ज़िना बदकारी का अज़ाब

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ज़िना बदकारी यानी व्यभिचार की सज़ा

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

फ़रमाने इलाही है :

वो हराम और बदकारियों से अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं।

एक और आयत में इरशादे रब्बानी है :

या‘नी छोटे बड़े ज़ाहिर पोशीदा किसी भी गुनाह के करीब मत जाओ। या’नी न ही किसी बड़ी बे हयाई का इर्तिकाब करो जैसा कि ज़िना और न छोटी का जैसा कि गैर महरम को छूना, देखना वगैरा कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे मुबारक है, “हाथ ज़ीना करते हैं, पैर ज़िना करते हैं और आंखें ज़िना करती हैं.”

फ़रमाने इलाही है :

मोमिनों से कह दीजिये अपनी आंखें बन्द कर लें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें।

 

अल्लाह तआला ने मुसलमान मर्दो और औरतों को हुक्म दिया है कि वो हराम की तरफ़ न देखें और अपनी शर्मगाहों को इरतिकाबे हराम से महफूज रखें। अल्लाह तआला ने कई आयात में ज़िना की हुरमत बयान फ़रमाई है, एक जगह इरशादे रब्बानी है :

जो शख्स ज़िना करता है उसे असाम में डाला जाएगा। असाम के मुतअल्लिक़ कहा गया है कि जहन्नम की एक वादी है। बा’ज़ उलमा ने कहा है कि वो जहन्नम का एक गार है, जब उस का मुंह खोला जाएगा तो उस की शदीद बदबू से जहन्नमी चीख उठेंगे।

 

ज़ीना बदकारी में छे मुसीबतें हैं

बा’ज़ सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : ज़िना से बचो ! इस में छे मुसीबतें हैं जिन में से तीन का तअल्लुक दुनिया से है और तीन का आख़िरत से । दुनिया में रिज्क कम हो जाता है, ज़िन्दगी मुख्तसर हो जाती है और चेहरा मस्ख हो जाता है, आखिरत में खुदा की नाराज़ी, सख्त पूछ ताछ  और जहन्नम में दाखिल होना है।

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रिवायत है कि हज़रते मूसा अलैहहिससलाम  ने ज़ानी की सज़ा के बारे में पूछा तो रब तआला ने फ़रमाया : मैं उसे आग की ज़िरह पहनाऊंगा। वो ऐसी वज़नी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो वो भी रेज़ा रेज़ा हो जाए। कहते हैं  इब्लीस को हज़ार बदकार मर्दो से एक बदकार औरत ज़ियादा पसन्द होती है।

‘मसाबीह’ में इरशादे रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है :  “जब बन्दा ज़िना करता है तो उस का ईमान निकल कर उस के सर पर छतरी की तरह मुअल्लक रहता है और जब वो इस गुनाह से फ़ारिग हो जाता है तो उस का ईमान फिर लौट आता है”

किताबे इक़नाअ में फ़रमाने हुजूरे पुरनूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है : अल्लाह तआला के नज़दीक नुत्फे को हराम कारी में सर्फ करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं है और लिवातत ज़ीना से भी बदतर है, जैसा कि हज़रते अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाहो अन्हो  से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जन्नत की खुश्बू पांच सो साल के सफ़र की दूरी से आएगी मगर लूती इस से महरूम रहेगा।

 

अमरद एक फितना है

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  घर से बाहर बैठे थे कि एक हसीन लड़का (अम्रद) आता हुवा नज़र आया आप दौड़ कर घर में घुस गए और दरवाज़ा बन्द कर लिया, कुछ देर बा’द पूछा : फ़ितना चला गया या नहीं ? लोगों ने कहा : चला गया। तब आप बाहर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया : फ़रमाने नबवी स.अ.व. है : इन की तरफ़ देखना, गुफ्तगू करना और इन के पास बैठना हराम है।

हज़रते काजी इमाम रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : मैं ने बा’ज़ मशाइख से सुना है कि औरत के साथ एक शैतान और हसीन लड़के के साथ अठ्ठारह शैतान होते हैं।

रिवायत है कि जिस ने शहवत के साथ लड़के को बोसा दिया वो पांच सो साल जहन्नम में जलेगा और जिस ने किसी औरत का बोसा लिया उस ने गोया सत्तर बाकिरा खुवातीन के साथ ज़ीना किया और जिस ने किसी बाकिरा औरत से ज़िना किया उस ने गोया सत्तर हज़ार शादीशुदा औरतों से ज़ीना किया।

‘रौनकुत्तफ़ासीर’ में कल्बी रहमतुल्लाह अलैह से मन्कूल है : सब से पहले लिवातत इब्लीस ने शुरू की, वो लूत की क़ौम में एक हसीनो जमील लड़के की सूरत में आया और लोगों को अपनी तरफ़ माइल किया यहां तक कि लिवातत उन लोगों की आदत बन गई, जो भी मुसाफ़िर आता वो उस से बद फ़ेली करते । हज़रते लूत  ने उन्हें इस फे’ले बद से रोका

अल्लाह की तरफ़ बुलाया और अज़ाबे ख़ुदावन्दी से डराया तो वो कहने लगे : अगर तुम सच्चे हो तो जाओ अज़ाब ले आओ ! हज़रते लूत  ने अल्लाह रब्बुल इज्जत से दुआ मांगी : जिस के जवाब में उन पर पथ्थरों की बारिश हुई, हर पथ्थर पर एक आदमी का नाम लिखा हुवा था और वो उस आदमी को आ कर लगा, अल्लाह तआला का फरमान है :

 

कौमे लूत के एक ताजिर का किस्सा

हज़रते लूत अलैहिस्सलाम  की कौम का एक ताजिर मक्का में ब गरजे तिजारत आया उस के नाम का पथ्थर वहीं पहुंच गया मगर फ़िरिश्तों ने येह कह कर रोक दिया कि येह अल्लाह का हरम है

चुनान्चे, चालीस दिन येह पथ्थर हरम के बाहर ज़मीनो आस्मान के दरमियान मुअल्लक रहा यहां तक कि वो शख्स तिजारत से फ़ारिग हो कर मक्कए मुअज्जमा से बाहर निकला और वो पथ्थर उसे जा लगा जिस से वो हलाक हो गया। हज़रते लूत अलैहिस्सलाम  अपने तमाम अहले खाना को ले कर बस्ती से निकल गए, और फ़रमाया : कोई मुड़ कर न देखे । जब क़ौम पर अज़ाब नाज़िल हुवा तो इन की बीवी ने आवाजें सुन कर पीछे देखा और कहा : हाए मेरी क़ौम ! जिस की पादाश में उसे भी एक पथ्थर लगा और वो हलाक हो गई।

 

मुजाहिद कहते हैं : जब सुब्ह करीब हुई तो हज़रते जिब्रील ने उन बस्तियों को परों पर उठा लिया और इतनी बुलन्दी तक ले गए कि आस्मान के फ़िरिश्तों ने उन के कुत्तों को भोंकता और मुर्गों की बांगों को सुन लिया, उस वक़्त येह बस्तियां उलट दी गई, सब से पहले उन के मकानात गिरे, फिर वो खुद औंधे मुंह जमीन पर आ रहे और उन पर पथ्थर बरसाए गए।

कहते हैं कि येह पांच शहर थे जिन में सब से बड़ा सदूम का शहर था, इन शहरों की आबादी चार लाख थी, अल्लाह तआला ने इन्हें सूरए बराअत में मोतफ़िकात के नाम से याद किया है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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