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शोहर के जिम्मे बीवी के क्या क्या हक होते हैं हदीस की रौशनी में – Net In Hindi.com

शोहर के जिम्मे बीवी के क्या क्या हक होते हैं हदीस की रौशनी में

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शोहर पर बीवी के हुकूक

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

बीवियों के शोहरों पर बहुत से हुकूक हैं, इन में से एक येह भी है कि वोह उन से हुस्ने सुलूक से पेश आएं, उन की अक्ल की कमजोरी को मद्दे नज़र रखते हुवे उन से मेहरबानी का सुलूक करें और उन के दुख दर्द को दूर करें और अल्लाह तआला ने उन के हुकूक की अजमत में फ़रमाया है: “और लिया है उन्हों ने तुम से कौले मुस्तहकम”

और मजीद फ़रमाया कि “और करवट के साथी पर” कहा गया है कि इस साथी से मुराद औरत है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इन तीन बातों की उस वक्त वसिय्यत फ़रमाई जब कि आप की ज़बाने अक्दस विसाल शरीफ़ के वक़्त लड़ खड़ा रही थी और कलामे अन्वर में हल्कापन पैदा हो चला था। आप ने फ़रमाया : नमाज़, नमाज़ और वोह तुम्हारे हाथ जिन के मालिक हुवे उन्हें वो तक्लीफ़ न दो जिस के बरदाश्त करने की वोह ताकत नहीं रखते, औरतों के मुतअल्लिक अल्लाह तआला से डरो, अल्लाह से डरो, वोह तुम्हारे हाथों में कैद हैं, यानी वोह ऐसी कैदी हैं जिन्हें तुम ने अल्लाह तआला की अमानत के तौर पर लिया है और अल्लाह के कलाम से उन की शर्मगाहें तुम पर हलाल कर दी गई हैं।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जिस शख्स ने अपनी बीवी की बद खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे मसाइब पर हज़रते अय्यूब अलैहहिस्सलाम  के सब्र के अज्र के बराबर अज्र देगा और जिस औरत ने खाविन्द की बद खुल्की पर सब्र किया अल्लाह तआला उसे फ़िरऔन की बीवी आसिया के सवाब के मिस्ल सवाब अता फरमाएगा।

बीवी से हुस्ने सुलूक येह नहीं कि उस की तकालीफ़ को दूर किया जाए बल्कि हर ऐसी चीज़ को उस से दूर करना भी शामिल है जिस से तक्लीफ़ पहुंचने का ख़दशा (अंदेशा) हो और उस के गुस्से और नाराजी के वक्त हिल्म का मुजाहरा करना और इस मुआमले में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के उस्वए हसना को मद्दे नज़र रखना।

बीवी से अच्छा सुलूक करने का हुक्म

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बा’ज़ अज़वाजे मुतहहरात आप की बात को (ब तकाज़ाए कुदरत) (सूरतन) न भी मानतीं और उन में से कोई एक रात तक गुफ्तगू न किया करती थी मगर आप उन से हुस्ने सुलूक ही से पेश आया करते थे।

एक मरतबा हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो की बीवी ने आप की बात को न माना तो आप ने फ़रमाया कि ऐ लौंडी ! तू मेरे सामने बढ़ कर बात करती है ! उन्हों ने अर्ज की, कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की अज़वाजे मुतहहरात उन्हें दे लिया करतीं हालांकि वोह आप से बेहतर थे। हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : हफ्सा खाइबो ख़ासिर हुई अगर उस ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बात रद्द कर दी फिर आप ने हज़रते हफ्सा से फ़रमाया : इब्ने अबी कुहाफ़ा (हज़रते सिद्दीके अक्बर) की बेटी पर गैरत न करना क्यूंकि वोह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमकी महबूबा हैं और फिर आप ने उन्हें हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बात को रद्द करने से डराया।

औरत बीवी की गलतियों को दरगुज़र करना

मरवी है कि इन अज़वाजे मुतहहरात में से किसी ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सीनए अन्वर पर हाथ रख कर आप को पीछे हटाया तो उन की वालिदा ने इन्हें तहदीद की । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उन की मां की बातें सुन कर फ़रमाया कि इन से दर गुज़र करो येह इस से भी ज़ियादा कुछ किया करती हैं।

एक बार हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के दरमियान कुछ बात हो गई यहां तक कि हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो दाखिल हुवे और उन्हें फैसल बनाया गया जब उन्हों ने बात सुनना चाही तो हुजूर सरवरे काइनात सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते आइशा से फ़रमाया : तुम बात करोगी या मैं, हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  बोली कि बात आप ही करें मगर दुरुस्त, यह सुन कर हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने उन के मुंह पर ऐसा तमांचा मारा कि उन के मुंह से खून जारी हो गया और आप ने कहा : ऐ अपनी जान की दुश्मन क्या हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ना हक़ बात कहेंगे? हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हुजूर की पनाह तलाश की और आप की पुश्ते मुबारक के पीछे बैठ गई । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया कि हम ने तुम्हें इस लिये नहीं बुलाया था और न ही हमारा येह इरादा था कि हम तुम से येह बात चाहें ।

