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सब्र, रज़ा और कनाअत की बरकत और फ़ज़ीलतें – Net In Hindi.com

सब्र, रज़ा और कनाअत की बरकत और फ़ज़ीलतें

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बन्दे को सब्र, अल्लाह की रज़ा और कनाअत रखना चाहिए

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

रज़ा  की फजीलत आयाते कुरआनी से साबित है चुनान्चे, इरशादे इलाही है :

अल्लाह तआला उन से राजी हुवा और वह अल्लाह से राजी हुवे।

नीज़ इरशाद होता है :

नहीं है बदला एहसान का मगर एहसान ।

एहसान का मुन्तहा यह है कि अल्लाह तआला अपने बन्दे से राजी हो और यह मकाम बन्दे को राजी ब रज़ाए इलाही होने से मिलता है।

नीज़ इरशादे इलाही होता है : अदन के बागों में पाकीज़ा रहने की जगहें हैं और अल्लाह की तरफ़ से बहुत बड़ी रजामन्दी है। अल्लाह तआला ने इस आयत में रज़ा  को जन्नते अदन से बाला ज़िक्र किया है जैसे कि ज़िक्र को नमाज़ पर फ़ौकिय्यत दी है, चुनान्चे, फ़रमाया  बेशक नमाज़ बे हयाई और ना मा’कूल बातों से मन्अ करती है और अल्लाह की याद बहुत बडी चीज़ है।

पस जैसा कि नमाज़ से मा’बूदे हक़ीक़ी (अल्लाह तआला) की शान बहुत बुलन्द है इसी तरह जन्नत से रब्बे जन्नत की रज़ा  आ’ला व अरफ़अ है बल्कि यही चीज़ हर जन्नती का मक्सूद व मतमहे नज़र होगी चुनान्चे, हदीस शरीफ़ में है कि अल्लाह तआला मोमिनों पर तजल्ली फ़रमाएगा और कहेगा कि मुझ से मांगो तो मोमिन कहेंगे ऐ अल्लाह ! हम तुझ से तेरी रज़ा  चाहते हैं। तो गोया कमाले फ़ज़ीलत को पा कर भी वोह रब की रज़ा  चाहेंगे।

बन्दे की रज़ा  तलबी की हक़ीक़त का हम ज़िक्र ज़रूर करते, बन्दे से अल्लाह तआला की खुशनूदी का जो मतलब है वो इस मा’ना से ज़ियादा करीब है जिस का ज़िक्र हम बन्दे के लिये खुदा की महब्बत के ज़िमन में कर चुके हैं, चूंकि लोगों के फ़हम इस मा’ना की हक़ीक़त को नहीं पा सकते इस लिये इस हक़ीक़त के जिक्र का कोई जवाज़ नहीं है और कौन है जो अपने नफ़्स के इदराक से इस हक़ीक़त को पा ले।

हक़ीक़त तो यह है कि दीदारे इलाही से बढ़ कर कोई और चीज़ नहीं है मगर मोमिनों की दीदार के वक्त रज़ाए इलाही की ख्वाहिश इस वज्ह से होगी कि यही चीज़ दाइमी दीदार का सबब है पस गोया जब उन्हों ने इन्तिहाई बुलन्द मरातिब और उम्मीदों की आखिरी हृदों को छू लिया और दीदार की लज्जत से लुत्फ़ अन्दोज़ हो गए तो उन्हों ने मजीद कुछ सवाल करने के जवाब में दाइमी दीदार को ही मांग लिया और यह जान गए कि रज़ाए इलाही ही दाइमी तौर पर हिजाबात के उठ जाने का सबब है और फ़रमाने इलाही है :

हमारे नज़दीक इस से भी ज़ियादा है। बा’ज़ मुफस्सिरीन का कहना है, इस से ज़ियादा के यह माना हैं कि जन्नतियों को रब्बुल आलमीन की जानिब से तीन तोहफे मिलेंगे, पहले यह कि इन्हें जन्नत में ऐसा तोहफा दिया जाएगा जो पहले से इन के पास मौजूद नहीं होगा, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

पस कोई नफ्स नहीं जानता कि उस के लिये कौन सी आंखों की ठन्डक छुपाई गई है। दूसरे यह कि इन्हें इन के रब की तरफ़ से सलाम होगा जो इस तोहफ़े से ज्यादा होगा, जैसा कि इरशादे इलाही है :

रब्बे रहीम की तरफ से उन्हें सलाम कहा जाएगा। तीसरा येह कि अल्लाह तआला फ़रमाएगा : मैं तुम से राज़ी हूं और यह बात सलाम और तोहफे से भी बेहतर और आ’ला है, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

