SAD SHAYARI
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ग़म शायरी (Sad Shayari)
ग़म शायरी का सबसे अच्छा संग्रह यहाँ उपलब्ध है, आप इस ग़म शायरी को अपने हिंदी वाहट्सएप्प स्टेटस के रूप में उपयोग कर सकतें है या आप इस बेहतरीन ग़म शायरी को अपने दोस्तों को फेसबुक पर भी भेज सकतें हैं। ग़म शायरी पर हिंदी के यह शेर, आपके प्यार और भावनाओं को व्यक्त करने में आपकी मदद कर सकतें हैं। सभी हिंदी शायरी की लिस्ट यहाँ हैं। इस सेड शायरी में कई तरह के लफ़्ज़ों पर शेर हैं जैसे दर्द शायरी, दर्द ए दिल शायरी, आँसू शायरी, जुदाई शायरी,हिंदी शायरी, तन्हाई हिंदी शायरी, ग़म शायरी, यादें शायरी, बेकरारी शायरी। complete list of Hindi Shayari
Aansoo Hindi Shayari (Sad Shayari)
Judai Hindi Shayari (Sad Shayari)
Tanhai Hindi Shayari (Sad Shayari)
Yaad Hindi Shayari (Sad Shayari)
Bekarari Hindi Shayari (Sad Shayari)
Gham Hindi Shayari (Sad Shayari)
ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे, सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिए।
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ग़म में रोता हूँ तेरे सुब्ह कहीं शाम कहीं चाहने वाले को होता भी है आराम कहीं
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बाटने के लियें दोस्त हजारो रखना, जब ग़म बांटना हो तो हमें याद करना..
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मेरा हर पल आज खूबसूरत ह दिल में जो सिर्फ तेरी ही सूरत है कुछ भी कहे ये दुनिया ग़म नहीं दुनिया से ज्यादा हमें तेरी ज़रूरत है
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मेरे हबीब मेरी मुस्कुराहटों पे न जा ख़ुदा-गवाह मुझे आज भी तेरा ग़म है
*** (Sad Shayari)
लज़्ज़ते ग़म बढ़ा दीजिये .. आप फिर मुस्कुरा दीजिये
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मेरी फ़ितरत में नहीं की अपना ग़म बायाँ करू.
..अगर तेरे दिल का हिस्सा हु तो महसूस कर तकलीफ़ मेरी.
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बिछड़ी हुई राहों से जो गुज़रे हम कभी हर ग़म पर खोयी हुई एक याद मिली है
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ख़ुशियाँ तो गिन चुके उँगलियों पे कई बार हम… पर ग़म तो हैं बेशुमार, ईन ग़मों का हिसाब क्या…
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अगर वो पूछ लें हमसे, तुम्हें किस बात का ग़म है तो फिर किस बात का ग़म है,अगर वो पूछ लें हमसे
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तुम्हारे जाने का ग़म ही कम नहीं यूं तो.. तकलीफ़ और भी होती है जब लोग..मुझसे वजह पूछते हैं..!!
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हद से बढ़ जाये ताल्लुक तो ग़म मिलते है. हम इसी वास्ते अब हर शख्स से कम मिलते है..!!
*** (Sad Shayari)
बहुत दिन हुए तुम्हें ठीक से सोचा नहीं पर जब तुम अपने नहीं तो तुम्हें सोचूँ क्यों थोड़ी ख़ुशी मिलेगी और ढेर सारा ग़म
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मंज़िलों के ग़म में रोने से मंज़िलें नहीं मिलती; हौंसले भी टूट जाते हैं अक्सर उदास रहने से
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दो जवाँ दिलों का ग़म दूरियाँ समझती हैं कौन याद करता है हिचकियाँ समझती हैं।
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कोई तेरे साथ नहीं है तो भी ग़म ना कर; ख़ुद से बढ़ कर दुनिया में कोई हमसफ़र नही होता
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हमें कोई ग़म नहीं था„ ग़म-ए-आशिकी से पहले… न थी दुश्मनी किसी से„ तेरी दोस्ती से पहले…!!!
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ग़म–ए–हयात ने आवारा कर दिया वर्ना , थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें!
*** (Sad Shayari)
हंसती हुई आंखों में भी ग़म पलते है कौन मग़र झांके इतनी गहराई में
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कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं… शाम के साये बहुत तेज़ कदम आते हैं…. Bashir Badr
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ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक Mirza Ghalib
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शायद खुशी का दौर भी आ जाए एक दिन, ग़म भी तो मिल गये थे तमन्ना किये बगैर…
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ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है पे कहाँ बचें कि दिल है ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता Mirza Ghalib
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दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के Faiz
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भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें; आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें।
*** (Sad Shayari)
ग़म बढे आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह
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मेरी सुबह हो के न हो मुझे..है फिराक़ यार से वास्ता.. शबे ग़म से मेरा मुकाबला..दिले बेकरार से वास्ता..