एक मरतबा हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  किसी बात में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से ख़फ़ा हो गई और कहा कि क्या आप वोही हैं जो समझते हैं कि मैं अल्लाह का नबी हूं आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह बात सुन कर मुस्कुरा दिये और हिल्मो करम की बिना पर येह बात बरदाश्त कर गए ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से फ़रमाया करते कि मैं तुम्हारी नाराज़ी और खुशी पहचानता हूं । हज़रते आइशा ने अर्ज की : हुजूर ! वोह कैसे ? आप ने फ़रमाया : जब तुम राज़ी होती हो तो कहती हो रब्बे मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कसम ! हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम आप ने सच फ़रमाया, मैं सिर्फ आप का नाम ही छोड़ती हूं।।

और येह भी कहा गया है कि इस्लाम में सब से पहली महब्बत हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से महब्बत थी।

और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हज़रते आइशा से फ़रमाया करते थे कि मैं तुम्हारे लिये ऐसा हूं जैसा अबू जुरआ, उम्मे जुरआ के लिये थे मगर मैं तुम को तलाक़ नहीं दूंगा।

और आप अपनी अज़वाजे मुतहहरात से येह भी फ़रमाते कि मुझे आइशा के बारे में तक्लीफ़ न दो, ब खुदा इस के सिवा तुम में से किसी के बिस्तर पर मुझ पर वहयी  नाज़िल नहीं होती।

औरतों पर नरमी और ज्यादा मेहरबानी

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम औरतों और बच्चों पर सब लोगों से ज़ियादा मेहरबान थे ।हर इन्सान के लिये मुनासिब येह है कि वोह खुश तबई, मिज़ाह और मुलाअबत से अपनी औरतों से उन की तकालीफ़ को रफ्अ करे क्यूंकि इन चीजों से औरतों के दिल खुश हुवा करते हैं। – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अपनी अज़वाजे मुतहहरात से मिज़ाह भी फ़रमा लिया करते थे

और उन से उन की अक्लों के मुताबिक़ अक्वाल व अफ्आल फ़रमाया करते यहां तक कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा से दौड़ में मुकाबला करते, कभी हज़रते आइशा आप से आगे निकल जाती और कभी आप सबक़त ले जाते और फ़रमाते कि येह उस दिन का बदला है ।

हदीस शरीफ़ में है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अपनी अज़वाजे मुतहहरात से सब से ज़ियादा खुश तबई फ़रमाने वाले थे।

बीवी की जायज़ ख्वाइशें पूरी करना

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा फ़रमाती हैं मैं ने हबशी और दूसरे लोगों की आवाजें सुनीं जो आशूरा के दिन खेल रहे थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ आइशा ! क्या तुम इन का खेल देखना चाहती हो ? मैं ने अर्ज की : हां ! आप ने उन की तरफ़ आदमी भेजा, जब वोह आ गए तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम दो दरवाज़ों के दरमियान खड़े हो गए और अपना दस्ते अक्दस दरवाजे पर रख दिया और हाथ लम्बा कर लिया, मैं ने अपनी ठोड़ी आप के हाथ पर जमा दी, वोह लोग खेलते रहे और मैं देखती रही, रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मुझ से पूछते :बस काफ़ी है ? मैं अर्ज करती : ज़रा चुप रहिये, आप ने दो या तीन मरतबा पूछा फिर फ़रमाया : आइशा ! अब बस करो, मैं ने अर्ज की : ठीक है, तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उन्हें इशारा फ़रमाया तो वोह वापस चले गए।और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मोमिनों में कामिल तरीन ईमान वाला वोह है जिस का खुल्क उम्दा हो और जो अपने घर वालों पर निहायत मेहरबान हो ।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि तुम में से बेहतर वोह है जो अपनी औरतों से बेहतर है और मैं अपनी अज़वाज के साथ तुम सब से बेहतर सुलूक करने वाला हूं।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि गुस्से के बा वुजूद इन्सान के लिये मुनासिब है कि वोह अपने घर वालों के साथ बच्चे जैसा हो और जब घर वाले उस से कुछ तलब करें जो उस के पास मौजूद हो तो वोह उसे मर्द पाएं (या’नी वोह मतलूबा शै में बुख़्ल न करे)।

