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Ghalib shayari on love
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी लव पर
Ghalib shayari on love मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने इश्क, मोहब्बत पर कई खूबसूरत शेर कहे हैं जो आज भी लोकप्रिय हैं, इस पोस्ट में हम आपके लिए ghalib shayari on love प्रस्तुत कर रहे हैं, लव इश्क पर ग़ालिब के यह शेर अगर आपको पसंद आये तो इसे आप ज़रूर शेयर करें. इसी पेज पर आप ghalib shayari on love image भी download कर सकते हैं.
Ghalib shayari on love, Ishk and Mohabbat
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए
~मिर्ज़ा ग़ालिब ghalib shayari on love
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही !!
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
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ग़ालिब शायरी – मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी 125 बेस्ट शेर
Ghalib Shayari : – महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब को कौन नहीं जानता, अपने इंतकाल के 150 वर्ष बाद, आज भी ग़ालिब भारत के सबसे प्रसिद्ध शायर हैं, ग़ालिब शायरी आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर है, वेसे तो मिर्ज़ा ग़ालिब आखिरी मुग़ल सुल्तान बहादुर शाह ज़फर के दरबारी शायर थे पर ग़ालिब और ग़ालिब के शेर उनके जीवन कल में और आज तक आम जनता में खूब शौक से पढ़े जाते हैं. ग़ालिब की शायरी हिंदी, उर्दू और फारसी ज़बान में है, शुरू में मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर बहुत मुश्किल हुआ करते थे और वह विद्वानों के भी समझ में नहीं आते थे पर बाद में मिर्ज़ा ग़ालिब ने आम फहम ज़बान में शायरी की और बहुत लोकप्रिय शायर हो गए, ग़ालिब की शायरी में प्यार, दर्द, जुदाई, गम, इश्क, मय शराब, खुदी, खुदा, रूह सबका बेहतरीन ज़िक्र मिलता है.
आपके लिए हम यहाँ मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ प्रसिद्ध और सबसे बेहतरीन शेर पेश कर रहे हैं.. उम्मीद है की आपको यह Ghalib shayari on love पसंद आएगी. यहाँ हमें 125 से भी ज्यादा मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर पेश कर रहे हैं ताकि आप आसानी से पढ़ सके.. Ghalib Poetry का यह पेज आप अपने दोस्तों को ज़रूर शेयर करें, दूसरी वेब्सईट्स पर mirza ghalib shayari in hindi 2 lines हिंदी फॉण्ट में नहीं दी गयी है .इसीलिए हमने यहाँ मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी hindi font में प्रस्तुत की है.
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे …
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!
जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई !!
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर !!
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!
चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श* हो हो कर पाएमाल^ भी !!
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए !!
_
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे !!
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में !!
__
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था
_
नसीहत के कुतुब-ख़ाने* यूँ तो दुनिया में भरे हैं,
ठोकरें खा के ही अक्सर बंदे को अक़्ल आई है !!
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में !! –
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
हम महव-ए-चश्म-ए-रंगीं-ए-जवाब* हुए हैं जबसे,
शौक़-ए-दीदार हुआ जाता है हर सवाल का रंग !!
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,
लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की !!
हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये !!
Ghalib Poetry in Hindi ग़ालिब की शायरी हिंदी में
न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई !!
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!
तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..
गा़लिब
तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..
गा़लिब
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
गा़लिब
अपनी गली में मुझ को
न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को
क्यूँ तेरा घर मिले
गा़लिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !!
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अब अगले मौसमों में यही काम आएगा,
कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया !!
वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अफ़साना आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,
ख़्वाहिश का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं,
ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं !!
ज़रा कर ज़ोर सीने में कि तीरे-पुर-सितम निकले,
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले !!
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं !!
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है !!
जान तुम पर निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !!
पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो
हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,
तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात !!
_
है उफ़ुक़ से एक संग-ए-आफ़्ताब आने की देर,
टूट कर मानिंद-ए-आईना बिखर जाएगी रात !!/
_
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है
Ghalib Sher
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हो उसका ज़िक्र तो बारिश सी दिल में होती है
वो याद आये तो आती है दफ’तन ख़ुशबू
इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाए
फिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता
इक क़ैद है आज़ादी-ए-अफ़्कार भी गोया,
इक दाम जो उड़ने से रिहाई नहीं देता
इक आह-ए-ख़ता गिर्या-ब-लब सुब्ह-ए-अज़ल से,
इक दर है जो तौबा को रसाई नहीं देता
इक क़ुर्ब जो क़ुर्बत को रसाई नहीं देता,
इक फ़ासला अहसास-ए-जुदाई नहीं देता
_
आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,
आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को !!
_
ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!
तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको,
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है ….
खार भी ज़ीस्त-ए-गुलिस्ताँ हैं,
फूल ही हाँसिल-ए-बहार नहीं !!
_
वो जो काँटों का राज़दार नहीं,
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं !! /
_
मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया,
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं !! –
हम जो सबका दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं
शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए
_ _
Ghalib Ke Sher ग़ालिब के शेर
उस पे आती है मोहब्बत ऐसे
झूठ पे जैसे यकीन आता है
_ _ _
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है
_ _ _ _
फिर आबलों के ज़ख़्म चलो ताज़ा ही कर लें,
कोई रहने ना पाए बाब जुदा रूदाद-ए-सफ़र से !!
_
एजाज़ तेरे इश्क़ का ये नही तो और क्या है,
उड़ने का ख़्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से !!
साज़-ए-दिल को गुदगुदाया इश्क़ ने
मौत को ले कर जवानी आ गई
_ _ _
मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे सदक़े,
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है !!
यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है,
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है !!
है और तो कोई सबब उसकी मुहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है !!
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !!
गुज़र रहा हूँ यहाँ से भी गुज़र जाउँगा,
मैं वक़्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !! –
गुज़रे हुए लम्हों को मैं इक बार तो जी लूँ,
कुछ ख्वाब तेरी याद दिलाने के लिए हैं !!
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे
है आदमी बजा-ए-ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल,
हम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ न हो
_
तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए’तिबार होता !!
Ghalib Shayari on love
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमावेंगे क्या
तुम सलामत रहो हज़ार बरस,
हर बरस के हों दिन पचास हज़ार !!
मौत फिर जीस्त न बन जाये यह डर है’गालिब’,
वह मेरी कब्र पर अंगुश्त-बदंदाँ होंगे !!
