शैतान इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन है

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शैतान की इन्सान से दुश्मनी और अदावत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया : दिल में उतरने की दो जगहें हैं, एक जगह फ़रिश्ते के उतरने की वह है जो नेकी पर तम्बीह करती है और हक़ की तस्दीक की जानिब रगबत दिलाती है लिहाज़ा जो आदमी अपने अन्दर येह बात महसूस करे वो इसे अल्लाह तआला की रहमत समझे और खुदावन्द की तारीफ़ व तौसीफ़ करे, दूसरी जगह दुश्मन की है जो फ़ितना व फ़साद की जानिब मैलान पैदा करता, हक़ की तकज़ीब और नेकियों से मन्अ करता है, जो शख्स अपने दिल में येह बात महसूस करे वो अल्लाह तआला से शैताने रजीम की शरारतों से पनाह मांगे, फिर आप ने येह आयत तिलावत फ़रमाई : शैतान तुम्हें फ़क़र  का वा’दा देता है और बुरे काम करने का हुक्म देता है। हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि दो फ़िकरें  हैं जो इन्सान के दिल में गर्दिश करती रहती हैं, एक हक़ की फ़िक्र और दूसरी दुश्मनी की फ़िक्र होती है, अल्लाह तआला उस बन्दे पर रहम करे जो अपने अज़ाइम का कस्द करता है, जो काम उसे अल्लाह तआला की तरफ़ से नज़र आता है उसे पूरा करता है और जो उसे दुश्मन की तरफ़ से नज़र आता है उसे छोड़ देता है।

हज़रते जाबिर बिन उबैदा अदवी रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं : मैं ने हज़रते अला बिन ज़ियाद रज़ीअल्लाहो अन्हो से अपने दिल में पैदा होने वाले वस्वसों की शिकायत की तो उन्हों ने इरशाद फ़रमाया : दिल की मिसाल उस घर जैसी है जिस में चोरों का गुज़र होता है, अगर उस में कुछ मौजूद होता है तो वोह उसे निकाल ले जाने के बारे में सोचते हैं वरना उसे छोड़ देते हैं या’नी जो दिल ख्वाहिशात से खाली होता है उस में शैतान दाखिल नहीं होता।

फ़रमाने इलाही है : बेशक मेरे बन्दों पर तेरे लिये कोई गलबा नहीं।

लिहाज़ा हर वोह इन्सान जो ख्वाहिशात की पैरवी करता है वोह अल्लाह का नहीं बल्कि शहवत का बन्दा है इसी लिये अल्लाह तआला उस पर शैतान को मुसल्लत कर देता है, इरशादे इलाही है :

क्या तू ने उस को नहीं देखा जिस ने अपनी ख्वाहिश को मा’बूद बना लिया । इस आयत में इस अम्र की जानिब इशारा है कि जिस का मा’बूद और खुदा उस की ख्वाहिश हो वोह अल्लाह का बन्दा नहीं होता।

अलग अलग तरह के शैतान होते हैं

इसी लिये हज़रते अम्र बिन आस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम शैतान मेरे और मेरी नमाज व किराअत के दरमियान हाइल हो जाता है। आप ने फ़रमाया : येह शैतान है जिसे खिन्जब कहा जाता है, तुम जब भी इस के वस्वास महसूस करो अल्लाह तआला से इस से पनाह मांगो और तीन मरतबा बाई जानिब थूक दो । रावी कहते हैं चुनान्चे, मैं ने ऐसा ही किया और अल्लाह तआला ने मुझे इस से दूर कर दिया ।

हदीस शरीफ़ में है वुजू (में नक्स पैदा करने) के लिये एक शैतान है जिस का नाम वल्हान है, अल्लाह तआला की रहमत से इस से बचने का सवाल करो। ।