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है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या कुसूर इसमें,
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दग़ी से पहले।
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ज़िन्दगी लोग जिसे मरहम-ए-ग़म जानते हैं;
जिस तरह हम ने गुज़ारी है वो हम जानते हैं।
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मेरा भी और कोई नहीं है तेरे सिवा ऐ शाम-ए-ग़म तुझे मैं कहाँ छोड़ जाऊँगा !
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ग़म वो मय-ख़ाना कमी जिस में नहीं दिल वो पैमाना है भरता ही नहीं
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अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी . Sahir
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ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
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किनारों पर रात के.. उभरता है एक ग़म.. लोग कहते चाँद हैं.. मैं कहता बे-रहम..
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खुशीयों की मंजिल ढुंढी तो ग़म की गर्द मिली चाहत के नगमें चाहे तो आहें सर्द मिली दिल के बोझ को दुना कर गया, जो ग़मखार मिला…
*** (Sad Shayari)
न किसी का फेंका हुआ मिले, न किसी से छीना हुआ | मुझे बस मेरे नसीब मे लिखा हुआ मिले, ना मिले ये भी तो कोई ग़म नही | मुझे बस मेरी मेहनत का मिले
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तुम्हें देख न पाने का ग़म नहीं पढ़ लेती हूँ तुम्हें शयरी की तरह
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लोग लेते है यूँ ही………? शमाँ और परवाने का नाम कुछ नहीं है इस जहाँ में……? ग़म के अफ़साने का नाम_
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दयार-ए-ग़म में दिल-ए-बेक़रार छूट गया सम्भल के ढूंढने जाओ बहुत अँधेरा है Firaq
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वो बड़े ताज्जुब से पूछ बैठा मेरे ग़म की वजह… फिर हल्का सा मुस्कुराया और कहा…. तुमने मोहब्बत की है कभी।
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कभी आह लब पे मचल गई कभी अश्क़ आँख से ढल गए, ये ग़म के चिराग है,कभी बुझ गए कभी जल गए…
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न खुशियों से मोहब्बत की न ग़म से दुश्मनी रखी… मेरे दिल ने मेरे हालात से बस दोस्ती रखी…
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दिल को ग़म ए हयात गवारा है इन दिनों, दिल को जो दर्द था,वही प्यारा है
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शाख से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
फूल हैं ख़ुश्बू लुटा कर ख़ाक हो जाएंगे हम
*** (Sad Shayari)
आपकी याद आती रही रात-भर” चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर, . गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
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जिससे दुर हो जाए मेरे ग़म ! मौन रह कर भी तेरे दिल की गहराई तक फैली उस तन्हाई से बात कर सकूं !
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हम पर ग़म – ऐ – जहाँ हैं, ये और बात है…
हम फिर भी बेज़ुबान हैं, ये और बात है …!!
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बीते दिन अब कभी लौट कर ना आयेंगे,
हम कौन से ज़िन्दा हैं कि इस ग़म में मर जायेंगे।
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वो जब याद आये, बहोत याद आये
ग़म-ए-जिन्दगी के, अँधेरे में हम है चिराग-ए-मोहब्बत जलाए बुझाए …
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ग़म की गर्मी से दिल पिघलते रहे तजर्बे आँसुओं में ढलते रहे
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क्या जानू सजन होती है क्या ग़म की शाम जल उठे सौ दिए,जब लिया तेरा नाम.
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आँसुओ थोड़ी मदद मुझ को तुम्हारी चाहिए ग़म चले जाएँगे वर्ना दिल को बंजर छोड़ कर
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निकला हूँ मैं तलाश में शायद वफ़ा मिले, इस दर्द-ओ-ग़म के वास्ते कोई दवा मिले!
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ग़म-ए-दौरां में टूट-टूटकर बिखरी है हस्ती मेरी कर कुछ और सितम मेरा वजूद अभी बाकी है
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है अब इस मामूरे में, क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त असद, हमने ये माना के, दिल्ली में रहे खावेंगे क्या? Mirza Ghalib
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आसूओं में चाँद डूबा रात मुरझाई जिन्दगी में दूर तक, फ़ैली है तनहाई जो गुजरे हम पे वो कम है, तुम्हारे ग़म का मौसम है …!!
