Shikayat Shayari in Hindi
शिकवा और शिकायत शायरी
दोस्तों क्या आप किसी से नाराज़ हैं, क्या आपको किसी से शिकायत है, आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपके लिए कुछ शिकवा, शिकायत और नाराज़गी पर कुछ खूबसूरत शेर ओ शायरी पेश कर रहे हैं, जिससे आप को शिकायत है, आप उन्हें ये शेर मेसेज कर सकते हैं.
अगर आपके पास भी शिकायत पर शायरी का कोई अच्छा शेर है तो उसे कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें.
सभी विषयों पर हिंदी शायरी की लिस्ट यहाँ है.
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शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हकीकतन
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं।
शिक़वा वो भी करते हैं शिकायत हम भी करते हैं,
मुहोब्बत वो भी करते हैं मुहोब्बत हम भी करते हैं।
आप नाराज़ हों, रूठे, के ख़फ़ा हो जाएँ,
बात इतनी भी ना बिगड़े कि जुदा हो जाएँ !!
हो जाते हो बरहम भी बन जाते हो हमदम भी
ऐ साकी-ए-मयखाना शोला भी हो,शबनम भी
खाली मेरा पैमाना बस इतनी शिकायत है -हसरत जयपुरी
जिन्दगी से तो खैर शिकवा था
मुद्दतों मौत ने भी तरसाया।
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Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
हम क्यूँ,शिकवा करें झूठा,क्या हुआ जो दिल टूटा
शीशे का खिलौना था, कुछ ना कुछ तो होना था, . -आनंद बख़्शी
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन मे नाराज़गी रहे !! -निदा फ़ाजली
तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी हैरान हु में….!-
तेरे मासूम सवालों से परेशां हूँ में ..~गुलज़ार
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है,
रिश्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है !!
अब्र-ए-आवारा से मुझको है वफ़ा की उम्मीद
बर्क-ए-बेताब से शिकवा है के पाइंदा नहीं
Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
किसी को भी कभी तुमसे शिकायत हो नही सकती
अगर जो ग़ौर से खुद का,कभी किरदार पढ़ लोगे
उसे ज़िद कि ‘वामिक़’-ए-शिकवा-गर किसी राज़ से नहो बा-ख़बर
मुझे नाज़ है कि ये दीदा-वार मिरी उम्र भर की तलाश है
तुम को नाराज़ ही रहना है तो कुछ बात करो ‘फ़राज़’,
चुप रहते हो तो मुहब्बत का गुमान होता है !!
अपनी क़िस्मत में लिखी थी धूप की नाराज़गी,
साया-ए-दीवार था लेकिन पस-ए-दीवार था !! -राहत इंदौरी
तेरी उम्मीद तेरा इन्तज़ार कब से है,
ना शब् को दिन से शिकायत ना दिन को शब् से है।
~फैज़
Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
वो पुर्सिश-ए-ग़म को आये हैं
कुछ कह न सकूँ चुप रह न सकूँ
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है
कह दूँ तो शिकायत होती है
कीन-ओ-काविश की मेरे दिल में गुंजाइश नही,
शिकवा हा-ए-ग़म को रखता हूँ यहाँ रू-पोश मैं !!
हुस्न और इश्क का हर नाज़ है पर्दे में अभी,
अपनी नजरों की शिकायत किसे पेश करूं
और कुछ ज़ख़्म मेरे दिल के हवाले मेरी जाँ,
ये मोहब्बत है मोहब्बत में शिकायत कैसी !!
अगर उसकी,निज़ामत में,हुकूमत की, रवायत है
शिकायत,शिकायत है,शिकायत है, शिकायत है
Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
थोड़ी देर और ठहर, ए नाराज़ ज़िन्दगी,
कुछ दुआयें मांग लूँ, मेरे अपनों के लिऐ।
हम को पहले भी न मिलने की शिकायत कब थी
अब जो है तर्क-ए-मरासिम का बहाना हम से
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम,
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!- शकील बदायुनी
Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
चाँद से शिकायत करूँ किसकी
हर कोई यहाँ रात का मुसाफ़िर है
तंग पैमाई का शिकवा साक़ी-ए-अज़ली से क्या
हमने समझा ही नही दस्तूर-ए-मैखाना अभी !! -~रहबर
ग़लत है जज़्ब-ए दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है,
न खेंचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियां क्यूं हो !!
तक़दीर का शिकवा बेमानी, जीना ही तुझे मंज़ूर नहीं,
आप अपना मुक़द्दर बन ना सके, इतना तो कोई मजबूर नहीं !!
थी शिकायत तो बात कर लेते
तरके तअलुक ही क्या जरूरी था!
Shikayat Shayari in Hindi शिकवा और शिकायत शायरी
तेरे हर दर्द को मुह्ब्बत की इनायत समझा
हम कोई तुम थे जो तुम से शिकायत करते!
हाय आदाबे मुह्ब्बत के तकाजे सागर
लब हिले आैर शिकायत ने दम तोड़ दिया!
ए मेरे लम्हाये नाराज़! कभी मिल तो सही
इस ज़माने से अलग हो के गुजारूं तुझको!
क्यूँ शिकायत हो खताओं की कभी ऐ दोस्त
ज़िंदगी यूँ भी खताओं के सिवा कुछ भी नहीं.!!
हिंदू भी नाराज़ हैं मुझसे मुसलमाँ भी हैं खफ़ा
हो के इंसा यार मेरे जीते जी मैं मर गया.!!