और अल्लाह की तरफ़ से बहुत बड़ी खुशनूदी है। या’नी उन ने मतों से भी अफ्ज़ल है जिन को इन्हों ने हासिल कर लिया है, पस येही अल्लाह तआला की मुक़द्दस रज़ा  है जो बन्दे की रज़ाजूई का फल है।

मुसीबतों पर सब्र करना और अल्लाह से राज़ी रहना

अब रही अहादीसे मुक़द्दसा से रज़ा  की फ़ज़ीलत तो इस सिलसिले में बहुत सी अहादीस वारिद हुई हैं चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है कि आप ने सहाबा की एक जमाअत से पूछा : तूम कौन हो ? उन्हों ने कहा : मोमिन, आप ने फ़रमाया : तुम्हारे ईमान की क्या अलामत है ? उन्हों ने कहा : हम मसाइब पर सब्र करते हैं, फ़राखी में शुक्र अदा करते हैं और अल्लाह की कजा पर राज़ी रहते हैं। आप ने फ़रमाया : रब्बे का’बा की कसम तुम मोमिन हो ।

फ़रमाने नबवी है कि हुकमा और उलमा अपनी फ़िकह की वज्ह से इस अम्र के करीब हुवे कि नबी हो जाएं ।

कम रिज्क पर राज़ी होना

हदीस शरीफ़ में है कि उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिसे इस्लाम की हिदायत मिली और वोह अपनी मा’ मूली गुज़र अवकात पर राजी रहा ।

फ़रमाने नबवी है कि जो शख्स अल्लाह तआला से मा’मूली रिज्क पर राजी हो गया अल्लाह तआला उस के आ’माल पर राजी हो जाता है।

और फ़रमाया : जब अल्लाह तआला किसी बन्दे पर राजी हो जाता है तो उस को आज़माइश में डाल देता है अगर वोह सब्र करे तो अल्लाह तआला उस बन्दे को पसन्द कर लेता है और अगर वोह आजमाइश पर राजी हो जाए तो अल्लाह उसे (अपने ख़ास बन्दों में) चुन लेता है।

फ़रमाने नबवी है : जब कियामत का दिन होगा अल्लाह तआला मेरी उम्मत के एक गुरौह के पर पैदा फ़रमाएगा और वोह इन परों से उड़ कर कब्रों से निकलते ही सीधे जन्नत में जा पहुंचेंगे, वोह जन्नत की ने मतों से लुत्फ़ अन्दोज़ होंगे और जहां चाहेंगे आराम करेंगे, फ़िरिश्ते उन से कहेंगे : क्या तुम हिसाब देख आए हो ? वोह कहेंगे कि हम ने हिसाब नहीं देखा, फ़रिश्ते पूछेगे : क्या तुम पुल सिरात पार कर आए हो? वोह कहेंगे : हम ने सिरात को नहीं देखा। फ़रिश्ते कहेंगे : क्या तुम ने जहन्नम को देखा है ? वो कहेंगे : हम ने किसी चीज़ को नहीं देखा।

तब फ़िरिश्ते कहेंगे : तुम किस की उम्मत में से हो ? वोह कहेंगे हम मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की उम्मत हैं, फ़रिश्ते कहेंगे : हम तुम्हें अल्लाह की कसम देते हैं येह बताओ तुम दुनिया में क्या अमल किया करते थे ? वोह कहेंगे कि हम में दो आदतें थीं जिन्हों ने हमें इस मन्ज़िल तक पहुंचाया है और अल्लाह का फज्ल व रहमत हमारे शामिले हाल है, फ़रिश्ते कहेंगे : वो दो आदतें कौन सी थीं ? वोह कहेंगे : हम जब तन्हा होते तो गुनाह करते हमें शर्म आती थी चे जाए की हम अलल ए’लान गुनाह करते और हम अल्लाह तआला के अता कर्दा मा’मूली रिज्क पर राजी हो गए थे, फ़रिश्ते येह सुन कर कहेंगे, तब तो तुम्हारा यही बदला होना चाहिये था ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ गिरौहे फुकरा ! तुम दिल की गहराइयों से अल्लाह की अता पर राजी हो जाओ तो अपने फ़क्र (गरीबी) का सवाब पा लोगे वरना नहीं

मूसा अलैहहिस्सलाम  के वाक़िआत में है कि बनी इस्राईल ने इन से कहा : अल्लाह तआला से हमारे लिये कोई ऐसा अमल दरयाफ़्त कीजिये जिस के बाइस वोह हम से राजी हो जाए । मूसा अलैहहिस्सलाम  ने बारगाहे इलाही में अर्ज की : ऐ अल्लाह तू ने इन की गुजारिश सुन ली, इन्हों ने क्या कहा है ? रब तआला ने फ़रमाया : ऐ मूसा ! इन से कह दो कि येह मुझ से राजी हो जाएं या’नी मेरे दिये हुवे कमो बेश पर राजी हो जाएं, मैं इन से राजी हो जाऊंगा।

