े पहनो। चौथा ‘वक्त की पाबन्दी’ है, फ़रमाने इलाही है :

बेशक नमाज़ मोमिनों पर वक्ते मुकर्रर पर

फ़र्ज़ है। पांचवां ‘क़िब्ले की जानिब मुंह करना’ है, फ़रमाने इलाही है : पस अपने चेहरे को मस्जिदे हराम की तरफ़ फेर दो और तुम जहां कहीं भी हो अपने चेहरों को मस्जिदे हराम की तरफ़ फेर दो।.छटी ‘निय्यत’ है चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है : आ’माल का दारो मदार निय्यतों पर है और हर शख्स के लिये वोही है जिस की उस ने निय्यत की। सातवीं ‘तक्बीरे तहरीमा’ है, फ़रमाने नबवी है इस में दुन्यावी अफ्आल को हराम करने वाली तक्बीरे तहरीमा और हलाल करने वाला सलाम फेरना है। आठवां ‘क़ियाम’ है क्यूंकि फ़रमाने इलाही है: और खड़े हो जाओ अल्लाह के लिये इताअत

करने वाले। या’नी खड़े हो कर नमाज़ पढ़ो। .नवां ‘सूरए फ़ातिहा’ का पढ़ना है क्यूंकि फ़रमाने इलाही है :

पस पढ़ो तुम जो तुम्हें कुरआन से मुयस्सर हो। दसवां ‘रुकूअ’ है, इरशादे इलाही है :

और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करो। ग्यारहवां ‘सजदे’ हैं, इरशादे इलाही है: ”

और सजदा करो। .बारहवां “काए’दा” है, इरशादे नबवी है कि जब किसी आदमी ने आखिरी सजदे से सर उठाया और तशहहुद पढ़ने के ब क़दर बैठ गया तो उस की नमाज़ मुकम्मल हो गई।

जब यह बारह चीजें पाई जाएं तो इन के तकमिला के लिये एक और चीज़ की ज़रूरत होती है और वोह है खुलूसे कल्ब ताकि तेरी नमाज़ सहीह मा’नों में अदा हो जाए और फ़रमाने इलाही है: पस अल्लाह की इबादत करो उस के दीन को खालिस करते हुवे। हम ने सब से पहले इल्म का तजकिरा किया था, इल्म की तीन किस्में हैं : एक येह कि वोह फ़राइज़ और सुनन को अलाहिदा अलाहिदा समझता हो, वुजू में जो फ़राइज़ और सुनन हैं, इन्हें जानता हो क्यूंकि येह नमाज़ के मुकम्मल करने का एक वासिता हैं और शैतान के मक्रों को जानता हो और इन के दफ़इय्या के लिये अपनी कोशिश सर्फ करे।

वुजू तीन चीज़ों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तू अपने दिल को कीना, हसद और अदावत से पाक करे, ‘दूसरा’ येह कि अपने बदन को गुनाहों से पाक करे, ‘तीसरा’ येह कि पानी को जाएअ न करते हुवे अपने आ जाए वुजू को खूब अच्छी तरह धोए।

लिबास तीन चीजों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि वोह हलाल की कमाई से हासिल किया गया हो, ‘दूसरा’ येह कि नजासत से पाक हो, ‘तीसरा’ येह कि उस की वज्अ कतअ सुन्नत के मुताबिक़ हो और तकब्बुर व खुदबीनी के लिये उन कपड़ों को न पहना गया हो।

पाबन्दिये वक्त तीन चीज़ों पर मुन्हसिर है : ‘अव्वल’ येह कि तू इतना इल्म रखता हो कि सूरज, चांद सितारों से तू वक्त के तअय्युन में मदद ले सके, ‘दुवुम’ येह कि तेरे कान अज़ान की आवाज़ पर लगे रहें, ‘सिवुम’ येह कि तेरा दिल नमाज़ के वक्त की पाबन्दी के मुतअल्लिक मुतफ़क्किर हो।

इस्तिक्बाले किल्ला तीन चीज़ों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तेरा मुंह का’बे की सम्त हो, ‘दूसरा’ येह कि तेरा दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जेह हो और ‘तीसरा’ येह कि तू इन्तिहाई इन्किसारी से हाज़िर हो।