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछे,
तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे !!
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूँ !!
कुछ खटकता था मिरे सीने में लेकिन आख़िर,
जिस को दिल कहते थे सो तीर का पैकाँ निकला !!-
अच्छा है सर-अंगुश्त-ए-हिनाई का तसव्वुर,
दिल में नज़र आती तो है इक बूँद लहू की !!
shayari of ghalib on ishq
की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा,
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना !! –
आता है मेरे क़त्ल को पर जोश-ए-रश्क से
मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर
करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि हम खाक हो गये !! –
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता !! –
ता करे न ग़म्माज़ी कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना
‘ग़ालिब’ नदीम-ए-दोस्त से आती है बू-ए-दोस्त
मश्ग़ूल-ए-हक़ हूँ बंदगी-ए-बू-तराब में
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है तमाशा शब् ओ रोज़ मेरे आगे
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तश्ना ए फरियाद आया
दम लिया था ना कयामत ने हनोज़
फिर तेरा वक्ते सफ़र याद आया
जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो ये है कि हक़ अदा न हुआ
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
जो बंदगी में मिरा भला न हुआ
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
ग़ालिब
mirza ghalib shayari in hindi 2 lines
‘ग़ालिब’ वज़ीफ़ा-ख़्वार हो दो शाह को दुआ
वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं
ग़ालिब
ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
ग़ालिब
जाँ दर-हवा-ए-यक-निगाह-ए-गर्म है ‘असद’
परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का
ग़ालिब
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने
ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही
ग़ालिब
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
ग़ालिब
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ
ग़ालिब
Mirza galib ki shayari
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही
ग़ालिब
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
ग़ालिब
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
ग़ालिब
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
ग़ालिब
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक
Famous Ghalib Shayari
हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है
ग़ालिब
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
ग़ालिब
इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहाँ,
होता है इश्क़ ग़ालिब उनकी नहीं नहीं से !!
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
ग़ालिब
देखो तो दिल फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा,
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई !! –
देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं
-ग़ालिब
best Ghalib Shayari
तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले..!
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले..
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मरते है आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती ।
-मिर्ज़ा ग़ालिब
_
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..
-मिर्जा ग़ालिब
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता ।
ग़ालिब ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह.
गिनकर क्यों नाम लू उसका जो बेहिसाब देता है।
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !
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Shayari Image शायरी इमेज
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LOVE SHAYARI IMAGE लव शायरी इमेज
Love Shayri Image :- अपने प्यार और अपनेपन का इज़हार करने के लिए आप शायरी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अगर यही लव शायरी एक खुबसूरत इमेज के साथ हो तो इसका असर बहुत बढ़ जाता है, पेश हे आपके लिए LOVE SHAYARI IMAGE लव शायरी इमेज जिससे आप अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं .
SAD SHAYARI IMAGE सेड शायरी इमेज
Sad Shayari Image : कभी कभी ज़िन्दगी में गम भी आ जाता है, अपने दर्द और आंसुओं को व्यक्त करने के लिए अपने दिल का हाल अपनों तक पहुचाने के लिए आपको दर्द भरी शायरी यानि की सेड शायरी की ज़रूरत होती है, ऐसे ही दुःख भरे पलों में शेयर करने के लिए हम आपके लिए यहाँ सैड शायरी इमेज पेश कर रहे हैं, इन सैड शायरी इमेज और सैड शायरी पिक्स को आप आसानी से डाउनलोड कर अपनों को शेयर कर सकते हैं… इस पेज पर हम नयी सैड शायरी इमेज पोस्ट करते रहेंगे इसलिए आप इस पेज को बुकमार्क कर लें.
Aitbaar Shayari ऐतबार शायरी
motivational shayari
Love letter shayari in hindi
Welcome Shayari स्वागत शायरी
Welcome Shayari Swagat Shayari :- दोस्तों शायरी के इस खास पेज पर हम आपके लिए आज स्वागत शायरी, वेलकम शायरी पेश कर रहे हैं, आप अक्सर अपने घर पर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाते होंगे…मेहमान नवाजी करते होंगे ….या आप अपने बर्थडे या और किसी मौके पर अपने दोस्तों को बुलाने के लिए निमंत्रण भेजते होंगे ऐसे ही मौके पर आप अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इन स्वागत शायरी welcome शायरी का इस्तेमाल कर सकते हैं..आप इन्हें आमद शायरी, खुश आमदीद शायरी, आपके आने से शायरी, आप आये शायरी या मेहमान शायरी कुछ भी नाम दे सकते हैं.
अपने मेहमानों को बुलाने के लिए आप इन स्वागत शायरी और वेलकम शायरी सन्देश भेज सकते हैं.
ये दो लाइनों की स्वागत शायरी और वेलकम शायरी इंतनी खुबसूरत है की इसमें सभी भावनाओं का संगम हैं, आपके इस स्वागत सन्देश शायरी या वेलकम शायरी को पढ़कर ही आपके मेहमान खुश हो जायेंगे.
अगर आप को यह वेलकम शायरी अच्छी लगे तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें …
हम मुन्तजिर हैं आपके आने के आजभी,इस साजेदिल को छेडिये,कुछ गुनगुनाइये
आपके आने से आज ये शाम खास हो गयी..
सारे दिन की बोरियत झक्क्कास हो गयी.
आपके आने का शुक्रिया ,
कुछ पल साथ बिताने का शुक्रिया….
सपने दिखाने का शुक्रिया,
और उनहे तोड़ के चले जानेका भी शुक्रिया…
आपका आना, बहारों का आना !
आपका जाना, गुलशन का उजड़ जाना !
हमने कभी दोस्ती को जाना न होता,
अगर हमारी ज़िन्दगी में आपका आना न होता,
युही अकेले गुज़ार देते ज़िन्दगी को,
अगर आपको अपना दोस्त माना न होता…
इंतज़ार मेरी ?उम्र से लंबा हो शायद,
आपका आना इस मर्ज़ की दवा हो शायद।
आपका आना…दिल धडकाना …
मेहंदी लगा यूँ शर्माना…
प्यार आ गया रे…
प्यार आ गया..
