सही नमाज़ – नमाज़ में खुशूअ और खुज़ूअ

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नमाज़ में खुज़ूअ और खुशूअ

अल्लाह ताआला  का इरशाद है

“वह मोमिन नजात पाएंगे जो अपनी नमाज़ खुशूअ और खुज़ूअ के साथ अदा करते हैं”

उलमा ने फ़रमाया है की खुशूअ दो मानो में इस्तेमाल हौता है, बाज़ उलमा ने इसे अफआल ए कल्ब (दिल के कामों) में शुमार किया है जैसे डर, खौफ, ख़ुशी वगैरह और बाज़ ने उसे आज़ाए ज़ाहीरी के अफआल में शुमार किया है जिसे इत्मिनान से खड़ा होना, बे तवज्जोही और बे परवाही से बचना वगैरह. खुशूअ के माना में एक यह भी इख्तिलाफ है की यह नमाज़ के फराइज़ में से है या फ़ज़ाइल में से, जो उसे फराइज़े नमाज़ से समझते हैं उन की दलील यह हदीस है.

“बन्दे के लिए नमाज़ में वही कुछ है जिसे वह अच्छी तरह से समझता है.”

और फरमाने इलाही है “और गफ़लत, ज़िक्र के मुखालिफ है” जैसा की फरमाने इलाही है “तुम गाफेलीन में से ना बनो.”

बैहकी ने मोहम्मद बिन सीरीन रहमतुल्लाह अलैह से यह रिवायत नकल की है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जब नमाज़ अदा फरमाते तो आसमान की तरफ नज़र फरमाते, तब यह आयत नाज़िल हुई. अब्दुर रज्जाक ने इस रिवायत में इतना इजाफा किया है की आपको खुशूअ का हुक्म दिया गया चुनाचे उस के बाद से आपने अपनी मुबारक आँखों को सजदा की जगह पर मारकूज़ फरमा दिया.

हाकिम और बैहकी ने हज़रत अबूहुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जब नमाज़ पढ़ते तो आसमान की तरफ नज़र फरमाते, जिस पर यह आयत नाज़िल हुई, तब आपने अपने सर ए अक्दस को झुका लिया.

हज़रत हसन रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की नबी करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का फरमान है “पांच नमाज़ों की मिसाल एसी है जैसे तुम में से किसी के घर के सामने एक बड़ी नहर बहती हो और वह उस में रोजाना पांच बार ग़ुस्ल करता हो तो क्या उस के जिस्म पर मैल रहेगा?” लिहाज़ा जब हुज़ूरे क़ल्ब और खुशूअ से नमाज़ पढ़ी जाये तो इन्सान कबीरा  गुनाहों के अलावा तमाम गुनाहों से पाक हो जाता है.बगैर खुशूअ के नमाज़ रद कर दी जाती है, फरमाने नबवी है “जिसने दो रक्आत नमाज़ पढ़ी और “उस के दिल में किसी किस्म का दुनियावी ख्याल नहीं आया तो उस के पिछले तमाम गुनाह बख्श दिए जाते है.”

फरमाने नबवी है “नमाज़ की फर्ज़ियत, हज का हुक्म तवाफ़ व मनासिफे हज का हुक्म अल्लाह ताआला के ज़िक्र के लिए दिया गया है अब अगर उन की अदायगी के वक़्त दिल में ज़िक्र ए खुदा की अज़मत व हैबत ना हो तो उस इबादत की  कोई कीमत नहीं.” फरमाने नबवी है जिसे “नमाज़ ने फहश (गंदे) और बुरे कामों से नहीं रोका वह अल्लाह ताआला  से दूर ही होता जायेगा.”

हज़रत बक्र बिन अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का कौल है, “ए इन्सान अगर तू अपने मालिक के हुज़ूर बिना इज़ाज़त के और बगैर किसी तर्जुमान के गुफ्तगू करना चाहता है तो उस के दरबार में दाखिल हो जा, पुछा गया यह कैसे होगा?उन्होंने जवाब दिया वज़ू को मुकम्मल कर ले, फिर मस्जिद में चला जा, अब तु अल्लाह के दरबार में आ गया, अब बगैर किसी तर्जुमान के गुफ्तगू कर.”

हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहो अन्हा का इरशाद है हम और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम आपस में बातें करते थे, जब नमाज़ का वक़्त आ जाता तो अल्लाह ताआला  की अजमत की वजह से हम ऐसे हो जाते जैसे एक दुसरे को पहचानते भी नहीं. फरमाने नबवी है “अल्लाह ताआला उस नमाज़ की तरफ नहीं देखता जिस में इन्सान का दिल उस के बदन के साथ इबादत में शामिल नहीं होता.”

हजरते इब्राहीम अलैहहीस्सलाम जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो काफी फासिले से उन के दिल की धड़कन सुनी जाती. हज़रत सईद तनुखी रहमतुल्लाह अलैह जब नमाज़ पढ़ते तो उनके आंसू उन के चेहरे और दाढ़ी पर गिरते रहते. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक आदमी को देखा वह नमाज़ की हालत में अपनी दाढ़ी से खेल रहा था. आपने फ़रमाया अगर इस के दिल में खुशूअ होता तो इस के आज़ा पुर सुकून होते.”

