सच्चा इश्क और मोहब्बत क्या है?

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इश्क और मोहब्बत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाक, कौल (Quotes). 

मोहब्बत की तारीफ :- मोहब्बत नाम है पसंदीदा चीज़ की तरफ तबियत के झुकाव का अगर यह झुकाव शिद्दत इख़्तियार कर जाये तो उसे इश्क कहते हैं. उस में ज्यादती हौती रहती है, यहाँ तक की आशिक महबूब का बिना ख़रीदा हुआ गुलाम बन जाता है. और माल और दौलत उस पर कुर्बान कर देता है.

 

युसूफ अलैहिस्सलाम से ज़ुलैखा की मोहब्बत

ज़ुलैखा की मिसाल ले लीजिये जिस ने युसूफ अलैहिस्सलाम की मोहब्बत में अपना हुस्न,माल और दौलत कुर्बान कर दिया. ज़ुलैखा के पास सत्तर ऊँटों के बोझ के बराबर जवाहरात व मोती थे जो उसने इश्के युसूफ में निसार कर दिए. जब भी कोई यह कह देता की मैंने युसूफ अलैहिस्सलाम को देखा है तो वह उसे बेश कीमती हार दे देती यहाँ तक की कुछ भी बाकि ना रहा. उस ने हर चीज़ का नाम युसूफ रख छोड़ा था और मोहब्बत की ज्यादती में युसूफ अलैहिस्सलाम के सिवा सब कुछ भूल गई थी. जब आसमान की तरफ देखती तो उसे हर सितारे में युसूफ का नाम नज़र आता था.

कहते हैं की जब ज़ुलैखा ईमान ले आई और हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम की जौज़ियत (निकाह में) में आ गई तो सिवाए इबादत और अल्लाह की तरफ तवज्जोह के उसे कोई काम नहीं था. अगर युसूफ अलैहिस्सलाम उसे दिन को अपने पास बुलाते तो कहती की रात को आउंगी और रात को अपने पास बुलाते तो दिन का वादा करती. युसूफ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ज़ुलैखा! तू तो मेरी मोहब्बत में दीवानी थी, जवाब दिया यह उस वक़्त की बात है की जब में आप की मोहब्बत की हकीकत से वाकिफ से वाकिफ न थी, अब मै आप की मोहब्बत की हकीकत पहचान चुकी हूँ इसलिए अब मेरी मोहब्बत में तुम्हारी शिरकत भी गंवारा नहीं! हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया की मुझे अल्लाह ने इस बात का हुक्म फ़रमाया है और मुझे बताया है की तेरे बतन (पेट) से अल्लाह ता आला दो बेटे पैदा करेगा और दोनों को नुबुव्वत से सरफ़राज़ फ़रमाया जायेगा. ज़ुलैखा ने कहा अगर यह हुक्मे रब्बी है और इस में अल्लाह की हिकमत है तो में सरे तस्लीम झुकाती हूँ.

 

मजनू ने अपना नाम लैला बताया

मजनू से किसी ने पुछा तेरा नाम क्या है? बोला लैला! एक दिन उस से किसी ने कहा लैला मर गई? मजनू ने कहा लैला नहीं मरी वह तो मेरे दिल में है और मै ही लैला हूँ. एक दिन जब मजनू का लैला के घर से गुज़र हुआ तो वह सितारों को देखता हुआ गुजरने लगा. किसी ने कहा, निचे देखो शायद तुम्हारी लैला नज़र आ जाये. मजनू बोला मेरे लिए लैला के घर के ऊपर चमकने वाले सितारे की जियारत ही काफी है.

 

मोहब्बत की इब्तेदा और इन्तहा

जब मंसूर हल्लाज को कैद में अठ्ठारह दिन गुज़र गए तो जनाब शिबली रहमतुल्लाह अलैह ने उन के पास जाकर दरयाफ्त किया ए मंसूर! मोहब्बत क्या है? मंसूर ने जवाब दिया आज नहीं कल यह सवाल पूछना जब दूसरा दिन हुआ और उन को कैद से निकाल कर मक़तल की तरफ ले गए तो वहां मंसूर ने शिबली को देख कर कहा शिबली! मोहब्बत की इब्तेदा जलना और इन्तहा क़त्ल हो जाना है!”