आपसे होती मुनव्वर,मेरी कायनात है
आप हों गर साथ तो, फिर रात भी कब रात है
आपका आना हमारे वास्ते सौगात है
आज या तो ईद है,या फिर शबे-बारात है
दोस्तों के बिना यह शाम अधूरी है ,
इसलिए आपका आना जरूरी है |
Welcome Shayari
हमसे मिलने का कभी तो तुम इरादा रखो
मुहब्बत से मुहब्बत का मिलन सादा रखो
चले आओ वक्त से वक़्त चुराकर ज़रा सा
तुम आओगे ज़रुर… हमसे ये वादा करो।
काश…. हो कुछ एेसा इत्तेफाक….!!
तुम रास्ता भूलो और मुझ तक चले आओ….!!
लोग देखेगे हमे ~मोहब्बत करते तो सौ बाते बना देंगे।
तुम यू मेरे दिल मे चले आओ कि किसी को आहट भी ना हो।
चले आओ ना अब, कहाँ गुम हो,,
कितनी बार कहूँ ,मेरे दर्द की दवा तुम हो।
कब कहा मैंने कि मुझको…….चाँद लाकर दो..
तुम ख़ुद चले आओ तो…दीदार-ए-चाँद पूरा हो…
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है
~नुशूर वाहिदी –
संभाले नहीं संभलता है दिल,
मोहब्बत की तपिश से न जलाओ,
इश्क तलबगार है तुम्हारा चले आओ,
अब ज़माने के बहाने न बनाओ।
खामोशी ने मेरी पुकारा है तुम्हें…….!!
कोई हसीं शाम बनकर ही चले आओ….!!
लोग देखेंगे तो अफसाना बना डालेंगे|
यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो।।
सावन के झूले पड़े,तुम चले आओ,
तुम चले आओ, तुम चले आओ…
बहुत आरजू है… इन आंखो को… तेरा ख्वाब देखने की,
कभी तो… इनका मान रखने… सपनो मे चले आओ…!
बहा ले जाती है तुम्हारी
याद मुझे कहाँ से कहाँ तक
कभी तुम भी चले आओ
मेरे ठिकाने तक….
वो मेहमाँ रहे भी तो कब तक हमारे
हुयी शम्मा गुल और डूबे सितारे,
‘क़मर’ इस क़दर उन को जल्दी थी घर की
वो घर चल दिये चाँदनी ढलते ढलते !! -क़मर जलालवी
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए,
जोश-ए-क़दह से बज़्म-ए-चिराग़ां किये हुए !!
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतिमाम किस के लिए
~परवीन_शाकिर
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
मेरे रूठे हुए मेहमान चले आते हैं
~बेख़ुद देहलवी
हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे
ख़्वाब में ये करामात होती रही
कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया
हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है ।
-कतील शिफ़ाई
लाख परायोंसे परिचित है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं?
-शैलेंद्र
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कौन दिन कौन बरस कौन महीना होगा
मैं किस तरह उसे मेहमान-सा विदा करता
कि मेरे घर तो उसे बार-बार आना था…!
काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए
इंतेज़ार है आपका आज भी
ज़रा दस्तक तो दीजिए
वजह हो या बेवजह
ज़रा हमारे dm में तशरीफ़ तो लाइये
जो कुछ हो सुनाना उसे बेशक़ सुनाइये
तकरीर ही करनी हो कहीं और जाइये
याँ महफ़िले-सुखन को सुखनवर की है तलाश
गर शौक आपको भी है तशरीफ़ लाइये।
Swagat Shayari
बहोत कर चुके तस्वीरों में दीदार
हो सके तो अब हुजूर रूबरू तशरीफ़ भी लाइये
शोख़ी के रंग शौक़ के अरमाँ लिए हुए,
बाद-ए-ख़िज़ाँ में मुंतज़िर*-ए-बहार गुलमोहर !!
साल, पर साल, और फिर इस साल
मुंतज़िर हम थे मुंतज़िर हम हैं
~शमीम अब्बास
कहाँ ख़्वाहिशों की ज़मीन पर झुकते हैं रोज़ आसमाँ,
मुंतज़िर* हैं ये हादसे भी गिरते सितारों की चाल के !
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
दिल-ए-मुंतज़िर के आगे ख़िज़ाँ की बिसात क्या,
हसरत ही से गुलज़ार है वीराना किसी का !
सारे मौसम थे ख़फा अब सर पे है अब्र-ए-रवाँ*,
उठ निगाह-ए-मुंतज़िर ये है वक़्त इंतिक़ाम^ का !
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है
मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम मेरी आरज़ू क्या है
~अख़्तर सईद ख़ान
मुंतज़िर जिसके लिए हम हैं कई सदियों से
जाने किस दौर में वो शख़्स हमारा होगा
मुंतज़िर कौन है किस का ये उसे क्या मालूम
उस की मंज़िल है वही जो भी जहाँ रह जाए
~प्रेम कुमार नज़र
अल्लाह बोलते नहीं तो मुस्कुरा ही दो,
मैं कब से मुंतज़िर हूँ तुम्हारे ~जवाब का !! -अंदलीब शादानी
हवाएँ ज़ोर की चलती थीं हंगामा बला का था
मैं सन्नाटे का पैकर मुन्तज़िर तेरी सदा का था
बंद सीपियों में हूँ मुंतज़िर हूँ बारिश का
मैं तुम्हारी आँखों के पानियों में ज़िंदा हूँ
Welcome Shayari Swagat Shayari Hinglish
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matalab tiri amad se hai daraman se nahin hai
hasarat ki qasam dil hi dukhane ke lie a
~hasratjaipuri
mubarak sham ki amad mubarak
yah kisi ki yad le kar a rahi hai
~ziya_zamir
ye kis bahisht-shamail ki amad amad hai
ki gair-e-jalva-e-gul rahaguzar mein khak nahin
amad hai kisi ki ki gaya koi idhar se,
kyoon sab taraf-e-rahaguzar dekh rahe hain !
amad se pahale teri sajate kahan se fool,
mausam bahar ka to tere sath aya hai !!
unaki vo amad-amad apana yahan ye alam,
ik rang ja raha hai, ik rang a raha hai !!
ap aye to khayal-e-dil-e-nashad aya
kitane bhoole hue zakhmon ka pata yad aya
kabhi dil kabhi dhadakan kabhi nazaren kabhi lab
har chij muskurane lag jati hai apake ane ki khabar se…
intazar hai hame apake ane ka
vo nazare mila ke nazare churane ka
mat poochh e_sanam dil ka alam kya hai
intazar hai bas tujhame ~simat jane ka
yoo to banjar sa tha mera ashiyan
mahafil apake ane se saji
dil ko tha apaka besabari se intajar!