हज़रते लुक्मान ने फ़रमाया : अक्लमन्द के लिये मुनासिब है कि वोह अपने घर वालों से बच्चे की तरह हो और जब कौम में हो तो जवानों की तरह हो ।

इस हदीस की तफ्सीर में जिस में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया है कि अल्लाह तआला हर जा’ ज़री जव्वाज़ से बुग्ज़ रखता है। कहा गया है कि इस से मुराद अपने घर वालों से सख्ती करने वाला और खुद बीनी में मुब्तला है और येह इन्हीं मआनी में से एक माना है जो फ़रमाने इलाही की तफ्सीर में कहा गया है कि इस से मुराद बद खुल्क, ज़बान दराज़, अपने घर वालों पर तशढुद करने वाला है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया : तुम ने बाकिरा से शादी क्यूं न की वोह तुम से खेलती और तुम उस से खुश तबई करते ।

 

एक बदविय्या ने अपने मुर्दा शोहर की इन अल्फ़ाज़ में तारीफ़ की, ब खुदा ! जब वोह घर में दाखिल होता तो सदा हंसता रहता, जब वोह बाहर निकलता तो चुप रहता, जो कुछ मिलता खा लेता और जो कुछ मौजूद न होता उस के मुतअल्लिक़ सुवाल न करता।

इन्सान के लिये येह भी ज़रूरी है कि वोह मुलाअबत, हुस्ने खुल्क और इस की ख्वाहिशात की मुवाफ़क़त में इस हद तक न बढ़े कि उस की आदतें बिगड़ जाएं और उस के दिल से मर्द की हैबत बिल्कुल उठ जाए बल्कि हर मुआमले में ए’तिदाल को मल्हूज़ रखे और अपनी हैबत और दबदबा बिल्कुल्लिया ख़त्म न करे।

बीवी पर नरमी के साथ थोड़ी सख्ती करना ज़रूरी है

मर्द पर लाज़िम है कि उस से कोई ना मुनासिब बात न सुने और उसे बुरे कामों में दिलचस्पी न लेने दे बल्कि जब भी उसे शरीअत व मुरव्वत के ख़िलाफ़ गामज़न पाए उस की सरज़निश करे और उसे राहे रास्त पर लाए।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि अल्लाह की कसम ! जो भी मर्द अपनी बीवी की नफ़्सानी ख्वाहिशात की पैरवी करता है तो अल्लाह तआला उसे औंधा जहन्नम में डालेगा।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : औरतों की मुखालफ़त करो क्यूंकि इन की मुखालफ़त में बरकत है।

और येह भी कहा गया है कि इन से मश्वरा करो और इन की मुखालफ़त करो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : औरत का गुलाम हलाक हुवा।

और आप ने येह इस लिये फ़रमाया क्यूंकि मर्द जब औरत की ख्वाहिशाते नफ़्सानी की पैरवी करता है तो वोह उस का गुलाम और बन्दा बन जाता है क्यूंकि अल्लाह तआला ने उसे औरत का मालिक बनाया मगर उस ने औरत को अपना मालिक बना दिया, गोया उस ने बर अक्स काम किया और खुदाई फैसले के खिलाफ़ शैतान की इताअत की जैसा कि उस ने कहा :

“और अलबत्ता हुक्म करूंगा उन को पस फेर डालेंगे खुदा की पैदाइश को।”

और मर्द का हक़ येह है कि वोह मतबूअ हो, ताबेए मोहमल न बने चुनान्चे, अल्लाह तआला ने मर्दो को येह नाम दिया है कि

मर्द औरतों पर हुक्मरान हैं। और शोहर को सरदार का नाम दिया गया है चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : इन दोनों ने इस के सरदार (शोहर) को दरवाजे

के करीब पाया। और जब सरदार ताबेए फरमान हो जाए तो गोया उस ने नेमते इलाही का कुफ्रान किया।

औरत का नफ्स भी तेरे नफ़्स की तरह है अगर तू उसे मामूली सी ढील दे देगा तो वोह बहुत ज़ियादा सरकश हो जाता है, अगर तू उसे भरपूर ढील दे देगा तो वोह बिल्कुल तेरे हाथ से निकल जाएगा।

इमाम शाफेई रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि तीन हस्तियां ऐसी हैं कि अगर तू उन की इज्जत करेगा तो वोह तुझे जलील करेंगे और अगर तू उन की इहानत करेगा तो वोह तेरी इज्जत करेंगे, औरत, खादिम और घोड़ा।

इन की मुराद येह है कि अगर तू ने इन से सिर्फ नर्मी का बरताव किया और नर्मी को सख्ती से न मिलाया और मेहरबानी से सरज़निश को न मिलाया तो येह तुझे नुक्सान देंगे।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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