इशारा- जब मंसूर रहमतुल्लाह अलैह की निगाहे हक देखने वाली निगाहों ने इस हकीकत को पहचान लिया की अल्लाह ता आला के ज़ात के सिवा हर चीज़ बातिल है, और ज़ाते इलाही ही हक़ है तो वह अपने नाम तक तो भूल गए,  लिहाज़ा जब उनसे सवाल किया गया की तुम्हारा नाम क्या है? तो जवाब दिया अनल हक़ मैं हक हूँ (I am the Truth)

मुन्तहा में है की मोहब्बत का सिदक तीन चीज़ों में ज़ाहिर हौता है.मोहब्बत करने वाला महबूब की बातों को सबसे अच्छा समझता है. उस की मजलिस को तमाम मजलिस से बेहतर समझता है उस की रज़ा को औरों की रज़ा पर तरजीह देता है.

कहते हैं की इश्क पर्दा दारी करने वाला और राज़ों को ज़ाहिर करने वाला है और वज्द ज़िक्र की शीरीनी के वक़्त रूह के, गलबा ए शौक का बोझ उठाने से आज़िज़ हो जाता है. यहाँ तक की अगर वज्द की हालत में इन्सान का कोई अंग भी काट लिया जाये तो उसे महसूस नहीं होगा.

हिकायत – एक आदमी फुरात नदी में नहा रहा था, उस ने सुना की कोई शख्श यह आयत पढ़ रहा है “ऐ मुजरिमों आज अलहिदा हो जाओ!” यह सुनते ही वह तड़पने लगा और डूब कर मर गया.

 

मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह बगदादी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं, मैंने बसरा में एक बुलंद मकाम पर खड़े हुआ एक नौजवान को देखा जो लोगों से कह रहा था की जो आशिकों की मौत मरना चाहे उसे इस तरह मरना चाहिए( क्यों की इश्क में मौत के बगैर कोई लुत्फ़ नहीं है) इतना कहा और वहां से खुद को गिरा दिया. लोगो ने जब उसे उठाया तो वह दम तोड़ चूका था. जनाब जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है की तसव्वुफ़ अपनी पसंद को तर्क कर देने का नाम है.”

हिकायत – ज़हरुर रियाज़ में है, हजरते जुन्नुन मिस्री रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं एक दिन में खाना ए काबा में दाखिल हो गया. मैंने वहां सुतून के करीब एक बरहना नौजवान मरीज़ को पड़े देखा जिसके दिल से रोने की आवाजें निकल रही थी. मैंने करीब जाकर उसे सलाम किया और पुछा तुम कौन हो? उस ने कहा मै एक गरिबुल वतन आशिक हूँ. मै उस की बात समझ गया और मैंने कहा मै भी तेरी तरह हूँ. वह रो पड़ा, उस का रोना देख कर मुझे भी रोना आ गया. उस ने मुझे देख कर चीख मारी और उस की रूह परवाज़ कर गई. मैंने उस पर अपना कपडा डाला और कफ़न लेने चला आया. जब में कफ़न लेकर वापस पहुंचा तो वह जवान वहां नही था. मेरे मुह से अचानक सुबहानअल्लाह निकला. तब मै ने हतिफे गैबी की आवाज़ सुनी जो कह रहा था. ए जुन्नुन उस की ज़िन्दगी में शैतान उसे ढूंढता था, मगर ना पा सका,दोज़ख के मालिकों ने उसे ढूंडा मगर ना पा सका, रिजवान ए जन्नत भी उसे तलाश के बावजूद ना पा सका. मैंने पुछा फिर वह कहाँ गया? जवाब आया अपने इश्क, कसरते इबादत और तौबा में जल्दी की वजह से वह अपने क़ादिर रब्बुल इज्ज़त के हुज़ूर पहुँच गया है.

