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तौबा के कुबूल होने की निशानियां और गुनाहों का नेकियों में बदलना   – Net In Hindi.com

तौबा के कुबूल होने की निशानियां और गुनाहों का नेकियों में बदलना  

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गुनाहों से तौबा   

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

गुनाहों पर तौबा हर मुसलमान मर्द और औरत पर वाजिब है. फरमाने इलाही है –

“ऐ ईमान वालों! अल्लाह से पक्की तौबा (तोबतुन्नसुह) करो.”

एक और मक़ाम पर इर्शादे इलाही है

तुम उन लोगो की तरह ना हो जाओ जिन्होंने अल्लाह को भुला दिया.उस की भेजी हुई किताबों को पीठ पीछे डाल दिया”,

गोया उन्होंने अपने हाल पर रहम नहीं किया,और अपने आप को गुनाहों से नहीं बचाया और आखिरत के लिए कोई नेकी नहीं की. फरमाने नबवी स.अ.व. है की

“जो शख्श अल्लाह ताआला से मुलाकात पसंद करता है अल्लाह ताआला उस से मुलाकात पसंद फरमाता है,और जो अल्लाह ताआला से मिलना नापसंद करता है अल्लाह ताआला उससे मिलना नापसंद फरमाता है. फरमाने इलाही है

यही लोग नाफरमान, वादा के तोड़ने वाले, रहमत व बख्शिश और राहे हिदायत से दूर हैं.

 

फ़ासिक की किस्में

फ़ासिक की दो किस्मे हैं

1 फ़ासिक काफ़िर

2 फ़ासिक फाजिर

 

फ़ासिक काफ़िर और फ़ासिक फाजिर कौन हौता है ?

फ़ासिक काफ़िर वह है जो अल्लाह ताआला और उस के रसूल पर ईमान नहीं रखता, हिदायत को छोड़कर गुमराही का तालिब होता है जैसा की फरमाने इलाही है “तो फिस्क किया उसने अपने रब के हुक्म के बारे में”

फ़ासिक फाजिर वह है जो शराब पीता है, माल ए हराम खाता है, बदकारियाँ करता है, इबादत को छोड़कर गुनाहों में ज़िन्दगी बसर करता है. मगर अल्लाह ताआला को वाहिद मानता है और उस के साथ शरीक नहीं ठहराता.

इन दोनों में फर्क यह है की फ़ासिक काफिर की बख्शिश मौत से पहले पहले कलमा ए शहादत और तौबा के बगैर ना मुमकिन है और फ़ासिक फाजिर की मगफिरत मौत से पहले तौबा और पशेमानी के ज़रिये मुमकिन है और हर वह गुनाह जिस की बुनियाद तकब्बुर और खुदबीनी है उस की मगफिरत नामुमकिन है, शैतान की नाफ़रमानी की वजह भी यही तकब्बुर और खुद बीनी थी.

पस ए इन्सान तेरे लिए ज़रूरी है की मरने से पहले अपने गुनाहों से तौबा कर ले शायद की अल्लाह ताआला गुनाहों को माफ़ फरमा दे. जैसा की फरमाने इलाही है

“अल्लाह वह है जो अपने बन्दों की तौबा कबूल करता है और उन के गुनाहों से दरगुज़र फरमाता है.

हुज़ूर स.अ.व. ने फ़रमाया है “गुनाहों से तौबा करने वाला उस शख्श की तरह है जिस से कोई गुनाह सरज़द ना हुआ हो.

 

हिकायत – नौजवान की तौबा कुबूल होने का किस्सा 

एक जवान था वह जब भी कोई गुनाह करता तो उसे अपने दफ्तर (रजिस्टर) में लिख लेता था. एक मर्तबा उस ने कोई गुनाह किया, जब लिखने के लिए दफ्तर खोला तो देखा उस में इस आयत के सिवा कुछ भी नहीं लिखा हुआ था.

“अल्लाह ताआला उन की बुराइयों को नेकियों में तब्दील करता है”

शिर्क की जगह ईमान, बदकारी की जगह बख्शिश, गुनाह की जगह इस्मत और नेकी लिख दी जाती है.