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उन लोगों का क्या हुआ होगा; जिनको मेरी तरह ग़म ने मारा होगा; किनारे पर खड़े लोग क्या जाने; डूबने वाले ने किस-किस को पुकारा होगा।
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अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म? मकामात-ए-आह-ओ-फुगाँ और भी हैं
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ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला बहर-ए-हस्ती का बहुत दूर किनारा निकला
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तुम्हारे वास्ते ये ग़म उठाने वाला हूँ
रुको ए आंसुओ मैं मुस्कुराने वाला हूँ .
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हंस हंस के मेरी हालते ग़म देखनेवाले
ये दौलते ग़म तेरी बदौलत ही मिली है….!
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हँसने पर आँसू आते हैं रोना है फरेबी आँखों का,
उस दिन से ग़म है मेरे दिल में जिस दिन से उल्फ़त है सीने में,,,
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झूठ कहते हैं लोग कि मोहब्बत सब कुछ छीन लेती है
. . मैंने तो मोहब्बत करके, ग़म का खजाना पा लिया…!!!
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एक शख़्स ही बहुत है ग़म बाँटने के लिये
महफ़िलों में तो बस तमाशे बनते हैं
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ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है…..
ना तो किसी को ग़म चाहिए और ना ही किसी को कम चाहिए………
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मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, ग़म और ख़ुशी में फर्क ना महसूस हो जहा, मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया।
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चले आते हैं ग़म बार-बार..क्या तरीका है..
कोई कह दो जिंदगी से भी…”ये हो चुका है”..!!
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घर में था क्या जो तेरा ग़म उसे ग़ारत करता?
वो जो हम रखते थे इक हसरत-ए तामीर,सो है! Mirza Ghalib
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तू देख या मत देख , इस बात का ग़म नहीं !
पर ये मत कह की हम तेरे कुछ नहीं !!
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ये जो अपनी जां के हरीफ़ हम, तेरी बेरुखी का शिकार थे
जो गिला करें भी तो क्या करें, तेरे अपने ग़म ही हज़ार थे..!
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मुसलसल ग़म उठाने से ये बेहतर है,
अगर मानो किनारा करने वालों से किनारा कर लिया जाए….!
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कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब आज तुम याद बेहिसाब आए …. !!
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शाम-ए-ग़म है तेरी यादों को सजा रक्खा है
मैं ने दानिस्ता चराग़ों को बुझा रक्खा है
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वो जो तुमने एक दवा बतलाई थी ग़म के लिए,
ग़म तो ज्यूं का त्यूं रहा बस हम शराबी हो गये
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मयखाने में आऊंगा मगर पियूँगा नहीं साकी ।।
ये शराब मेरा ग़म मिटाने की ताकत नहीं रखती।
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दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
ऐ ग़म-ए-हस्ती हमें दुनिया पसंद आई बहुत,
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गुजर जाएगा ये दौर भी ज़रा इत्मीनान तो रख जब ख़ुशी ही ना ठहरी
तो ग़म की क्या औकात है।
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पी लेता हूँ यु हैं कभी-कभी ग़म भुलाने को
के डगमगाना ज़रूरी है संभलने के लिए
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महब्बत में करें क्या हाल दिल का ख़ुशी ही काम आती है न ग़म
भरी महफ़िल में हर इक से बचा कर तेरी आँखों ने मुझसे बात कर ली
***
वही मैं हूँ वही है तेरे ग़म की कार-फ़रमाई* //
कभी तन्हाई में महफ़िल कभी महफ़िल में तन्हाई
***
जो ग़म-ए-हबीब से दूर थे वो ख़ुद अपनी आग में जल गए
जो ग़म-ए-हबीब को पा गए वो ग़मों से हँस के निकल गए।
***
तुमसे क्या कहें .. कितने ग़म सहे हमने बेवफ़ा ..
तेरे प्यार में ……! दिन गुज़र गया ऐतबार में रात कट गयी इंतज़ार में ……..
