Rumi Ki Kahaniyan
सबसे बड़ा पहलवान
ईरान के काज़िम नाम के शहर में एक व्यक्ति रहता था जो की एक माहिर पहलवान था, उसने आस पास की कई कुश्ती की प्रतियोगिताओं (दंगल) में जीत हांसिल की थी. चुकी उसने आस पास के शहरों के लगभग सभी पहलवानो को अखाड़े में मात दे रखी थी, इसलिए वो अपने आपको सबसे बड़ा पहलवान और ताकतवर समझने लगा था। इसी वजह से उसमे घमंड और गुरुर बहुत आ गया था।
एक दिन उसने हम्माम में एक पुराने ज़माने के पहलवान की तस्वीर देखी, जो उस दौर के पहलवानों के लिए आदर्श था। इस तस्वीर में, पहलवान के बाज़ुओं पर शैर गुदा हुआ था, जो की साहस और ताकत का प्रतीक था। यह देखकर इस जवान पहलवान के मन में यह बात आई की अब जबकि में सभी पहलवानों को अखाड़े में धुल चटा चूका हूँ, तो क्यों न में भी एसा ही शैर का निशान अपने जिस्म पर गुदवाउ, जिससे लोग मुझे भी ईरान के बड़े बड़े पहलवानों में गिनने लगे।
उसने एक माहिर गोदने वाले कारीगर की तलाश की, उसे आखिरकार एक माहिर गोदने वाला मिल गया जो एकदम नक्काशी की तरह खूबसूरत टैटू, लोगों के शरीर पर उकेर देता था। लेकिन जो लोग अपने जिस्म पर टैटू गुदवाते थे उन्हें बहुत ज़्यादा दर्द बर्दाश्त करना पड़ता था।
इस पहलवान ने गोदने वाले कारीगर से कहा “मेरी पीठ पर एक खूबसूरत शैर बना दो ! ”
उस्ताद कारीगर ने अपने नश्तर को गर्म किया, जैसे ही उसने गर्म नश्तर पहलवान के पीठ पर चुभोया उसे बहुत ज़्यादा दर्द का अहसास हुआ, और वह चीख कर कहने लगा ” अरे उस्ताद क्या कर रहे हो !!! दर्द से मेरा बुरा हाल हो रहा है !” इसपर कारीगर ने कहा था ” तुम्ही ने तो कहा है की मेरी पीठ पर एक शैर गोद दो, वही कर रहा हूँ!”
पहलवान ने कहा ” यह कोनसा गोदना है जिसमे इस कदर तकलीफ हो रही है!”
उस्ताद ने कहा “शैर बना रहा हूँ”
पहलवान ने कहा “शैर के किस हिस्से को बनाना शुरू किया है ?”
उस्ताद ने कहा ” दुम को !”
पहलवान ने कहा “में बगैर दुम का ही शैर बनवाना चाहता हूँ, उसकी दुम हाथियों के साथ लड़ाई में काट गयी है।”
उस्ताद को यह बात अच्छी नहीं लगी, क्यों की इससे उसकी कला की खूबसूरती बेकार हो रही थी, लेकिन मन मारकर उसने शैर का दूसरा हिस्सा पीठ पर गोदना शुरू किया।
पहलवान दर्द से फिर चीख उठा ” अरे उस्ताद अब क्या बना रहे हो ?”
“शैर का पेट बना रहा हूँ” उस्ताद ने जवाब दिया
“अरे तुम पेट वगेरह छोडो और कुछ बनाओ” पहलवान ने कहा।
यह सुनकर उस्ताद गुस्से में आकर बोला ” आजतक किसी ने बगैर दुम और पेट का शैर देखा है ! जब तुम एक नश्तर का दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकते तो खुद को सबसे बड़ा पहलवान कैसे कहते हो ! बेहतर है की हर शख़्श को अपनी ताकत का हर काम में सही अंदाज़ा होना चाहिए!
किसी एक विद्या में पारंगत होने पर घमंड नहीं करना चाहिए, केवल अखाड़े में कुश्ती जीत लेने से ही कोई बहादुर नहीं हो जाता।”