 

एक जवान की शर्मिंदगी

हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो एक बार मदीना मुनव्वरा की एक गली से गुज़र रहे थे, आप ने एक जवान को देखा जो कपड़ों के निचे शराब की बोतल छुपाये चला आ रहा था. आप ने पुछा ए जवान, इस बोतल में क्या लिए जा रहे हो? जवान बहुत शर्मिंदा हुआ की में कैसे कहूँ इस बोतल में शराब है. उस वक़्त उस जवान ने दिल ही दिल में दुआ मांगी “ऐ अल्लाह! मुझे हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो के सामने शर्मिंदगी और रुसवाई से बचा ले. मेरे ऐब को छुपा ले, में फिर कभी शराब नहीं पियूँगा” जवान ने हज़रत उमर को जवाब दिया अमीरुल मोमिनीन यह सिरका है. आपने फ़रमाया मुझे दिखाओ तो सही चुनाचे आप ने देखा तो वह सिरका था.

ऐ इन्सान! ज़रा गौर कर एक बंदा बन्दे के दर से ख़ुलूस दिल से तौबा करता है तो अल्लाह ने उस की शराब को सिरके में बदल दिया. उसी तरह अगर कोई गुनाहगार अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होकर तौबा कर लेता है तो अल्लाह ताआला उस की नाफरमानियों की शराब को फरमाबरदारी के सिरके में बदल देता है. जैस की उस जवान के मामले में हुआ जो अपनी बुराइयों को अपनी डायरी में लिख लेता था.

हिकायत – हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो और गुनाहगार औरत की तौबा 

हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो फरमाते हैं की एक रात मै हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ नमाज़े ईशा पढ़ कर बाहर निकला, रस्ते में मुझे एक औरत मिली, उस ने मुझ से पुछा , मैंने एक गुनाह कर लिया है क्या में तौबा कर सकती हूँ? मैंने पुछा तूने कौन सा गुनाह किया है? औरत बोली मैंने ज़िना किया था और जब उस से बच्चा पैदा हुआ तो मेने उसे क़त्ल कर दिया. मैंने कहा तू तबाह हो गई, तेरे लिए कोई तौबा नहीं है, वह औरत बेहोश होकर गिर पड़ी और मै अपने राह चल दिया.तब मेरे दिल में ख्याल आया मैंने रसूलल्लाह स.अ.व. से पूछे बगैर यह बात क्यों कह दी. इसलिए में आप की खिदमत में आया और सारा किस्सा अर्ज़ किया. हुज़ूर स.अ.व. ने फ़रमाया तुमने बहुत बुरा किया, क्या तुम ने यह आयत नहीं पढ़ी?

“और वह लोग जो नहीं पुकारते अल्लाह के साथ किसी और खुदा को …”

अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो फरमाते हैं ज्यों ही मैंने यह बात सुनी मै उस औरत की तलाश में निकला और हर किसी से पूछने लगा मुझे उस औरत का पता बताइए जिसने मुझ से मसला पुछा था, यहाँ तक की बच्चे मुझे पागल समझने लगे.आख़िरकार मेने उस औरत को तलाश कर ही लिया और उसे यह आयत सुनाई जब मैं फ उलाई क युब ददी लुल्लाहो स्य्यातिहीम हसनतिन तक सुना चूका तो वह ख़ुशी से दीवानी हो गई और कहने लगी में ने अपना बाग़ अल्लाह और रसूल के लिए बख्श दिया.

 

उतबा का अजीब वाकया – तौबा और तीन दुआएं 

उत्बतुल गुलाम रहमतुल्लाह अलैह जिनकी फितना अंगेजी और शराब पीने की दस्ताने मशहूर थी, एक दिन जनाब हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में आए, उस वक़्त आप एक आयत की तफसीर बयान कर रहे थे,यानि “क्या मोमिनो के लिए वह वक़्त नहीं आया की उनके दिल अल्लाह से डरें”