palake bhi thi apaki ek jhalak ko bekarar!
apake ane se ayi hai kuchh aisi bahar!
ki dil bas mange apake liye khushiyan beshumar!
har vakt apake ane ki as rahati hai
har pal apase milane ki pyas rahati hai
sab kuchh hai. bas yahan ap nahi
isalie shayad ye jindagi udas rahati hai)
vafaon mein meri itana asar aye
jinhen dhoondhati hai najaren
vah najar aye
ham a jayenge palak jhukane se pahale
apane yad kiya ye khabar aye
hasaraton se apaki rah saja denge
koi fool nahin aj mere daman mein
lekin apake ane par palaken bichha denge
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nigahe bhi hai
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apake anese ayegi aisi bahar
ki chhayegi sabake
dilome khushiya beshumar
har koshish jari meri tumhen manane ki
rakkhi taiyari loot jane ki
ab der hai bas apake ane ki….
apake ane se hui hai ye jindagi rangin
pakar apaka noorani didar
har subah sham ho gai hai hasin
apake ane se jidangi khoobasoorat hai,
har kadam par hamako apaki jaroorat hai
apake ane ki khushi kaise karoon main byan,
bas itana jan lo ab roshan hai mera sara jahan
mast mast mayakada hai, mastiyon ki sham hai,
apake ane se hui khushiyon ki barasat hai ..
apake ane se ai jo khushiya
kaise unhe ham batae
ham harshae, ham itarae
milakar sabhi gunagunae
apake ane ki khabar se rat bhar ghar ka daravaja khula rakha,
yado ne apaki itana bechain kiya,
na nind ayi, kabhi takiya idhar, kabhi udhar rakha
maut ka ana to tay hai maut aegi magar,
apake ane se thodi zindagi badh jaegi !
apake ane se jindagi khoobasoorat hai,
dil mein basai hai jo vah apaki hi soorat hai,
kya batayen ki kya hota hai apake ane se
bahar bhi a jati hai apake ane se
fool bhi khil jate hain apaki ahat se
har subah hoti hai apake hi muskurane se
kya mangoo khuda se guruvar tumhe pane ke bad,
kisaka karoo intajar jindagi mein apake ane ke bad
ho kar khafa na pyaramen,kante bichhaiye
pahaloo mein baith pyar ke,nagame sunaiye
ham muntajir hain apake ane ke ajabhi,is sajedil ko chhediye,kuchh gunagunaiye
apake ane se aj ye sham khas ho gayi..
sare din ki boriyat jhakkkas ho gayi.
apake ane ka shukriya ,
kuchh pal sath bitane ka shukriya….
sapane dikhane ka shukriya,
aur unahe tod ke chale janeka bhi shukriya…
apaka ana, baharon ka ana !
apaka jana, gulashan ka ujad jana !
hamane kabhi dosti ko jana na hota,
agar hamari zindagi mein apaka ana na hota,
yuhi akele guzar dete zindagi ko,
agar apako apana dost mana na hota…
intazar meri ?umr se lamba ho shayad,
apaka ana is marz ki dava ho shayad.
apaka ana…dil dhadakana …
mehandi laga yoon sharmana…
pyar a gaya re…
pyar a gaya..
apase hoti munavvar,meri kayanat hai
ap hon gar sath to, fir rat bhi kab rat hai
apaka ana hamare vaste saugat hai
aj ya to id hai,ya fir shabe-barat hai
doston ke bina yah sham adhoori hai ,
isalie apaka ana jaroori hai |
hamase milane ka kabhi to tum irada rakho
muhabbat se muhabbat ka milan sada rakho
chale ao vakt se vaqt churakar zara sa
tum aoge zarur… hamase ye vada karo.
kash…. ho kuchh isa ittefak….!!
tum rasta bhoolo aur mujh tak chale ao….!!
log dekhege hame ~mohabbat karate to sau bate bana denge.
tum yoo mere dil me chale ao ki kisi ko ahat bhi na ho.
chale ao na ab, kahan gum ho,,
kitani bar kahoon ,mere dard ki dava tum ho.
kab kaha mainne ki mujhako…….chand lakar do..
tum khud chale ao to…didar-e-chand poora ho…
diya khamosh hai lekin kisi ka dil to jalata hai
chale ao jahan tak raushani maloom hoti hai
~nushoor vahidi –
sambhale nahin sambhalata hai dil,
mohabbat ki tapish se na jalao,
ishk talabagar hai tumhara chale ao,
ab zamane ke bahane na banao.
khamoshi ne meri pukara hai tumhen…….!!
koi hasin sham banakar hi chale ao
log dekhenge to afasana bana dalenge|
yoon mere dil mein chale ao ke ahat bhi na ho..
savan ke jhoole pade,tum chale ao,
tum chale ao, tum chale ao…
bahut arajoo hai… in ankho ko… tera khvab dekhane ki,
kabhi to… inaka man rakhane… sapano me chale ao…!
baha le jati hai tumhari
yad mujhe kahan se kahan tak
kabhi tum bhi chale ao
mere thikane tak….
vo mehaman rahe bhi to kab tak hamare
huyi shamma gul aur doobe sitare,
‘qamar’ is qadar un ko jaldi thi ghar ki
vo ghar chal diye chandani dhalate dhalate !! -qamar jalalavi
muddat hui hai yar ko mehaman kiye hue,
josh-e-qadah se bazm-e-chiragan kiye hue !!
bahut se log the mehaman mere ghar lekin
vo janata tha ki hai ehatimam kis ke lie
~paravin_shakir
dil mein fir vasl ke araman chale ate hain
mere roothe hue mehaman chale ate hain
~bekhud dehalavi
ham bulate vo tasharif late rahe
khvab mein ye karamat hoti rahi
kal rat dikha ke khvab-e-tarab jo sej ko soona chhod gaya
har silavat se fir aj usi mehaman ki khushboo ati hai .
-katil shifai
lakh parayonse parichit hai
mel-mohabbat ka abhinay hai,
jinake bin jag soona soona
man ke ve mehaman kahan hain?