 

आशिक की पहचान

एक शख्श से आशिक के मुताल्लिक पुछा गया, उन्होंने कहा आशिक मेल मिलाप से दूर , गौर व फ़िक्र में डूबा हुआ और चुप चाप रहता है. जब उसे देखा जाये वह नज़र नहीं आता. जब बुलाया जाये तो सुनता नहीं जब बात की जाये तो समझता नहीं और जब उस पर कोई मुसीबत आ जाये तो ग़मगीन नहीं होता. वह भूक की परवाह और नंगे होने का एहसास नहीं रखता. किसी की धमकियों से नहीं डरता, वह तन्हाई में अल्लाह ता आला से इल्तिजायें करता है. उस की रहमत से उन्स और मोहब्बत रखता है. वह दुनिया के लिए दुनिया वालों से नहीं झगड़ता.

जनाब अबू तुरब बख्शी रहमतुल्लाह अलैह ने इश्क की पहचान में यह चाँद शेर कहे हैं जिनका मफहूम इस प्रकार है 

तु धोका ना दे क्यों की महबूब के पास दलीलें और आशिक के पास महबूब तोहफों के वसाइल हैं..

एक पहचान यह है की वह अपनी सख्त आज़माइश से लुत्फ़ अन्दोज़ होता है और महबूब जो करता है वह उस पर खुश होता है.

उस की तरफ से मना करना भी अतिया है और फकर उस के लिए इज्ज़त अफजाई और एक फौरी नेकी है.

एक पहचान यह है की वह महबूब की फरमाबरदारी का पक्का इरादा रखता है अगरचे उसे मलामत करने वाले मलामत करें

एक पहचान यह है की तुम उसे मुस्कुराता हुआ पाओगे अगरचे उस के दिल में महबूब की तरफ से आग सुलग रही हो

एक पहचान यह है की तुम उसे खाताकारों की गुफ्तगू समझता हुआ पाओगे.

और एक पहचान यह है की तुम उसे हर उस बात का हिफाज़त करने वाला पाओगे जिसे वह कहता है.

मोहब्बत का आधा ज़र्रा

हिकायत – हजरत ईसा अलैहिस्सलाम एक जवान के करीब से गुज़ारे जो बाग़ को पानी दे रहा था. उस ने आप से अर्ज़ किया की अल्लाह से दुआ कीजिये,अल्लाह ता आला मुझे एक ज़र्रा अपने इश्क का अता फरमा दे. आपने फ़रमाया एक ज़र्रा बहुत बड़ी चीज़ है तुम उस को उठाने की ताक़त नहीं रखते. कहने लगा अच्छा आधे ज़र्रे का सवाल कीजिये,  हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से सवाल किया, ऐ अल्लाह! इसे आधा ज़र्रा अपने इश्क का अता फरमा दे! उस के हक में यह दुआ कर के आप वहां से रवाना हो गए.

काफी दिनों के बाद आप फिर उसी रास्ते से गुज़रे और उस जवान के बारे में पुछा लोगो ने कहा वह तो दीवाना हो गया है और कहीं पहाड़ों की तरफ निकल गया है. हज़रत ईसा ने अल्लाह से दुआ की ऐ अल्लाह ! मेरी उस जवान से मुलाकात करा दे. फिर तो आप ने देखा वह एक चट्टान पर खड़ा आसमान की तरफ देख रहा था. आप ने उसे सलाम कहा मगर वह खामोश रहा. आप ने कहा मुझे नहीं जानते में ईसा हूँ? अल्लाह ता आला ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तरफ वह्यी की की “ऐ ईसा !जिस के दिल में मेरी मोहब्बत का आधा ज़र्रा मौजूद हो वह इंसानों बात कैसे सुनेगा? मुझे अपनी इज्ज़त व जलाल की कसम! अगर उसे आरी से दो टुकड़े भी कर दिया जाये तो उसे महसूस भी नहीं होगा.