निय्यत तीन चीज़ों से मुकम्मल होती है : ‘पहला’ येह कि तुझे इल्म हो कि तू कौन सी नमाज़ पढ़ रहा है, ‘दूसरे’ येह कि तुझे इस बात का इल्म हो कि तू अल्लाह की बारगाह में खड़ा हो रहा है और वोह तुझे देख रहा है और तू खौफ़ज़दा हो कर हाज़िर हो, ‘तीसरे’ येह कि तुझे मालूम हो कि अल्लाह तआला तेरे दिल के भेदों को जानता है लिहाज़ा तू अपने दिल से दुन्यावी खयालात यक्सर खत्म कर दे।

तक्बीरे तहरीमा भी तीन चीजों से पायए तक्मील तक पहुंचती है : ‘पहला’ येह कि तुम सहीह मा’नों में अल्लाह तआला की बड़ाई बयान करो और सहीह तौर पर अल्लाहुअकबर  कहो, ‘दूसरा’ येह कि अपने दोनों हाथ कानों के बराबर तक उठाओ, ‘तीसरा’ येह कि तक्बीर कहते हुवे तुम्हारा दिल भी हाज़िर हो और इन्तिहाई ता’ जीम से तक्बीर कहो।

कियाम भी तीन चीजों से कामिल होता है : ‘पहला’ येह कि तेरी निगाह सजदा गाह पर हो, ‘दूसरा’ येह कि तेरा दाएं बाएं तवज्जोह न करे।

किराअत भी तीन चीज़ों से मुकम्मल होती है : ‘पहला’ येह कि तू सूरए फ़ातिहा को सहीह तलफ्फुज़ से ठहर ठहर कर गाने की तर्ज से एहतिराज़ करते हुवे पढ़े, ‘दूसरा’ येह कि इसे गौरो फ़िक्र से पढ़े और इस के मआनी में सोच बिचार करे, ‘तीसरा’ येह कि जो कुछ पढ़े उस पर अमल भी करे।

रुकूअ भी तीन अश्या से कामिल होता है : ‘पहला’ येह कि पीठ को बराबर रखो, ऊंचा या नीचा न रखो, ‘दूसरा’ येह कि अपने हाथ घुटनों पर रखो और उंगलियां खुली हुई हों, ‘तीसरा’ येह कि कामिल इतमीनान से रुकूअ करो और ता’ज़ीम व वकार से रुकूअ की तस्बीहात मुकम्मल करो।

सजदा भी तीन बातों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तू अपने हाथ कानों के बराबर रख, ‘दूसरा’ येह कि कोहनियां खुली रख, ‘तीसरा’ येह कि मुकम्मल सुकून से सजदे की तस्बीहात मुकम्मल कर।

काएदा भी तीन चीज़ों से पायए तक्मील को पहुंचता है : ‘पहला’ येह कि तू दायां पाउं खड़ा रख और बाएं पर बैठ, ‘दूसरे’ येह कि तशहुद पूरी ता’ज़ीम से पढ़ और अपने और मुसलमानों के लिये दुआ मांग, ‘तीसरे’ येह कि इस के इख़्तिताम पर सलाम फेर ।

सलाम इस तरीके से पायए तक्मील को पहुंचता है कि दाई जानिब सलाम फेरते हुवे तेरी येह सच्ची निय्यत हो कि मैं दाई तरफ़ के फ़रिश्ते, मर्दो और औरतों को सलाम कर रहा हूं और इसी तरह बाई तरफ़ सलाम फेरते हुवे निय्यत कर और अपनी निगाह अपने दो कन्धों से मुतजाविज़ न कर।

इसी तरह इख्लास भी तीन चीज़ों से पूरा होता है : ‘एक’ येह कि नमाज़ से तेरा मुद्दआ रज़ाए इलाही का हुसूल हो लोगों की रजामन्दी का हुसूल न हो, ‘दूसरे’ येह कि नमाज़ की तौफ़ीक़ अल्लाह की तरफ़ से जान, ‘तीसरे’ येह कि तू इस की हिफाज़त कर ताकि इसे कियामत के दिन अल्लाह की बारगाह में पेश कर सके क्यूंकि फ़रमाने इलाही है :

जो शख्स नेकियां ले कर आया। येह नहीं फ़रमाया :

जिस ने नेकियां कीं, लिहाज़ा अपनी नेकियों को बुरे आ’माल से बरबाद कर के उस के हुजूर में न जा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 Tags

Namaz ka sahi tarika, namaz me dil, namaz ka poora sawab, namaz hadees

 

 

 

दोस्तों को शेयर कीजिये
Net In Hindi.com