-shailendr
kab vo aenge ilahi mire mehaman ho kar
kaun din kaun baras kaun mahina hoga
main kis tarah use mehaman-sa vida karata
ki mere ghar to use bar-bar ana tha…!
kafi nahin khutoot kisi bat ke lie
tasharif laiega mulaqat ke lie
intezar hai apaka aj bhi
zara dastak to dijie
vajah ho ya bevajah
zara hamare dm mein tasharif to laiye
jo kuchh ho sunana use beshaq sunaiye
takarir hi karani ho kahin aur jaiye
yan mahafile-sukhan ko sukhanavar ki hai talash
gar shauk apako bhi hai tasharif laiye.
bahot kar chuke tasviron mein didar
ho sake to ab hujoor roobaroo tasharif bhi laiye
shokhi ke rang shauq ke araman lie hue,
bad-e-khizan mein muntazir*-e-bahar gulamohar !!
sal, par sal, aur fir is sal
muntazir ham the muntazir ham hain
~shamim abbas
kahan khvahishon ki zamin par jhukate hain roz asaman,
muntazir* hain ye hadase bhi girate sitaron ki chal ke !
ab kaun muntazir hai hamare lie vahan
sham a gai hai laut ke ghar jaen ham to kya
dil-e-muntazir ke age khizan ki bisat kya,
hasarat hi se gulazar hai virana kisi ka !
sare mausam the khafa ab sar pe hai abr-e-ravan*,
uth nigah-e-muntazir ye hai vaqt intiqam^ ka !
nigahen muntazir hain kis ki dil ko justujoo kya hai
mujhe khud bhi nahin maloom meri arazoo kya hai
~akhtar said khan
muntazir jisake lie ham hain kai sadiyon se
jane kis daur mein vo shakhs hamara hoga
muntazir kaun hai kis ka ye use kya maloom
us ki manzil hai vahi jo bhi jahan rah jae
~prem kumar nazar
allah bolate nahin to muskura hi do,
main kab se muntazir hoon tumhare ~javab ka !! -andalib shadani
havaen zor ki chalati thin hangama bala ka tha
main sannate ka paikar muntazir teri sada ka tha
band sipiyon mein hoon muntazir hoon barish ka
main tumhari ankhon ke paniyon mein zinda hoon
Aitbaar Shayari– ऐतबार शायरी
Aitbaar Shayari :- Here you can get the best collection of Hindi Shayari on Aitbaar(Trust shayari), You can use it as your hindi whatsapp status or can send this Aitbaar Shayari to your facebook friends. These Hindi sher on Aitbaar is excellent in expressing your emotions and feeling of Aitbar the trust.
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ऐतबार शायरी
ऐतबार शायरी: – ऐतबार पर हिंदी शायरी का सबसे अच्छा संग्रह यहाँ उपलब्ध है, आप इस ऐतबार शायरी को अपने वाहट्सएप्प स्टेटस के रूप में उपयोग कर सकतें है या आप इस बेहतरीन ऐतबार शायरी को अपने दोस्तों को फेसबुक पर भी भेज सकतें हैं। ऐतबार पर हिंदी के यह शेर, आपकी भावनाओं को व्यक्त करने में आपकी मदद कर सकतें हैं। ऐतबार पर शायरी का यहाँ सबसे अच्छा कलेक्शन है. अगर कोई आपसे ऐतबार करता है तो आप मशहूर शायरों के ऐतबार शायरी पर यह शेर उसे भेज सकते हैं या ऐतबार शायरी अपने स्टेटस में लिख सकते हैं.
कोई बात ख़्वाब ओ ख़याल की जो करो तो वक़्त कटेगा अब
‘हमें मौसमों के मिज़ाज पर कोई ऐतबार कहाँ रहा’
#अदा_ज़ाफ़री
रिश्तों का एतबार वफ़ाओं का इंतिज़ार,
हम भी चराग़ ले के हवाओं में आए हैं !! – निदा फ़ाज़ली
बडा दोगला है ये शख्स भी, कोइ ऐतबार करे तो क्या,
ना तो झूठ बोले कभी कभी, ना कभी कहे वो खरा खरा..!
-गुलज़ार
आदतन तुमने कर दिए वादे
आदतन हमने ऐतबार किया
तेरी राहों में बारहा रुक कर
हमने अपना ही इंतजार किया
-गुलज़ार
गज़ब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया/
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
Hinglish Font me Aitbaar Shayari – Trust Shayari
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meri zabaan ke mausam badalate rahate hain
main aadami hoon mera aitabaar mat karana
~aasim vaasti
mohabbat is lie zaahir nahin ki
ki tum ko aitabaar aae na aae
jo tumhaari tarah tum se koi jhoote vaade karata
tumhin munsif se kah do tumhen aitabaar hota
~daag dehalavi
meri taraf se to toota nahin koi rishta
kisi ne tod diya aitabaar toot gaya
~akhtar nazmi
tere vaade par sitamagar abhi aur sabr karate
agar apani zindagi ka hamen aitabaar hota
#daag_dehalavi
musaafiron se mohabbat ki baat kar lekin
musaafiron ki mohabbat ka aitabaar na kar
#umar_ansaari
gazab kiya tere vaade pe aitabaar kiya
tamaam raat qayaamat ka intizaar kiya
~daag dehalavi
main zabaan se tumako sachcha,kaho laakh baar kah doon,
use kya karoon ke dil ko, nahin etabaar hota !!
vo jhoot bol raha tha bade saliqe se
main aitabaar na karata to aur kya karata
#vasim_barelavi
dhadakata jaata hai dil muskuraane vaalon ka
utha nahin hai abhi aitabaar naalon ka !!-kalim aajiz
vaada kiya tha phir bhi na aaye mazaar par,
hamane to jaan di thi, isi etabaar par !!
bade vasooq se duniya fareb deti hai,
bade khuloos se ham aitabaar karate hain !!
yaqin chaand pe, sooraj mein aitabaar bhi rakh
magar nigaah mein thoda sa intazaar bhi rakh
#nidafazli
koi baat khvaab o khayaal ki jo karo to vaqt katega ab
hamen mausamon ke mizaaj par koi aitabaar kahaan raha
#ada_zaafari
rishton ka etabaar vafaon ka intizaar,
ham bhi charaag le ke havaon mein aae hain !! – nida faazali
bada dogala hai ye shakhs bhi, koi aitabaar kare to kya,
na to jhooth bole kabhi kabhi, na kabhi kahe vo khara khara..!