हज़रत अली रज़ीअल्लाहो अन्हो की नमाज़

जब नमाज़ का वक़्त आता तो हज़रत अली रज़ीअल्लाहो अन्हो के चेहरे का रंग बदल जाता और आप पर कपकपी तारी हो जाती, पुछा गया ए अमीरुल मोमिनीन! आप को क्या हो गया है? आप ने फ़रमाया अल्लाह ताआला  की उस अमानत की अदाएगी का वक़्त आ गया है? जिसे अल्लाह ताआला  ने आसमान व ज़मीन और पहाड़ों पर पेश किया था  मगर उन्होंने माज़ूरी ज़ाहिर कर दी थी और मैंने उसे उठा लिया.

रिवायत है की जब अली बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो वज़ू करते तो उन का रंग बदल जाता, घर वाले कहते आप को वज़ू के वक्त क्या तकलीफ लाहिक हो जाती है? आप जवाब देते, जानते नहीं हो मै किस की बारगाह में हाज़िर होने की तयारी कर रहा हूँ.

हज़रत हातिम असम से उन की नमाज़ के बारे में सवाल किया गया, उन्होंने कहा जब नमाज़ का वक़्त आ जाता है, मै पूरी तरह वज़ू कर के उस जगह आ जाता हूँ जहाँ में नमाज़ पढना चाहता हूँ, जब मेरे आज़ा पुरसुकून हो जाते हैं तो मै नमाज़ के लिए खड़ा होता हूँ. उस वक़्त काअबा को अपने सामने , पुल सिरात को कदमों के नीचे, जन्नत को दायें दोज़ख को बाएं, मलकुल मौत को पीछे और इस नमाज़ को आखिरी नमाज़ समझ कर खौफ व उम्मीद के दरमियाँ खड़ा हो जाता हूँ. दिल में तस्दीक करते हुए तकबीर कहता हूँ. ठहर ठहर कर तिलावत करता हूँ. तवाज़ो के साथ रुकूअ करता हूँ, खुशूअ सजदा करता हूँ, बाएं रान पर बैठता हूँ, बाएं पैर को बिछाता और दायें को खड़ा करता हूँ और सरापा ख़ुलूस बन जाता हूँ मगर यह नहीं जनता की मेरी नमाज़ कुबूल हुई या नहीं.”

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है,खूशुअ और खुज़ू की दो रक्आतें सियाह दिल वाले की सारी रात की इबादत से बेहतर हैं,” नबी का फरमान है “आखिर ज़माना में मेरी उम्मत के कुछ ऐसे लोग होंगे जो मस्जिदों में हल्का बना कर बैठेंगे दुनिया और दुनिया की मोहब्बत का ज़िक्र करते रहेंगे, उन की मजलिसों में ना बैठना अल्लाह ताआला  को उन की कोई ज़रुरत नहीं है.”

नमाज़ में चोरी

हज़रत हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं, नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “क्या मै तुम को बदतरीन चोर बताऊँ? सहाबा ए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज़ किया हुज़ूर वह कौन है? आप ने फ़रमाया,  नमाज़ चुराने वाले हैं. अर्ज़ किया गया हुज़ूर नमाज़ में चोरी कैसे होती है? आप ने फ़रमाया, वह रुकुअ और सजदा सही तौर पर नहीं करेंगे.”

नबी का फरमान है, “क़यामत के दिन सब से पहले नमाज़ के बारे में पुछा जायेगा अगर नमाज़े पूरी होंगी तो हिसाब आसन हो जायेगा अगर नमाज़े कुछ कम होंगी तो अल्लाह ताआला  फरिश्तों से फरमाएगा. अगर मेरे बन्दे के कुछ नवा फिल हों तो उन से उन नमाज़ों को पूरा कर दो” नबी स.अ.व. का फरमान है, “बन्दे के लिए दो रक्अत नमाज़ पढने की तौफिक से बेहतर कोई और इनाम नहीं है.”

हज़रत उमर फारुके आज़म रज़ीअल्लाहो अन्हो जब नमाज़ पढने का इरादा करते तो आप का जिस्म कांपने लगता और दांत बजने लगते. आप से आप के बारे में पुछा गया तो कहा अमानत की अदायगी और फ़र्ज़ पूरा करने का वक़्त करीब आ गया है और मैं नहीं जनता की उसे कैसे अदा करूँगा.

सूफियों की नमाज़

हिकायत – हज़रत खलफ बिन अय्यूब रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ में थे की उन्हें किसी जानवर ने काट लिया और खून बहने लगा मगर उन्हें महसूस ना हुआ, यहाँ तक की इब्ने सईद बाहर आये और उन्होंने आप को बताया और खून आलूदा कपडा धोया पुछा गया आप को जानवर ने काट लिया और खून भी बहा मगर आप को महसूस ना हुआ? आप ने जवाब दिया, उसे कैसे महसूस होगा जो अल्लाह ताआला के सामने खड़ा हो उस के पीछे मलकुल मौत हो बाएं तरफ जहन्नम और कदमों के नीचे पुल सीरात हो.

हज़रत उमर बिन ज़ुर रहमतुल्लाह अलैह जलीलुल कद्र आबिद और जाहिद थे. उन के हाथ में एक एसा जख्म पड़ गया की हकीमों ने कहा, इस हाथ को काटना पड़ेगा, आप ने कहा काट दो,  हकीमों ने कहा आप को रस्सियों से जकड़े बगेर एसा करना ना मुमकिन है. आप ने कहा एसा ना करो बल्कि जब में नमाज़ शुरू करूँ तब काट लेना चुनाचे जब आपने नमाज़ शुरू की तो आप का हाथ काट लिया गया मगर आप को महसूस भी ना हुआ.

   

         

  

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