Gam hindi shayari roman hinglish
(sad shayari)gam khud he khushe mein badal jayenge, sirf muskurane ke adat hone chahie.***
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batane ke liyen dost hajaro rakhana, jab gam bantana ho to hamen yad karana..***
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dayar-e-gam mein dil-e-beqarar chhoot gaya sambhal ke dhoondhane jao bahut andhera hai firaq***
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kabhe ah lab pe machal gae kabhe ashq ankh se dhal gae, ye gam ke chirag hai,kabhe bujh gae kabhe jal gae…**
*na khushiyon se mohabbat ke na gam se dushmane rakhe… mere dil ne mere halat se bas doste rakhe…***
dil ko gam e hayat gavara hai in dinon, dil ko jo dard tha,vahe pyara hai***
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(sad shayari)apake yad ate rahe rat-bhar” chandane dil dukhate rahe rat-bhar, . gah jalate hue, gah bujhate hue sham-e-gam jhilamilate rahe rat bhar**
*jisase dur ho jae mere gam ! maun rah kar bhe tere dil ke gaharae tak faile us tanhae se bat kar sakoon !***
ham par gam – ai – jahan hain, ye aur bat hai…ham fir bhe bezuban hain, ye aur bat hai …!!***
bete din ab kabhe laut kar na ayenge,ham kaun se zinda hain ki is gam mein mar jayenge.***
vo jab yad aye, bahot yad ayegam-e-jindage ke, andhere mein ham hai chirag-e-mohabbat jalae bujhae …***
gam ke garme se dil pighalate rahe tajarbe ansuon mein dhalate rahe***kya janoo sajan hote hai kya gam ke sham jal uthe sau die,jab liya tera nam.***
ansuo thode madad mujh ko tumhare chahie gam chale jaenge varna dil ko banjar chhod kar***
nikala hoon main talash mein shayad vafa mile, is dard-o-gam ke vaste koe dava mile!***
gam-e-dauran mein toot-tootakar bikhare hai haste mere kar kuchh aur sitam mera vajood abhe bake hai***
hai ab is mamoore mein, qahat-e-gam-e-ulfat asad, hamane ye mana ke, dille mein rahe khavenge kya? mirz ghalib***
asooon mein chand dooba rat murajhae jindage mein door tak, faile hai tanahae jo gujare ham pe vo kam hai, tumhare gam ka mausam hai …!!***
un logon ka kya hua hoga; jinako mere tarah gam ne mara hoga; kinare par khade log kya jane; doobane vale ne kis-kis ko pukara hoga.***
agar kho gaya ek nasheman to kya gam? makamat-e-ah-o-fugan aur bhe hain***
gam mein doobe he rahe dam na hamara nikala bahar-e-haste ka bahut door kinara nikala***
tumhare vaste ye gam uthane vala hoonruko e ansuo main muskurane vala hoon .***
hans hans ke mere halate gam dekhanevaleye daulate gam tere badaulat he mile hai….!***
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jhooth kahate hain log ki mohabbat sab kuchh chhen lete hai. . mainne to mohabbat karake, gam ka khajana pa liya…!!!***
ek shakhs he bahut hai gam bantane ke liyemahafilon mein to bas tamashe banate hain***
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main zindage ka sath nibhata chala gaya, gam aur khushe mein fark na mahasoos ho jaha, main dil ko us maqam pe lata chala gaya.***
chale ate hain gam bar-bar..kya tareka hai..koe kah do jindage se bhe…”ye ho chuka hai”..!!***
ghar mein tha kya jo tera gam use garat karata?vo jo ham rakhate the ik hasarat-e tamer,so hai! mirz ghalib***
too dekh ya mat dekh , is bat ka gam nahin !par ye mat kah ke ham tere kuchh nahin !!***
ye jo apane jan ke haref ham, tere berukhe ka shikar thejo gila karen bhe to kya karen, tere apane gam he hazar the..!***
musalasal gam uthane se ye behatar hai,agar mano kinara karane valon se kinara kar liya jae….!***
kar raha tha gam-e-jahan ka hisab aj tum yad behisab ae …. !!***
sham-e-gam hai tere yadon ko saja rakkha haimain ne danista charagon ko bujha rakkha hai***
vo jo tumane ek dava batalae the gam ke lie,gam to jyoon ka tyoon raha bas ham sharabe ho gaye***
mayakhane mein aoonga magar piyoonga nahin sake ..ye sharab mera gam mitane ke takat nahin rakhate.***
dard mein lazzat bahut ashkon mein ranae bahutai gam-e-haste hamen duniya pasand ae bahut,***
gujar jaega ye daur bhe zara itmenan to rakh jab khushe he na thahareto gam ke kya aukat hai.***
pe leta hoon yu hain kabhe-kabhe gam bhulane koke dagamagana zaroore hai sambhalane ke lie***
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vahe main hoon vahe hai tere gam ke kar-faramae* //kabhe tanhae mein mahafil kabhe mahafil mein tanhae***
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tumase kya kahen .. kitane gam sahe hamane bevafa ..tere pyar mein ……! din guzar gaya aitabar mein rat kat gaye intazar mein ……..