-gulazaar
aadatan tumane kar die vaade
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teri raahon mein baaraha ruk kar
hamane apana hi intajaar kiya
-gulazaar
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Bharosa Shayari– भरोसा शायरी – Hate Shayari
Bharosa shayari :- Here you can get the best collection of Hindi Shayari on Bharosa (Trust shayari), You can use it as your hindi whatsapp status or can send this Bharosa Shayari to your facebook friends. These Hindi sher on Bharosa is excellent in expressing your emotions and anger. For other subject list of all Hindi Shayari is here Hindi Shayari .
Bharosa shayari :- दोस्तों जीवन में भरोसा यानि यकीन बहुत ज़रूरी होता है, जीवन में कई लोग आप पर भरोसा करतें हैं और आप भी अपने साथियों पर भरोसा करते हैं …परसपर यह विश्वास और भरोसा ही हर रिश्ते को बनता है ……आइये जानते हैं के प्रख्यात शायरों ने भरोसा पर शायरी में क्या कहा है …..
भरोसा पर हिंदी शायरी का सबसे अच्छा संग्रह यहाँ उपलब्ध है, आप इस भरोसा शायरी को अपने वाहट्सएप्प स्टेटस के रूप में उपयोग कर सकतें है या आप इस बेहतरीन भरोसा शायरी को अपने दोस्तों को फेसबुक पर भी भेज सकतें हैं। भरोसा पर हिंदी के यह शेर, आपकी भावनाओं को व्यक्त करने में आपकी मदद कर सकतें हैं। भरोसा पर शायरी का यहाँ सबसे अच्छा कलेक्शन है. अगर कोई आपसे भरोसा करता है तो आप मशहूर शायरों के भरोसा शायरी पर यह शेर उसे भेज सकते हैं या भरोसा शायरी अपने स्टेटस में लिख सकते हैं.
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें !! -अल्लामा इक़बाल
इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया
आदमी बुलबुला है पानी का
क्या भरोसा है ज़िंदगानी का
~रज़ा
Bharosa shayari भरोसा शायरी हिंदी में
जो होने वाला है अब उसकी फ़िक्र क्या कीजे
जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता
~ Shahryar
मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ
हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने
~मख़मूर_सईदी
उस पे आती है मोहब्बत ऐसे
झूठ पे जैसे यकीन आता है
मुश्किल का मेरी उनको मुश्किल से यक़ीन आया
समझे मेरी मुश्किल को लेकिन बड़ी मुश्किल से
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
किसी को क्या मुझे ख़ुद भी यक़ीं नहीं आता
सर में सौदा* भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा
मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी
~Munawwar Rana
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है
~अहमद_मुश्ताक़
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
और अब सोचता हूँ उस का भरोसा क्या था
~शहज़ाद_अहमद
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
~अमीर_क़ज़लबाश
यक़ीन किस पे करें किस को दोस्त ठहराएँ
हर आस्तीन में पोशीदा कोई ख़ंजर है
~हफ़ीज़_बनारसी
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे
~शकील_बदायुनी
न कर किसी पे भरोसा कि कश्तियाँ डूबें
ख़ुदा के होते हुए नाख़ुदा के होते हुए
~अहमद_फ़राज़
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है
~QatilShifai
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख
~NidaFazli
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किसका बढ़ाता है कोई
यूँ न मुरझा कि मुझे ख़ुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तिरे साथ खिला हूँ मैं भी
~मज़हर_इमाम
बुरी है आग पेट की,बुरे हैं दिल के दाग़ ये
न दब सकेंगे,एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
~शैलेन्द्र
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
~ManzoorHashmi
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
~AmeerQazalbash
क्यूँ इतना हमें अपनी मोहब्बत पे यक़ीं है
दुनिया तो मोहब्बत की परस्तार नहीं है
~आलम_ख़ुर्शीद
~BackToBachpan
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
यक़ीन चाँद पे, सूरज में एतिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख
~NidaFazli
उठा कर रोज़ ले जाता है मेरे ख़्वाब का मंज़र
वो मुझ से रोज़ कहता है भरोसा क्यूँ नहीं करते
~ख़ालिद_महमूद
तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा न करो
तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे
कैफ़_अज़ीमाबादी
Bharosa shayari भरोसा शायरी
नहीं नहीं मैं बहुत ख़ुश रहा हूँ तेरे बग़ैर
यक़ीन कर कि ये हालत अभी अभी हुई है
~IrfanSattar
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
~AhmadFaraz
नक़ाब कहती है मैं पर्दा-ए-क़यामत हूँ
अगर यक़ीन न हो देख लो उठा के मुझे ~जलील_मानिकपुरी
न कोई वादा, न कोई यक़ीं. न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तेरा इंतिज़ार करना था
~Firaq
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा ~AmeerQazalbash
मुंसिफ़ = judge
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख ~NidaaFazali
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है ~manzoorhashmi
Bharosa Shayari – Trust Shayari roman
doston jevan mein bharosa yani yaken bahut zaroore hota hai, jevan mein kae log ap par bharosa karaten hain aur ap bhe apane sathiyon par bharosa karate hain …parasapar yah vishvas aur bharosa he har rishte ko banata hai ……aiye janate hain ke prakhyat shayaron ne bharosa par shayari mein kya kaha hai ..
Bharosa par hindi shayari ka sabase achchha sangrah yahan upalabdh hai, ap is Bharosa hindi shayari ko apane Bharosa wahatsapp status ke roop mein upayog kar sakaten hai ya ap is Bharosa shayari ko apane doston ko facebook par bhi bhej sakaten hain. Bharosa par hindi ke yah sher, apaki bhavanaon ko vyakt karane mein apaki madad kar sakaten hain. Bharosa par shayari ka yahan sabase achchha collection hai.
