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सदका खैरात करने की फ़ज़ीलत – Net In Hindi.com

सदका खैरात करने की फ़ज़ीलत

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फजीलते सदका – इस्लाम में गरीबों को सदका खैरात देने का सवाब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जो शख़्स हलाल की कमाई से एक खजूर के बराबर सदका करता है (और अल्लाह तआला हलाल की कमाई ही का सदका कबूल फ़रमाता है) तो अल्लाह तआला उसे अपनी बरकत से क़बूल फ़रमा लेता है फिर उस की साहिबे सदका के लिये परवरिश करता है जैसे तुम अपने बछेरों की परवरिश करते हो यहां तक कि वो सदका पहाड़ के बराबर हो जाता है।

दूसरी हदीस में है (जैसे तुम में से कोई एक अपने बछेरे की परवरिश करता है) यहां तक कि एक लुक्मा उहुद पहाड़ के बराबर हो जाता है। इस हदीसे पाक की तस्दीक़ फ़रमाने इलाही से होती है :

क्या उन्हों ने नहीं जाना कि अल्लाह वो ही है  जो अपने बन्दों से तौबा कबूल फरमाता है और सदक़ात लेता है। और इरशाद फ़रमाया :

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अल्लाह तआला सूद को मिटाता है और सदक़ात को बढ़ाता है।

फ़जाइले सदक़ात

सदका माल को कम नहीं करता और अल्लाह तआला उस बख्रिशश के बदले इन्सान की इज्जतो वकार को बढ़ाता है और जो शख्स अल्लाह की रज़ाजूई के लिये तवाज़ोअ करता है, अल्लाह तआला उसे बुलन्द मर्तबा अता फ़रमाता है।

तबरानी की रिवायत है कि सदका माल को कम नहीं करता और न ही बन्दा सदक़ा देने के लिये अपना हाथ बढ़ाता है मगर वो अल्लाह तआला के हाथ में जाता है या’नी अल्लाह तआला उसे साइल के हाथ में जाने से पहले कबूल कर लेता है और कोई बन्दा बे परवाई के बा वुजूद सवाल का दरवाज़ा नहीं खोलता मगर अल्लाह तआला उस पर फ़क़र को मुसल्लत कर देता है, बन्दा कहता है : मेरा माल है मेरा माल है मगर उस के माल के तीन हिस्से हैं, जो खाया वो फ़ना हो गया जो पहना वो पुराना हो गया जो राहे खुदा में दिया वो हासिल कर लिया और जो इस के सिवा है वो उसे लोगों के लिये छोड़ जाने वाला है।

हदीस शरीफ़ में है : तुम में से कोई एक ऐसा नहीं है मगर अल्लाह तआला बगैर किसी तर्जुमान के उस से गुफ्तगू फ़रमाएगा, आदमी अपनी दाईं तरफ़ देखेगा तो उसे वो ही कुछ नज़र आएगा जो उस ने आगे भेजा है और बाईं तरफ़ वो ही कुछ दिखाई देगा जो उस ने आगे भेजा है और अपने सामने देखेगा तो उसे मुक़ाबिल में आग नज़र आएगी पस तुम उस आग से बचो अगर्चे खजूर का एक टुकड़ा ही राहे खुदा में दे कर बच सको।

हदीस शरीफ़ में है कि अपने चेहरों को आग से बचाओ अगर्चे खजूर के एक टुकड़े ही से क्यूं न हो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  फ़रमाते हैं कि सदक़ा गुनाहों को इस तरह मिटा देता है जैसे पानी आग को बुझा देता है।

आप ने फ़रमाया : ऐ का’ब बिन उजरा ! जन्नत में वो ह खून और गोश्त नहीं जाएगा जो हराम ज़रीए से हासिल कर्दा माल से फला फुला हो, ऐ का’ब बिन उजरा ! लोग जाने वाले हैं, बा’ज़ जाने वाले अपने नफ्स को रिहाई देने वाले हैं और बा’ज़ इसे हलाक करने वाले हैं। ऐ का’ब बिन उजरा ! नमाज़ नज़दीकी है, रोज़ा ढाल है, सदक़ा गुनाहों को इस तरह दूर कर देता है जैसे चिकने पथ्थर से काई उतर जाती है।।