दिल से शैतानी वसाविस इस सूरत में दूर हो सकते हैं कि इन्सान इन वसाविस के ख़िलाफ़ बातें सोचे या’नी जिक्रे इलाही करे क्यूंकि दिल में किसी चीज़ का ख़याल आता है तो पहले वाली चीज़ का खयाल मिट जाता है लेकिन हर उस चीज़ का ख़याल जो जाते रब्बानी और उस के फ़रामीन के इलावा हो, शैतान की जौलानगाह बन सकती है मगर ज़िक्रे खुदा ऐसी चीज़ है जिस की वज्ह से मोमिन का दिल मुतमइन हो जाता है और जान लेता है कि शैतान की ताक़त नहीं जो इस में ज़ोर आज़माई करे, चूंकि हर चीज़ का इलाज उस की ज़िद से किया जाता है, लिहाज़ा जान लीजिये कि तमाम शैतानी वसाविस की ज़िद ज़िक्रे इलाही है, शैतान से पनाह चाहना है और रिहाई पाना है और तुम्हारे इस कौल का कि मैं अल्लाह से शैताने रजीम से पनाह मांगता हूं और ला हौला वाला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलियिल अज़ीम”  का येही मन्शा है, इस मक़ाम पर वोही लोग सरफ़राज़ होते हैं जो मुत्तकी हों और ज़िक्रे खुदा जिन की रग रग में रच बस गया हो और शैतान ऐसे लोगों पर बे ख़बरी के आलम में अचानक हम्ले किया करता है, फ़रमाने इलाही है :  तहकीक वोह लोग जो परहेज़गार हैं जब उन को शैतान की तरफ़ से वस्वसा लगता है तो वोह  जिक्र करते हैं फिर अचानक वोह देखने लगते हैं। मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो इस फ़रमाने इलाही : “खन्नास के वस्वसों के शर से”। की तफ्सीर में कहते हैं कि वोह दिल पर फैला हुवा होता है, जब इन्सान ज़िक्रे खुदा करता है तो वोह पीछे हट जाता है और सुकड़ जाता है और जब इन्सान ज़िक्र से गाफिल होता है तो वोह हस्बे साबिक़ दिल पर तसल्लुत जमा लेता है।

ज़िक्रे इलाही और शैतान के वसाविस का मुकाबला ऐसे है जैसे नूर और जुल्मत, रात और दिन और जिस तरह येह एक दूसरे की ज़िद हैं। चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

। उन पर शैतान गालिब आया और उन्हें यादे – इलाही से गाफिल कर दिया। हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि शैतान इन्सान के दिल पर अपनी नाक लगाए हुवे है, जब इन्सान अल्लाह तआला को याद करता है तो वोह पीछे हट जाता है और जब वोह यादे इलाही से गाफ़िल हो जाता है तो शैतान उस के दिल को निगल लेता है।

इब्ने वज्जाह ने एक हदीस नक्ल की है जिस में कहा गया है कि जब आदमी चालीस साल को पहुंच जाता है और तौबा नहीं कर पाता तो शैतान उस के मुंह पर हाथ फेरता और कहता है कि मुझे अपने बाप की कसम ! येह उस का चेहरा है जो फलाह नहीं पाएगा।

शैतान इन्सान के वुजूद में खून की तरह गर्दिश करता है

और जैसे इन्सानी ख्वाहिशात व शहवात इन्सान के खून और गोश्त-पोस्त से जुदा नहीं होतीं, इसी तरह शैतान की सल्तनत भी इन्सानी दिल पर मुहीत है और इन्सान के खून और गोश्त व पोस्त पर जारी व सारी है चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है :

शैतान इन्सान के वुजूद में खून की तरह गर्दिश करता है लिहाज़ा इस की गुज़रगाहों को भूक से बन्द करो ।

आप ने भूक का ज़िक्र इस लिये फ़रमाया है कि शहवत को ख़त्म कर देती है और शैतान के रास्ते भी शहवात हैं।

शहवाते नफ़्सानी के दिल का घेराव करने के मुतअल्लिक इरशादे इलाही है : जिस में शैतान के कौल की ख़बर दी गई है कि उस ने कहा : “फिर अलबत्ता मैं उन के पास उन के आगे से उन के पीछे से उन के दाएं से और उन की बाई तरफ़ से आऊंगा।”

इस से पहले वाली आयत में है कि शैतान ने कहा कि “मैं अलबत्ता तेरी सीधी राह पर उन के लिये बैठुंगा”

फ़रमाने नबवी है कि शैतान इन्सान के रास्तों पर बैठ गया, उस के इस्लाम के रास्ते में बैठ कर उसे कहा : क्या तू इस्लाम कबूल करता है और अपने और अपने बाप दादा के दीन को छोड़ता है मगर उस इन्सान ने उस का कहा मानने से इन्कार कर दिया और इस्लाम ले आया फिर वोह हिजरत के रास्ते में बैठ गया और बोला : क्या तू हिजरत करता है और अपने वतन को और उस के ज़मीनो आस्मान को छोड़ता है ? मगर उस इन्सान ने उस की बात मानने से इन्कार कर दिया और हिजरत कर गया फिर उस के जिहाद के रास्ते में बैठ कर बोला : क्या तू जिहाद करना चाहता है हालांकि इस में जानो माल का ज़ियाअ है, जब तू जंग में जाएगा तो कत्ल हो जाएगा और तेरी औरतों से लोग निकाह कर लेंगे, तेरा माल आपस में बांट लेंगे मगर उस बन्दए खुदा ने शैतान की बात मानने से इन्कार कर दिया और जिहाद में शरीक हुवा और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस किसी ने ऐसे किरदार का मुजाहरा किया, फिर उसे मौत आ गई तो अल्लाह तआला के ज़िम्मए करम पर होगा कि वोह उसे जन्नत में दाखिल करे ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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