आप ने इस आयत की एसी तशरीह की कि लोग रोने  लगे, एक जवान मजलिस में खड़ा हो गया और कहने लगा ए बंदा ए मोमिन ! क्या मुझ जैसा फ़ासिक और फाजिर भी अगर तौबा कर ले तो अल्लाह ताआला कबूल फरमाएगा? आपने फ़रमाया हाँ अल्लाह ताआला तेरे गुनाहों को माफ़ कर देगा. जब उत्बतुल गुलाम ने यह बात सुनी तो उस का चेहरा पीला पड़ गया और कांपते हुए चीख मारकर बेहोंश हो गया, जब उसे होंश आया तो हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह ने उसके करीब आकर अरबी के कुछ अशआर पढ़े जिनका मफहूम यह था

ए अल्लाह के नाफरमान जवान! जनता है नाफ़रमानी की सजा क्या है?

ना फरमानों के लिए पुरशोर जहन्नुम है और हश्र के दिन अल्लाह ताआला की सख्त नाराज़गी है.

अगर तू जहन्नम की आग पर राज़ी है तो बेशक गुनाह करता रह वर्ना गुनाहों से रुक जा.

तूने अपने गुनाहों के बदले अपनी जान को गिरवी रख दिया है, उस को छुड़ाने की कोशिश कर

उतबा ने फिर चीख मारी और बेहोंश हो गए. जब होंश आया तो कहने लगे ए शैख़ क्या मुझ जैसे बदबख्त की रब्बे रहीम तौबा कुबूल कर लेगा? आप ने कहा दरगुज़र करने वाला रब, ज़ालिम बन्दे की तौबा कुबूल फरमा लेता है. उस वक़्त उतबा ने सर उठा कर रब से तीन दुआएं की.

ऐ अल्लाह! अगर तूने मेरे गुनाहों को माफ़ और मेरी तौबा को कुबूल कर लिया है तो ऐसे हफीज़े और अक्ल से मेरी इज्ज़त अफजाई फरमा की में कुरान मजीद और दीनी इल्मों में से जो कुछ भी सुनूँ उसे कभी फरामोश ना करूँ.

ऐ अल्लाह! मुझे एसी आवाज़ अता फरमा की मेरी किरअत को सुनकर सख्त से सख्त दिल मोम हो जाये.

ऐ अल्लाह मुझे हलाल रोज़ी अता फरमा, और ऐसे तरीके से दे जिसका मै ख्याल भी ना कर सकूँ.

अल्लाह ने उतबा की तीनों दुआएं कुबूल कर ली. उनका हफिज़ा और समझ व अकलमंदी बढ़ गयी और जब वह कुरआन की तिलावत करते तो हर सुनने वाला गुनाहों से तौबा कर लेता था और उनके घर में हर रोज़ एक प्याला शोरबा और दो रोटियां पहुँच जाती और किसी को मालूम नहीं था की यह कौन रख जाता है और उतबा की सारी ज़िन्दगी में ऐसा ही होता रहा. यह उस शख्श का हाल है जिसने अल्लाह ताआला से लो लगाई.

बेशक अल्लाह ताआला नेक अमल करने वालों के अजर को जाया नहीं करता

 

तौबा के क़ुबूल होने की निशानियाँ

सवाल : किसी आलिम से पुछा गया की जब बंदा तौबा करता है तो क्या उसे अपनी तौबा के मकबूल या गैर मकबूल होने का पता चल जाता है?

जवाब : आलिम ने जवाब दिया एसी मुकम्मल बात तो नहीं अलबत्ता कुछ निशानियाँ हैं, जिन से तौबा की कुबूलियत का पता चलता है,

वह अपने आप को गुनाहों से पाक रखता है, उस के दिल से ख़ुशी गायब हो जाती है, हर दम अल्लाह को मौजूद समझने लगता है, नेकों के करीब और बुरों से दूर रहने लगता है. दुनिया की थोड़ी सी नेअमत को बड़ी और आखिरत के लिए ज्यादा नेकियों को भी थोड़ी समझता है. अपने दिल को हर वक़्त फराईज़े खुदावन्दी में मसरूफ और अपनी ज़बान को बंद रखता है, हमेशा अपने पहले गुज़रे गुनाहों पर गौर व फ़िक्र करता रहता है और गम और परेशानी को अपने लिए ज़रूरी कर लेता है.  

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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