एक रिवायत में है कि जैसे पानी आग को बुझा देता है ।

फ़रमाया : सदक़ा अल्लाह तआला के गज़ब को ठन्डा कर देता है और मौत की ज़हमतों को दूर कर देता है ।

एक रिवायत में है कि अल्लाह तआला सदके के बदले ना गवार मौत के सत्तर दरवाजे बन्द कर देता है।

हदीस शरीफ में है कि लोगों के फैसले होने तक लोग अपने सदक़ात के साए में रहेंगे।

दूसरी रिवायत में है कि कोई आदमी सदके की चीज़ नहीं निकालता मगर इसे सत्तर शैतानों के जबड़ों से जुदा करता है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ्त किया गया कि कौन सा सदका अफ्जल है ? तो आप ने फरमाया : कम हैसिय्यत शख्स का कोशिश से खर्च करना और अपने अहलो इयाल से इस की इब्तिदा करना ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : एक दिरहम एक लाख दिरहम से सबक़त ले गया, एक शख्स ने अर्ज किया : वो ह कैसे ? आप ने फ़रमाया : एक शख्स का बहुत मालो दौलत था

और उस ने अपने पहलू से एक लाख दिरहम निकाल कर सदका कर दिया और दूसरे शख्स के पास सिर्फ दो दिरहम थे, उस ने इन में से एक राहे खुदा में दे दिया।

फरमाने नबवी है कि साइल को खाली हाथ न लौटाओ अगर्चे उसे गाए बकरी का चिरा हुवा सुम ही क्यूं न दे दो।

हदीस शरीफ़ में है कि सात शख्स ऐसे हैं जो रहमते इलाही के साए में होंगे जिस दिन रहमते इलाही के सिवा कोई साया न होगा, इन में से एक वो ह है जिस ने इन्तिहाई राज़दारी से राहे खुदा में खर्च किया यहां तक कि उस के बाएं हाथ को पता न चला कि दाएं हाथ ने क्या खर्च किया है ।

नेकी के रास्ते ये ह हैं, बुरी जगहों से बचो, पोशीदा सदक़ा अल्लाह के गज़ब को ठन्डा कर देता है और सिलए रेहमी ज़िन्दगी बढ़ाती है।

तबरानी की रिवायत में है कि नेक काम, बुरी जगहों से बचना और खुझ्या सदक़ा अल्लाह के गज़ब को ठन्डा कर देता है और सिलए रेहमी ज़िन्दगी बढ़ाती है और हर अच्छा काम सदक़ा है, दुन्या में अच्छे काम करने वाले आख़िरत में अच्छे काम करने वालों के साथ होंगे और जन्नत में सब से पहले भलाई करने वाले दाखिल होंगे।

तबरानी और अहमद की दूसरी रिवायत में है : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि सदका क्या है ? तो आप ने फ़रमाया : दूना दो गुना और अल्लाह के हां इस से भी ज़ियादा है, फिर आप ने येह आयत पढ़ी : “कौन शख्स है जो अल्लाह को अच्छा क़र्ज़ दे पस वोह दुगना कर दे उस को उस के वासिते बहुत दुगना”। नीज़ पूछा गया : या रसूलल्लाह ! कौन सा सदका अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : फ़कीर को पोशीदा देना और कम माल वाले का कोशिश से खर्च करना, फिर आप ने यह आयत पढ़ी :अगर तुम सदक़ात को ज़ाहिर करो तो अच्छा है और अगर तुम इन्हें छुपाओ और फ़कीर को दो

तो तुम्हारे लिये बहुत अच्छा है। जिस ने किसी मुसलमान को कपड़ा पहनाया तो जब तक उस के जिस्म पर इस कपड़े का एक धागा भी मौजूद रहेगा अल्लाह तआला सदका देने वाले इन्सान के उयूब को ढांपता रहेगा।