जो शख्श तीन बातों का दावा करता है और खुद उन को तीन चीज़ों से पाक नहीं रखता तो उस का दावा झूठा है.

जो शख्श ज़िक्रे इलाही की मिठास को पाने का दावा करता है मगर दुनिया से भी मोहब्बत करता है.

जो अपने आमाल में इखलास का दावा करता है मगर लोगों से अपनी इज्ज़त अफजाई का ख्वाहिशमंद है.

जो अपने खालिक की मोहब्बत का दावा करता है मगर अपने नफ्स को ज़लील नहीं करता.

फरमाने रसूल स.अ.व. है की “मेरी उम्मत पर अनकरीब एसा ज़माना आने वाला है. जब वह पांच चीज़ों से मोहब्बत करेंगे और पांच चीज़ों को भूल जायेंगे.

1 दुनिया से मोहब्बत रखेंगे,आखिरत को भूल जायेंगे

2 माल से मोहब्बत रखेंगे, और हिसाब के दिन को भूल जायेंगे

3 मखलूक से मोहब्बत रखेंगे और खालिक को भूल जायेंगे.

4 गुनाहों से मोहब्बत रखेंगे मगर तौबा को भूल जायेंगे

5 मकानों से मोहब्बत रखेंगे और कब्र को भूल जायेंगे.”

 

हज़रत मंसूर इब्ने अम्मार रहमतुल्लाह अलैह ने एक जवान को नसीहत करते हुए कहा ऐ जवान! तुझे तेरी जवानी धोके में ना डाले, कितने जवान ऐसे थे जिन्होंने तौबा को मुवख्खर (टालना) और अपनी उम्मीदों को लम्बा कर दिया, मौत को भुला दिया और यह कहते रहे की कल तौबा कर लेंगे, परसों तौबा कर लेंगे यहाँ तक की उसी गफ़लत में मलकुल मौत आ गया और वह अँधेरी कब्र में जा सोये, न उन्हें माल ने ना उन्हें गुलामों ने ना औलाद ने और ना ही मन बाप ने कोई फायदा दिया, फरमाने इलाही है की

“उस दिन अमवाल व औलाद कुछ फायदा ना देंगे.”

ऐ रब्बे जुल जलाल ! हमें मौत से पहले तौबा की तौफिक दे, हमें ख्वाबे गफ़लत से होशियार फरमा दे और सय्य्दुल मुरसलीन सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की शफाअत नसीब फरमा

 

मोमिन की तारीफ

मोमिन की तारीफ यह है की वह हर घडी तौबा करता रहे और अपने पिछले गुनाहों पर शर्मिंदा रहे, थोड़ी सी मता ए दुनिया पर राज़ी रहे, दुनियावी कामों को भूल कर आखिरत की फ़िक्र करे और खुलुसे दिल से अल्लाह ता आला की इबादत करता रहे.

 

एक बखील मुनाफ़िक का बीवी को तंदूर में बंद करने का किस्सा

एक मुनाफ़िक बेहद बखील था उस ने अपनी बीवी को कसम दी की अगर तू ने किसी को कुछ दिया तो तुझ पर तलाक है. एक दिन मांगने वाला उधर आ निकला और उस ने खुदा के नाम पर सवाल किया, औरत ने उसे तीन रोटियां दे दी. वापसी में उसे वही बखील मिल गया और पुछा तुझे यह रोटियां किस ने दी है? साईल ने उस के घर के बारे में बताया की मुझे वहां से मिली हैं, बखील तेज़ कदमों से घर की तरफ चल पड़ा और घर पहुँच कर बीवी से बोला में ने तुझे कसम नहीं दी थी की किसी साईल को कुछ नहीं देना?बीवी बोली मांगने वाले ने अल्लाह के नाम पर सवाल किया था लिहाज़ा में टाल ना सकी.

