वालिदैन के हक माँ बाप का दर्जा और उनके औलाद पर हक

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औलाद और वालिदैन के हुकूक

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

येह बात जेह्न नशीन रखनी चाहिये कि जहां अज़ीज़ो अकारिब के हुकूक की ताकीद की गई है वहां ज़विल अरहाम को खुसूसिय्यत से जिक्र किया गया है।

फ़रमाने नबवी है कि कोई बेटा अपने बाप का हक अदा नहीं कर सकता यहां तक कि वह बाप को गुलाम पाए और फिर उसे खरीद कर आज़ाद कर दे।

फ़रमाने नबवी है कि वालिदैन से नेकी, नमाज़, रोज़ा, सदक़ा, हज, उमरह और राहे खुदा में जिहाद करने से अफ़ज़ल है।

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हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जिस शख्स ने इस हाल में सुब्ह की, कि उस के वालिदैन उस से राजी हों उस के लिये जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और जो इसी हालत में शाम करता है उस के लिये भी इसी तरह के दो दरवाजे खोल दिये जाते हैं, अगर वालिदैन में से एक जिन्दा हो तो एक दरवाजा खोला जाता है अगर्चे वालिदैन ज़ियादती करें, अगर्चे वोह ज़ियादती करें और जिस ने इस हाल में सुबह की, कि उस के वालिदैन उस पर नाराज़ हों तो उस के लिये जहन्नम के दो दरवाजे खुल जाते हैं और जो शाम इसी हालत में करता है उस के लिये भी जहन्नम के दो दरवाजे खुल जाते हैं, अगर वालिदैन में से एक हो तो एक दरवाजा खुलता है अगर्चे वोह ज़ियादती करें, अगर्चे वोह ज़ियादती करें, अगर्चे वोह ज़ियादती करें।

फ़रमाने नबवी है कि जन्नत की खुश्बू पांच सो साल के सफ़र की दूरी से पाई जाती है मगर वालिदैन का ना फ़रमान और क़तए रेहमी करने वाला इस खुश्बू को नहीं पाएगा।

फ़रमाने नबवी है कि अपने मां, बाप, बहन और भाई से एहसान कर, फिर करीबी पस करीबी (शख्स इस का मुस्तहिक) है।

मरवी है कि अल्लाह तआला ने मूसा अलैहहिस्सलाम  से फ़रमाया : ऐ मूसा ! जिस ने वालिदैन की फ़रमां बरदारी की और मेरी ना फ़रमानी की, मैं ने उसे नेकों में लिखा है और जो वालिदैन की ना फरमानी करता है मगर मेरा फ़रमां बरदार होता है मैं ने उसे ना फ़रमानों में लिख दिया है।

रिवायत है कि जब हज़रते या’कूब , हज़रते यूसुफ़ अलैहहिस्सलाम  के यहां तशरीफ़ लाए तो वोह उन के इस्तिक्बाल के लिये खड़े न हुवे चुनान्चे, अल्लाह तआला ने हज़रते यूसुफ़ अलैहहिस्सलाम  की तरफ़ वहयी की, कि क्या तुम अपने वालिद के लिये खड़े होने को बहुत बड़ी बात समझते हो ? मुझे अपने इज्जतो जलाल की कसम ! मैं तुम्हारे सुल्ब में से नबी पैदा नहीं करूंगा।

फरमाने नबवी है कि जब कोई शख्स अपने मुसलमान वालिदैन की तरफ से सदका करता है तो उस के वालिदैन को उस का अज्र मिलता है और उन के अज्र में कमी किये बिगैर उस आदमी को भी उन के बराबर अज्र मिलता है।

हज़रते मालिक बिन रबीआ रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ बैठे हुवे थे कि बनू सलमह के एक आदमी ने आ कर अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! कोई ऐसी नेकी है जो मैं अपने वालिदैन के लिये उन की वफ़ात के बाद करूं? आप ने फ़रमाया : हां ! उन के लिये दुआ करो, बख्शिश तलब करो, उन के किये हुवे वा’दों को पूरा करो, उन के दोस्तों की इज्जत करो और उन के रिश्तेदारों से सिलए रेहमी करो।

फरमाने नबवी है की सब से बड़ी नेकी येह है कि इन्सान अपने बाप की वफ़ात के बाद उस के दोस्तों से हुस्ने

सुलूक करे ।

मजीद इरशाद हुवा कि बेटे का मां से नेकी करना दोहरा अज्र रखता है।एक और इरशाद है कि मां की दुआ जल्द क़बूल होती है, पूछा गया : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ऐसा क्यूं है ? आप ने फ़रमाया : इस लिये कि मां, बाप से ज़ियादा मेहरबान होती है और रहम की दुआ कभी जाएअ नहीं होती।

एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुवाल किया कि मैं किस से नेकी करूं ? आप ने फ़रमाया : अपने वालिदैन से नेकी कर, उस ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! मेरे वालिदैन नहीं है, आप ने फ़रमाया : अपनी औलाद से नेकी कर क्यूंकि जिस तरह वालिदैन का तुझ पर हक़ है इसी तरह औलाद भी तुझ पर हक़ है।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि अल्लाह तआला उस बाप पर रहम फ़रमाए जिस ने अपने बेटे से नेकी में तआवुन किया (उसे नेक अमल पर उभारा) और अमले बद की सूरत में अदाएगिये हुकूक का बार इस पर नहीं है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि औलाद को अतिय्यात में बराबर का शरीक करो।

और येह भी कहा गया है कि तेरे लिये तेरा बेटा गुले नाज़ बू है, सात बरस तक वोह तेरा खादिम है, उस की खुश्बू सूंघ, फिर वोह तेरा शरीक है या तेरा दुश्मन है।

बच्चे का अकीका सातवें रोज किया जाना चाहिये

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि सातवें दिन बच्चे का अक़ीक़ा किया जाए, उस का नाम रखा जाए और उस के बाल वगैरा दूर किये जाएं और जब वोह छे साल का हो तो बाप उसे अदब सिखाए, जब वोह नव साल का हो तो उस का बिछौना अलाहिदा कर दे, जब तेरह बरस का हो तो उसे नमाज़ के लिये मारे और जब वोह सोलह साल का हो तो बाप उस की शादी कर दे, फिर आप ने हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो का हाथ पकड़ कर फ़रमाया कि मैं ने तुझे अदब सिखाया, ता’लीम दी और तेरी शादी कर दी, मैं दुन्या के फ़ितने और आख़िरत के अज़ाब से तेरे लिये अल्लाह की पनाह चाहता हूं।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि बाप पर औलाद  का येह हक़ है कि वोह उन्हें बेहतरीन अदब सिखाए और उन के उम्दा नाम रखे ।

एक और फ़रमान है कि हर लड़का और लड़की अक़ीके से गिरवी है, सातवें दिन इन के लिये कोई जानवर ज़ब्ह किया जाए और इस का सर मुन्डा जाए।

एक आदमी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो के सामने अपने किसी लड़के की शिकायत की, आप ने फ़रमाया : क्या तुम ने उस पर बद दुआ की है ? उस ने कहा : हां ! आप ने फ़रमाया : तू ने उसे बरबाद कर दिया है, औलाद के साथ नेक सुलूक और नर्मी करनी चाहिये।

हज़रते अकरअ बिन हाबिस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हुजूर को अपने नवासे हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो को चूमते हुवे देखा तो कहा कि मेरे दस बेटे हैं मगर मैं ने कभी किसी को नहीं चूमा, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : बेशक जो रहम नहीं करता उस पर रहम नहीं किया जाता ।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से मरवी है कि एक दिन हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मुझ से फ़रमाया कि उसामा का मुंह धो डालो, मैं ने कराहत से उस का मुंह धोना शुरू किया तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मेरे हाथ पर हाथ मारा और उसामा को पकड़ कर उन का मुंह धोया फिर उसे चूमा ।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो (कमसिनी में) लड़ खड़ाते हुवे मस्जिद में दाखिल हुवे और हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो मिम्बर पर तशरीफ़ फ़रमा थे, आप ने मिम्बर से उतर कर उन्हें उठाया और येह आयए मुबारका तिलावत फ़रमाई :

सिवाए उस के नहीं कि तुम्हारे माल और औलाद

फितना हैं। हज़रते अब्दुल्लाह बिन शद्दाद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम लोगों को नमाज़ पढ़ा रहे थे कि अचानक हज़रते इमामे हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो सजदे की हालत में आप की गर्दन पर सुवार हो गए, आप ने सजदा तवील कर दिया, लोगों ने समझा शायद कोई बात हो गई है, जब आप ने नमाज़ पूरी कर ली तो सहाबा ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! आप ने बहुत तवील सजदा किया, यहां तक कि हम समझे कोई बात वाकेअ हो गई है, आप ने फ़रमाया : मेरा बेटा मुझ पर सुवार हो गया तो मैं ने जल्दी करना मुनासिब न समझा ताकि वोह अपनी खुशी (हाजत) पूरी कर ले ।

इस हदीस में कई फ़वाइद हैं, एक येह कि जब तक आदमी सजदे में रहता है उसे अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल रहता है । इस हदीस से औलाद से नर्मी और भलाई और उम्मत की तालीम, सब बातें साबित होती हैं।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि औलाद की खुश्बू जन्नत की खुश्बू है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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