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Hinglish
Shikayat Shayari in Hindi Roman Font
shiqwa to ek chhed hai lekin hakekatan
tera sitam bhe tere inayat se kam nahin.
shiqwa vo bhe karate hain shikayat ham bhe karate hain,
muhobbat vo bhe karate hain muhobbat ham bhe karate hain.
ap naraz hon, roothe, ke khafa ho jaen,
bat itane bhe na bigade ki juda ho jaen !!
ho jate ho baraham bhe ban jate ho hamadam bhe
ai sake-e-mayakhana shola bhe ho,shabanam bhe
khale mera paimana bas itane shikayat hai -hasarat jayapure
jindage se to khairshiqwa tha
muddaton maut ne bhe tarasaya.
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ham kyoon,shikava karen jhootha,kya hua jo dil toota
sheshe ka khilauna tha, kuchh na kuchh to hona tha, . -anand bakhshe
duniya na jet pao to haro na khud ko tum
thode bahut to zahan me narazage rahe !! -nida fajale
tujhase naraz nahin jindage hairan hu mein….!-
tere masoom savalon se pareshan hoon mein ..~gulazar
shikava koe dariya ke ravane se nahin hai,
rishta he mere pyas ka pane se nahin hai !!
abr-e-avara se mujhako hai vafa ke ummed
bark-e-betab seshiqwa hai ke painda nahin
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kise ko bhe kabhe tumase shikayat ho nahe sakate
agar jo gaur se khud ka,kabhe kiradar padh loge
use zid ki ‘vamiq’-e-shikava-gar kise raz se naho ba-khabar
mujhe naz hai ki ye deda-var mire umr bhar ke talash hai
tum ko naraz he rahana hai to kuchh bat karo faraz,
chup rahate ho to muhabbat ka guman hota hai !!
apane qismat mein likhe the dhoop ke narazage,
saya-e-devar tha lekin pas-e-devar tha !! -rahat indaure
tere ummed tera intazar kab se hai,
na shab ko din se shikayat na din ko shab se hai.
~faiz
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vo pursish-e-gam ko aye hain
kuchh kah na sakoon chup rah na sakoon
khamosh rahoon to mushkil hai
kah doon to shikayat hote hai
ken-o-kavish ke mere dil mein gunjaish nahe,
shikava ha-e-gam ko rakhata hoon yahan roo-posh main !!
husn aur ishk ka har naz hai parde mein abhe,
apane najaron ke shikayat kise pesh karoon
aur kuchh zakhm mere dil ke havale mere jan,
ye mohabbat hai mohabbat mein shikayat kaise !!
agar usake,nizamat mein,hukoomat ke, ravayat hai
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thode der aur thahar, e naraz zindage,
kuchh duayen mang loon, mere apanon ke liai.
ham ko pahale bhe na milane ke shikayat kab the
ab jo hai tark-e-marasim ka bahana ham se
mohabbat he mein milate hain shikayat ke maze paiham,
mohabbat jitane badhate hai shikayat hote jate hai !!- shakel badayune
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chand se shikayat karoon kisake
har koe yahan rat ka musafir hai
tang paimae kashiqwa saqe-e-azale se kya
hamane samajha he nahe dastoor-e-maikhana abhe !! -~rahabar
galat hai jazb-e dil kashiqwa dekho jurm kis ka hai,
na khencho gar tum apane ko kashakash darmiyan kyoon ho !!
taqader kashiqwa bemane, jena he tujhe manzoor nahin,
ap apana muqaddar ban na sake, itana to koe majaboor nahin !!
the shikayat to bat kar lete
tarake taluk he kya jaroore tha!
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tere har dard ko muhbbat ke inayat samajha
ham koe tum the jo tum se shikayat karate!
hay adabe muhbbat ke takaje sagar
lab hile aair shikayat ne dam tod diya!
e mere lamhaye naraz! kabhe mil to sahe
is zamane se alag ho ke gujaroon tujhako!
kyoon shikayat ho khataon ke kabhe ai dost
zindage yoon bhe khataon ke siva kuchh bhe nahin.!!
कई रोज से न बोले , कहो क्या है शिकायत ,
गुस्सा न गया दिल से ऐसी भी क्या आफत ।
कुछ तो मुझे बताओ , क्या बात हो गई ,
नाराजगी है कैसी , कैसी ये बगावत ।
रूठे रहोगे ऐसे तो , होगा न गुजारा ,
बेचैनियाँ ये दिल की , पायेगी न राहत ।
क्या तुमको ना यकीन रहा , प्यार पे मेरे ,
या तुम्हारी कम हुई , मेरे लिए चाहत ।
मै सामने रहूँ , और तुम बात ना करो ,
ऐसी तो नही थी , यारा तेरी आदत ।
गुस्सा ही करो लेकिन , गुमसुम न रहो यूँ ,
तकरार करो मुझसे , तुमको है इजाजत ।
मुझको है ऐतवार की तुम मान जाओगे ,
ठुकराओगे कबतलक , मेरी पाक मुहब्बत ।
चलो देखते हैं हम भी , कि जीतता है कौन ,
नफरत तुम्हारी या कि मेरे प्यार की ताकत ।
Preeti Suman at 15:52
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2 comments:
दिगम्बर नासवा said…
मै सामने रहूँ , और तुम बात ना करो ,
ऐसी तो नही थी , यारा तेरी आदत …
बहुत खूब … आदत होती नहीं बस बन जाती है … लाजवाब शेर … मस्त गज़ल है
Verryyy niceeeee broo
दिल में शिकायत न हो तो वो प्यार कैसा?
कभी-कभी शिकवा-शिकायत ही प्यार को
और भी प्यारा बना देते हैं.
Yeh dillagi deewangi ki jarurt hi ab Kya padegi jab tumhi sath nhi.
शिकवे गिले केकारण ही
युउ जुरे है हम
पास पास रहते है युं ही
कभी अलग न होते हम
कुमार गौरव