कंजूस ने जल्दी से तंदूर भड़काया, जब तंदूर सुर्ख हो गया तो बीवी से उठ अल्लाह के नाम पर तंदूर में दाखिल हो जा ! औरत खड़ी हो गई और अपने जेवरात लेकर तंदूर की तरफ चल पड़ी, कंजूस चिल्लाया की जेवरों को यहीं छोड़ जा! औरत ने कहा आज मेरा महबूब से मुलाक़ात का दिन है, में उस की बारगाह में बन संवर कर जाउंगी और जल्दी से तंदूर में घुस गई. उस बदबख्त ने तंदूर को बंद कर दिया. जब तीन दिन गुज़र गए तो उस ने तंदूर का ढक्कन उठा कर अन्दर झाँका मगर यह देख कर हैरान रह गया की औरत अल्लाह की कुदरत से उस में सही सलामत बैठी हुई थी. हतिफे गैबी ने आवाज़ दी “क्या तुझे इल्म नहीं की आग हमारे दोस्तों को नहीं जलाती.”

 

फिरौन की बीवी हज़रत आसिया का ईमान

हज़रत आसिया रज़िअल्लाहो अन्हा ने अपना ईमान अपने शोहर फिरौन से छुपाया था. जब फिरौन को उस का पता चला तो उस ने हुक्म दिया की उसे तरह तरह के आजाब दिए जाएँ ताकि हज़रत आसिया र.अ.ईमान को छोड़ दें, लेकिन आसिया साबित कदम रही तब फिरौन ने कीलें मंगवाई और उन के जिस्म पर कीलें गडवा दीं और फिरौन कहने लगा अब भी वक़्त है ईमान को छोड़ तो मगर हज़रत आसिया ने जवाब दिया तू मेरे वजूद पर कादिर है. लेकिन मेरा दिल मेरे रब की बनाह में है. अगर तू मेरा हर अंग काट दे तब भी मेरा इश्क बढ़ता जायेगा.

मूसा अलैहिस्सलाम का वहां से गुज़र हुआ, आसिया ने उन से पुछा मेरा रब मुझ से राज़ी है या नहीं? हज़रत मूसा ने फ़रमाया ऐ आसिया! आसमान के फ़रिश्ते तेरे इंतेज़ार में हैं और अल्लाह ता आला तेरे कारनामों पर फख्र फरमाता है, सवाल कर तेरी हर हाजत पूरी होगी. आसिया ने दुआ मांगी ऐ मेरे रब मेरे लिए अपने जवारे रहमत में जन्नत में मकान बना दे. मुझे फिरौन उस के मज़ालिम और उन ज़ालिम लोगों से नजात अता फरमा!

हज़रत सलमान  रज़िअल्लाहो अन्हो कहते हैं आसिया को धुप में तकलीफ दी जाती थी. जब लौट जाते तो फ़रिश्ते अपने परों से आप पर साया किया करते थे और वह अपने जन्नत वाले घर देखती रहती थी.

हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हा कहते हैं की जब फिरौन ने हज़रत आसिया को धुप में लिटा कर चार कीलें उन के जिस्म में गडवा दीं और उन के सीने पर चक्की के पाट रख दिए तो जनाबे आसिया ने आसमान की तरफ निगाह उठा कर अर्ज़ की “ऐ मेरे रब मेरे लिए अपने जवारे रहमत में जन्नत में मकान बना दे”

जनाबे हसन रहमतुल्लाह अलैह कहतें हैं अल्लाह ता आला ने उस दुआ के तुफैल आसिया को फिरौन से बा इज्ज़त रिहाई अता फरमाई और उन को जन्नत में बुला लिया जहाँ वह जिन्दों की तरह खाती पीतीं हैं.

इस किस्से से यह बात वाजेह हो गई की मुसीबतों और तकलीफों में अल्लाह की पनाह मांगना उस से आरज़ू करना और रिहाई का सवाल करना मोमिनों और नेकों का तरीका है.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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