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vo mujh ko bhool chuka ab yaqin hai varna
vafa nahin to jafaon ka silasila rakhata
~iffat zarrin
vae khush-fahami ki parvaz-e-yaqin se bhi gae
asaman chhoone ki khvahish mein zamin se bhi gae
~zafar kalim
yoon mulaqat ka ye daur banae rakhie
maut kab sath nibha jae bharosa kya hai
chahie khud pe yaqin-e-kamil
hausala kis ka badhata hai koi
~shakil badayuni
na koi vada na koi yaqin na koi umid
magar hamen to tera intizar karana tha
~firaq gorakhapuri
divaren chhoti hoti thin lekin parda hota tha
tale ki ijad se pahale sirf bharosa hota tha
jab tak matha choom ke rukhsat karane vali zinda thi
daravaze ke bahar tak bhi munh mein luqma hota tha
~azahar farag
ajab ye daur aya hai ki jis mein
galat kuchh bhi nahin sab kuchh sahi hai
mukammal khud ko jo bhi manata hai
yaqin mane bahut us mein kami hai
~niraj gosvami
tumhare panv ke niche koi zamin nahin
kamal ye hai ki, fir bhi tumhen yaqin nahin
~dushyant kumar
use guman hai ki meri udan kuchh kam hai
mujhe yaqin hai ki ye asaman kuchh kam hai
~nafas ambalavi
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
~manzoor_hashami
koi bhi nahin jis pe bharosa kije
yan log badal jate hain mausam ki tarah
usi ka shahar, vahi muddi, vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amir qazalabash
umr jitani bhi kati us ke bharose pe kati
aur ab sochata hoon us ka bharosa kya tha
~shahazad ahamad
saval hi nahin duniya se mere jane ka
mujhe yaqin hai jab tak kisi ke ane ka
~anavar shoor
adami bulabula hai pani ka
kya bharosa hai zindagani ka
meri zaban se meri dastan suno to sahi
yaqin karo na karo meharaban suno to sahi
~sudarshan fakir ~goodmorning
yaqin na ae to ik bat poochh kar dekho
jo hans raha hai, vo zakhmon se choor nikalega
~amir qazalabash
mujhe chhod de mere hal par
tera kya bharosa hai charagar,
ye teri navazish-e-mukhtasar
mera dard aur badha na de,
~shakaiailbadayuni
so dekh kar tire rukhsar o lab yaqin aya
ki fool khilate hain gulazar ke alava bhi
~faraz
dil ko teri chahat pe bharosa bhi bahut hai
aur tujh se bichhad jane ka dar bhi nahin jata
~ahamad faraz
vo shakhs bada hai to galat ho nahin sakata
duniya ko bharosa ye abhi to nahin hoga
~alok_shrivastav
irade chhootane vale na araman tootane vale
mujhe tujh par yaqin hain ai mera dil lootane vale
tujhe meri muhabbat ka na ab tak aitabar aya
na koi vada na koi yaqin na koi ummid
magar hamen to tira intizar karana tha
~firaq
hasino par yaqin karana sarasar bevakoofi hai,
ada in ki hai qafir to farebi chal hai pyare !!
yaqin usi ke vade pe lana padega
ye dhokha to danista khana padega
~munir_bhopali
gulami mein na kam ati hain shamashiren na tadabiren,
jo ho zauq-e-yaqin paida to kat jati hain zanjiren !! -allama iqabal
is hadase ko sun ke karega yaqin koi
sooraj ko ek jhonka hava ka bujha gaya
adami bulabula hai pani ka
kya bharosa hai zindagani ka
~raza
jo hone vala hai ab usaki fikr kya kije
jo ho chuka hai usi par yaqin nahin ata
~ shahryar
main us ke vade ka ab bhi yaqin karata hoon
hazar bar jise azama liya main ne
~makhamoor_saidi
us pe ati hai mohabbat aise
jhooth pe jaise yaken ata hai
mushkil ka meri unako mushkil se yaqin aya
samajhe meri mushkil ko lekin badi mushkil se
nazar jo koi bhi tujh sa hasin nahin ata
kisi ko kya mujhe khud bhi yaqin nahin ata
sar mein sauda* bhi nahin, dil mein tamanna bhi nahin
lekin is tark-e-mohabbat ka bharosa bhi nahin
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
ab zindagi ka koi bharosa nahin raha
marane lage hain log qaza ke bagair bhi
~munawwar ran
mil hi jaega kabhi dil ko yaqin rahata hai
vo isi shahar ki galiyon mein kahin rahata hai
~ahamad_mushtaq
umr jitani bhi kati us ke bharose pe kati
aur ab sochata hoon us ka bharosa kya tha
~shahazad_ahamad
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amir_qazalabash
yaqin kis pe karen kis ko dost thaharaen
har astin mein poshida koi khanjar hai
~hafiz_banarasi
mujhe chhod de mere hal par tira kya bharosa hai charagar
ye tiri navazish-e-mukhtasar mera dard aur badha na de
~shakil_badayuni
na kar kisi pe bharosa ki kashtiyan dooben
khuda ke hote hue nakhuda ke hote hue
~ahamad_faraz
achchha yaqin nahin hai to kashti duba ke dekh
ik too hi nakhuda nahin zalim khuda bhi hai
~qatilshifai
yaqin chand pe sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh
~nidafazli
chahie khud pe yaqin-e-kamil
hausala kisaka badhata hai koi
yoon na murajha ki mujhe khud pe bharosa na rahe
pichhale mausam mein tire sath khila hoon main bhi
~mazahar_imam
buri hai ag pet ki,bure hain dil ke dag ye
na dab sakenge,ek din banenge inqalab ye
too zinda hai to zindagi ki jit mein yaken kar
~shailendr
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
~manzoorhashmi
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amaiairqazalbas
kyoon itana hamen apani mohabbat pe yaqin hai
duniya to mohabbat ki parastar nahin hai
~alam_khurshid
~bachktobachhpan
mujhako yaqin hai sach kahati thin jo bhi ammi kahati thin
jab mere bachapan ke din the chand mein pariyan rahati thin
yaqin chand pe, sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh
~nidafazli
utha kar roz le jata hai mere khvab ka manzar
vo mujh se roz kahata hai bharosa kyoon nahin karate
~khalid_mahamood
tum samundar ki rifaqat pe bharosa na karo
tishnagi lab pe sajae hue mar jaoge
kaif_azimabadi
nahin nahin main bahut khush raha hoon tere bagair
yaqin kar ki ye halat abhi abhi hui hai
~irfansattar
dil ko teri chahat pe bharosa bhi bahut hai
aur tujhase bichhad jane ka dar bhi nahin jata
~ahmadfaraz
naqab kahati hai main parda-e-qayamat hoon
agar yaqin na ho dekh lo utha ke mujhe ~jalil_manikapuri
na koi vada, na koi yaqin. na koi ummid
magar hamen to tera intizar karana tha
~firaq
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega ~amaiairqazalbash
munsif = judgai
yaqin chand pe sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh ~nidafazali
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai ~manzoorhashmi
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फ़रेब शायरी (धोका शायरी)
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फ़रेब शायरी (धोका शायरी) के बारे में अपने विचार …शायरी नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएं ….