सब्र के फायदे और फ़ज़ाइल

रहे सब्र के फ़ज़ाइल तो रब तआला ने कुरआने मजीद में नव्वे से ज़ियादा मकामात पर सब्र का ज़िक्र फ़रमाया है और अकसर दरजात और भलाइयों को सब्र से मन्सूब किया है और इन्हें सब्र का फल करार दिया है और साबिरों के लिये ऐसे इन्आमात रखे हैं जो किसी और के लिये नहीं रखे, चुनान्चे, इरशादे इलाही है :

उन लोगों पर उन के रब की तरफ से दुरूद हैं और रहमत है और येही लोग हिदायत पाने वाले हैं। लिहाज़ा साबित हुवा कि हिदायत, रहमत और सलवात तीन चीजें साबिरीन के लिये मख्सूस हैं।

चूंकि इस में तमाम आयाते रब्बानी का लाना ना मुमकिन है लिहाज़ा इस से सिर्फ़ नज़र करते हुवे सिर्फ चन्द अहादीस दर्ज की जाती हैं । फ़रमाने नबवी है कि सब्र आधा ईमान है।

मजीद फ़रमाया कि थोड़ी सी वोह चीज़ जो तुम्हें यक़ीन और पुख्ता सब्र से मिल जाए और जिस शख्स को इन में से कुछ हिस्सा मरहमत कर दिया जाए उस से अगर रात की इबादत और दिन के रोजे फ़ौत हो जाएं तो कोई परवा नहीं। (वाज़ेह रहे कि यहां इबादत और रोजों से मुराद नफ़्ल इबादत और रोजे हैं)। और तुम्हारा मामूली रिज्क पर सब्र करना मुझे इस बात से ज़ियादा पसन्द है कि तुम में से हर एक तमाम के आ माल पर कारबन्द हो कर आए लेकिन मैं तुम पर ख़ौफ़ करता हूं कि मेरे बाद तुम पर दुनिया खोल दी जाएगी, पस तुम एक दूसरे को अच्छा न समझने लगो और इस सबब से फ़रिश्ते तुम्हें अच्छा न समझने लगें, जिस ने सब्र किया और सवाब की उम्मीद रखी उस ने सवाब के कमाल को पा लिया, फिर आप ने येह आयत पढ़ी :  जो कुछ तुम्हारे पास है तमाम हो जाता है और जो कुछ अन्लाह के यहां है बाकी रहने वाला है. और अलबत्ता हम सब्र करने वालों को जज़ा देंगे।

हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से ईमान के मुतअल्लिक पूछा गया, आप ने फ़रमाया : ईमान, सब्र और सखावत का नाम है।

और फ़रमाया : सब्र, जन्नत के खज़ानों में से एक खज़ाना है। एक मरतबा आप से दरयाफ़्त किया गया कि ईमान क्या है ? आप ने फ़रमाया : सब्र ।

और येह बात हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के इस फरमान के मिस्ल है जिस में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ्त किया गया था कि हज क्या है ? तो आप ने फ़रमाया : वुकूफे अरफ़ा ।या’नी अहम रुक्न वुकूफे अरफ़ात है।

फ़रमाने नबवी है कि सब से उम्दा अमल वोह है जिसे नफ्स बुरा समझता है।

मरवी है कि अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम  को वही फ़रमाई कि मेरे अख़्लाक़ जैसे अपने अख़्लाक़ बनाओ और मेरे अख़्लाक़ में से येह है कि मैं सबूर हूं।

अता रज़ीअल्लाहो अन्हो ने इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जब अन्सार में तशरीफ़ लाए तो फ़रमाया : क्या तुम मोमिन हो ? वोह चुप रहे, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो बोले : हां या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ! आप ने फ़रमाया : तुम्हारे ईमान की अलामत क्या है ? उन्हों ने अर्ज की : हम फ़राख दस्ती में अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं, मसाइब में सब्र करते हैं और क़ज़ाए इलाही पर राज़ी रहते हैं, आप ने येह सुन कर फ़रमाया : रब्बे का’बा की क़सम ! तुम मोमिन हो ।)

फ़रमाने नबवी है : अपनी ना पसन्दीदा चीज़ों पर तुम्हारा सब्र बहुत उम्दा चीज़ है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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