दूसरी रिवायत में है कि जिस मुसलमान ने किसी बरह्ना मुसलमान को कपड़ा पहनाया, अल्लाह तआला उसे जन्नत का लिबास पहनाएगा, जिस मुसलमान ने किसी भूके मुसलमान को खाना खिलाया अल्लाह तआला उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जिस मुसलमान ने किसी प्यासे मुसलमान को सैराब किया अल्लाह तआला उसे जन्नत में मोहर शुदा शराबे तहूर पिलाएगा। मिस्कीन को सदक़ा, खैरात है और रिश्तेदार पर सदक़ा करने में दोहरा सवाब है, सदके का और सिलए रेहमी का सवाब ।

पूछा गया : कौन सा सदक़ा अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : हर उस रिश्तेदार को देना जो तेरे लिये अपने दिल में बुग्ज व अदावत रखता है।

आप ने फ़रमाया : जिस ने किसी शख्स को दूध पीने के लिये बकरी वगैरा दी ताकि वो ह उस का दूध पी कर उसे वापस कर दे, या कर्ज दिया या सफ़र का साथी दिया, उसे गुलाम आज़ाद करने के बराबर सवाब मिलता है ।मजीद फ़रमाया कि हर क़र्ज़ सदका है।

एक रिवायत में है कि फ़रमाया : मैं ने मे’राज की रात जन्नत के दरवाजे पर लिखा देखा कि सदके का दस गुना और कर्ज का अठ्ठारह गुना सवाब है।

फ़रमाया : जो किसी तंगदस्त की मुश्किल आसान कर देता है, अल्लाह तआला दुन्या और आखिरत में उस पर आसानी कर देता है।

पूछा गया : या रसूलल्लाह ! कौन सा इस्लाम बेहतर है ? आप ने फ़रमाया : खाना खिलाना और हर वाकिफ़ और अजनबी पर तुम्हारा सलाम कहना ! साइल ने अर्ज की, कि मुझे हर चीज़ की हक़ीक़त बतलाइये ! आप ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हर चीज़ को पानी से पैदा किया है, फिर मैं ने कहा : मुझे ऐसे अमल के मुतअल्लिक बताइये जिस के सबब मैं जन्नत में जाऊं ? आप ने फ़रमाया : खाना खिला, सलाम किया कर, सिलए रेहमी कर और रात को जब लोग सो रहे हों, नमाज़ पढ़, तू जन्नत में सलामती के साथ दाखिल होगा।।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह की इबादत करो, मिस्कीनों को खिलाओ और सलाम करो, ब सलामत जन्नत में जाओगे ।

फ़रमाने नबवी है कि रहमत के नुजूल के अस्बाब में से मुसलमान मिस्कीन को खाना खिलाना है जिस ने अपने मुसलमान भाई को खाने और पीने से सैराब किया, अल्लाह तआला उस के और दोज़ख़ के दरमियान सत्तर खन्दकों का फ़ासिला कर देता है जिन में से हर एक खन्दक पांच सो साल के सफ़र की मसाफ़त पर है। ।

फ़रमाने नबवी है : अल्लाह तआला कियामत के दिन इरशाद फ़रमाएगा कि ऐ इन्सान ! मैं बीमार हुवा था मगर तू ने इयादत नहीं की थी। इन्सान कहेगा : मैं तेरी कैसे इयादत करता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब फ़रमाएगा : तुझे मालूम नहीं मेरा फुलां बन्दा बीमार है मगर तू उस की इयादत को न आया, क्या तुझे मालूम नहीं था कि अगर तू उस की इयादत करता तो मुझे उस के करीब पाता। ऐ इन्सान ! मैं ने तुझ से खाना खिलाने के लिये कहा था मगर तू ने मुझे खाना नहीं दिया था। इन्सान कहेगा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझे कैसे खाना खिलाता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब फ़रमाएगा : तुझे इल्म नहीं था कि अगर तू उसे खाना खिलाता तो उसे मेरे यहां हासिल करता, ऐ इन्सान ! मैं ने तुझ से पानी तलब किया था मगर तू ने मुझे सैराब नहीं किया था । इन्सान कहेगा कि मैं तुझे कैसे सैराब करता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब तआला फ़रमाएगा : मेरे फुलां बन्दे ने तुझ से पानी मांगा था मगर तू ने उसे पानी नहीं पिलाया था, क्या तुझे मा’लूम नहीं था कि अगर उसे पानी पिलाता तो मेरे यहां इस का अज्र पाता।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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