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के !! -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शोबदा-बाज़ी* किसी की न चलेगी हम पर
तंज़ ओ दुश्नाम** को कहते हो लतीफ़ा समझें
– Bilqis Zafirul Hasan
यक़ीन उसी के वादे पे लाना पड़ेगा
ये धोका तो दानिस्ता खाना पड़ेगा
~मुनीर_भोपाली
फ़रेब खाने को पेशा बना लिया हम ने
जब एक बार वफ़ा का फ़रेब खा बैठे
~अहमद_नदीम_क़ासमी
दुनिया फ़रेब दे के हुनरमंद हो गई
मैं एतेमाद करके गुनाहगार हो गया
~अदम
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम
इक इक क़दम फ़रेब-ए-तमन्ना से बच के चल
दुनिया की आरज़ू है तो दुनिया से बच के चल
~शकील_बदायुनी
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
~Faiz
جن کا مقصد فریب ہوتا ہے
وہ بڑی سادگی سے ملتے ہیں
जिन का मक़्सद फ़रेब होता है
वो बड़ी सादगी से मिलते हैं
यूँ दीजिए फ़रेब-ए-मोहब्बत कि उम्र भर
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे
~ShakeelBadayuni
जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिलें
फ़रेब दो तो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे
~अहमद_फ़राज़
हर इक शिकस्त-ए-तमन्ना पे मुस्कुराते हैं
वो क्या करें जो मुसलसल फ़रेब खाते हैं
~राज़_मुरादाबादी
ज़हे करिश्मा कि यूँ दे रक्खा है हम को फ़रेब,
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है क्या कहिए !! -मिर्ज़ा ग़ालिब
ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले
मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ
~अतहर_नफ़ीस
बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती है,
बड़े ख़ुलूस से हम ऐतबार करते हैं !!
ये और बात कि मंज़िल-फ़रेब था लेकिन
हुनर वो जानता था हम-सफ़र बनाने का
~SaleemAhmad
माना ये ज़िंदगी है फ़रेबों का सिलसिला
देखो किसी फ़रेब के जौहर कभी कभी
समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया,
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में !! ~JavedAkhtar
तेरे वादों पे कहाँ तक मेरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना, मेरी आस टूट जाए
~FanaNizami
अब न बहल सकेगा दिल अब न दिए जलाइए
इश्क़ ओ हवस हैं सब फ़रेब आप से क्या छुपाइए
~AhmadMushtaq
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढा कर देखो
-निदा फ़ाजली
इस कदर भुखा हु दोस्तों
के आज कल ‘धोका‘ भी खा लेता हु…!
‘हमने तो समझा था फूल खिले
चुन-चुन के देखा तो काँटे मिले
ये अनोखा जहां,हरदम धोका यहाँ
इस वीराने में कैसी बहार’
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Dhoka shayari in roman hinglish
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pyar karo to hamesha muskura ke, kisi ko Dhoka na do apana bana ke, kar lo yad jab tak ham zinda hai, fir na kahana ki chale gaye dil me yaden basa ke…
bade vasooq se duniya fareb deti rahi bade khuloos se ham etibar karate rahe ~shokat vasti chamak chamak ke sitaro mujhe fareb na do tum apani rat guzaro mujhe fareb na do ~shahazad ahamad qadam qadam fareb hai har rah hai dushvar, paon mein sau bediyan jaise chalana qusoor hai !! tire vadon pe kahan tak mira dil fareb khae, koi aisa kar bahana miri as toot jae !! -fana nizami kanapuri
ham ko lutf ata hai ab fareb khane mein azamaen logon ko, khoob azamane mein ~alam khurshid ye bhi fareb se hain kuchh dard ashiqi ke ham mar ke kya karenge kya kar liya hai ji ke ~asagar gondavi aya na ek bar ayadat ko too masih sau bar main fareb se bimar ho chuka ~amaiairminai
duniya ne teri yad se begana kar diya, tujh se bhi dil-fareb hain gam rozagar ke !! -faiz ahamad faiz
shobada-bazi* kisi ki na chalegi ham par tanz o dushnam** ko kahate ho latifa samajhen
bilqis zafirul hasan yaqin usi ke vade pe lana padega ye Dhoka to danista khana padega ~munir_bhopali fareb khane ko pesha bana liya ham ne jab ek bar vafa ka fareb kha baithe ~ahamad_nadim_qasami
duniya fareb de ke hunaramand ho gai main etemad karake gunahagar ho gaya ~adam barason fareb khate rahe doosaron se ham apani samajh mein ae badi mushkilon se ham
ik ik qadam fareb-e-tamanna se bach ke chal duniya ki arazoo hai to duniya se bach ke chal ~shakil_badayuni
duniya ne teri yad se begana kar diya tujh se bhi dil-fareb hain gam rozagar ke ~faiz
jn ka mqshd fryb ہwt ہے wہ bڑy sadgy sے mltے ہyں jin ka maqsad fareb hota hai vo badi sadagi se milate hain yoon dijie fareb-e-mohabbat ki umr bhar main zindagi ko yad karoon zindagi mujhe ~shakaiailbadayuni judaiyan hon to aisi ki umr bhar na milen fareb do to zara silasile badha ke mujhe ~ahamad_faraz
har ik shikast-e-tamanna pe muskurate hain vo kya karen jo musalasal fareb khate hain ~raz_muradabadi zahe karishma ki yoon de rakkha hai ham ko fareb, ki bin kahe hi unhen sab khabar hai kya kahie !! -mirza galib
ai mujh ko fareb dene vale main tujh pe yaqin kar chuka hoon ~atahar_nafis
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ye aur bat ki manzil-fareb tha lekin hunar vo janata tha ham-safar banane ka ~salaiaimahmad
mana ye zindagi hai farebon ka silasila dekho kisi fareb ke jauhar kabhi kabhi samajh liya tha kabhi ek sarab ko dariya, par ek sukoon tha hamako fareb khane mein !! ~javaidakhtar
tere vadon pe kahan tak mera dil fareb khae koi aisa kar bahana, meri as toot jae ~fananizami
ab na bahal sakega dil ab na die jalaie ishq o havas hain sab fareb ap se kya chhupaie ~ahmadmushtaq
fasala nazaron ka Dhoka bhi to ho sakata hai vo mile ya na mile hath badha kar dekho -nida fajali
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