कुरआन की तिलावत और इल्म की फ़ज़ीलत

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कुरआन, इल्म और उलमा

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जिस ने कुरआने मजीद की तिलावत की फिर येह समझा कि किसी को इस से भी उम्दा चीज़ दी गई है तो गोया उस ने अल्लाह तआला की अज़मत को मामूली समझा है ।

इरशादे नबवी है कि अल्लाह तआला के पास कुरआने मजीद से ज़ियादा मर्तबे वाला कोई शफ़ीअ नहीं है।

एक और फ़रमान है कि मेरी उम्मत की बेहतरीन इबादत कुरआने मजीद की तिलावत है।

एक और इरशाद है कि तुम में से ज़ियादा बेहतर वोह है जो कुरआने मजीद पढ़े और पढ़ाए ।

मजीद फ़रमाया कि दिलों को जंग इस तरह लग जाता है जैसे लोहे को, अर्ज़ किया गया : इस की चमक-दमक फिर कैसे लौटती है ? आप ने फ़रमाया : तिलावते कुरआन और मौत को याद करने से

हज़रते फुजल बिन इयाज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि कुरआने करीम का इल्म रखने वाला इस्लाम का झन्डा उठाने वाला है लिहाज़ा उस के लिये येह मुनासिब नहीं कि वोह लह्वो लइब में मश्गूल लोगों के साथ मिल कर लह्वो लड़ब में मश्गूल हो जाए, भूलने वाले के साथ भूले नहीं और बेहूदा लोगों के साथ मिल कर बेहूदगी न करे क्यूंकि येह कुरआने मजीद की ता’ज़ीम के खिलाफ़ है, आप ने मजीद फ़रमाया : जो सुब्ह करते ही सूरए हश्र की आखिरी आयात की तिलावत करता है, अगर वोह उसी दिन मर जाए तो उसे शुहदा में लिखा जाता है और उस पर शहीदों की मोहर लगाई जाती है और जो शख्स इन को रात की इब्तिदा में तिलावत करता है और अगर वोह उसी रात मर जाए तो उस पर शहीदों की मोहर लगाई जाती है।

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इल्म और उलमा की फजीलत ।

इस सिलसिले में बहुत ही कसरत से अहादीस वारिद हैं चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआला जिस शख्स से भलाई का इरादा फ़रमाता है उसे दीन की समझ देता है और उसे राहे रास्त की हिदायत फ़रमाता है।

नीज़ इरशादे गिरामी है कि उलमा, अम्बियाए किराम अलैहिमुसलाम के वारिस हैं।

और येह बदीही बात है कि अम्बियाए किराम से बढ़ कर किसी का रुत्बा नहीं और अम्बियाए किराम के वारिसों से बढ़ कर किसी वारिस का मर्तबा नहीं है।

फ़रमाने नबवी है कि सब लोगों से अफ़्ज़ल वोह मोमिन आलिम है कि जब उस की तरफ़ रुजूअ किया जाए तो वोह नफ्अ दे और जब उस से बे नियाज़ी बरती जाए तो वोह भी बे नियाज़ हो जाए ।

नीज़ इरशाद फ़रमाया कि मर्तबए नुबुव्वत से सब से ज़ियादा करीब, आलिम और मुजाहिद हैं।

उलमा इस लिये कि इन्हों ने रसूलों के पैगामात लोगों तक पहुंचाए और मुजाहिद इस लिये कि इन्हों ने अम्बियाए किराम के अहकामात को ब ज़ोरे शम्शीर पूरा किया और उन के अहकामात की पैरवी की, मजीद इरशाद है कि पूरे कबीले की मौत एक आलिम की मौत से आसान है।

और फ़रमाया कि क़ियामत के दिन उलमा की सियाही की दवातें शुहदा के खून के बराबर तोली जाएंगी।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फरमान है कि आलिम इल्म से कभी सैर नहीं होता यहां तक कि जन्नत में पहुंच जाता है ।

मजीद फरमाया कि मेरी उम्मत की हलाकत दो चीजों में है, इल्म का छोड़ देना और माल का जम्अ करना ।

एक और इरशाद है कि आलिम बन या मुतअल्लिम, या इल्मी गुफ्तगू सुनने वाला या इल्म से महब्बत करने वाला बन और पांचवां या’नी इल्म से बुग्ज़ रखने वाला न बन कि हलाक हो जाएगा ।

और फ़रमाया कि तकब्बुर इल्म के लिये बहुत बड़ी मुसीबत है।

हुकमा का कौल है कि जो सरदारी के हुसूल के लिये इल्म हासिल करता है वोह तौफ़ीक़ और रइय्यत दारी का एहसास खो देता है। फ़रमाने इलाही है : अलबत्ता मैं अपनी निशानियों से ऐसे लोगों को फेर दूंगा जो दुनिया  में तकब्बुर करते हैं। हज़रते शाफ़ेई रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जिस ने कुरआन का इल्म सीखा उस की कीमत बढ़ गई, जिस ने इल्मे फ़िक़ह सीखा उस की क़द्र बढ़ गई, जिस ने हदीस सीखी उस की दलील कवी हुई, जिस ने हिसाब सीखा उस की अक्ल पुख्ता हुई, जिस ने नादिर बातें सीखीं उस की तबीअत नर्म हुई और जिस शख्स ने अपनी इज्जत नहीं की उसे इल्म ने कोई फ़ाइदा न दिया।

हज़रते हसन बिन अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि जो शख्स उलमा की महफ़िल में अक्सर हाज़िर होता है उस की ज़बान की रुकावट दूर होती है, जेह्न की उलझनें खुल जाती हैं और जो कुछ वोह हासिल करता है उस के लिये बाइसे मसर्रत होता है। उस का इल्म उस के लिये एक विलायत है और फ़ाइदामन्द होता है।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला जिस बन्दे को रद्द कर देता है, इल्म को उस से दूर कर देता है ।

एक और इरशाद में है कि जहालत से बढ़ कर कोई फर्क नहीं है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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